
न काम , न काज - फिर भी है सूचना विभाग !
लखनऊ, 29 मार्च: शासनादेश दिनांक 30 नवम्बर,1946 के द्वारा सूचना निदेशालय की स्थापना इस उददेष्य से की गई थी कि शासन ‘प्रेस’ के सम्पर्क में रहे और देखे कि प्रेस में भेजे जाने वाले शासकीय समाचार वास्तविक तथ्यों पर आधारित हों। लेकिन इस उद्देश्य से विभाग भटक रहा है। प्रेस को जो सूचनाएं स्वंय के स्त्रोतों से बैठक या निर्णय के बीस से पच्चीस मिनट के अन्दर मिल जाती है। वह सूचना यह विभाग देर उपलब्ध करा पा रह है। कहने को विभाग में प्रेस प्रभाग,विज्ञापन प्रभाग, क्षेत्र प्रचार प्रभाग,सूचना ब्यूरो,ग्रामीण प्रसारण शाखा,प्रकाशन शाखा,मुख्यमंत्री रिकार्डिग यूनिट, गीट एवं नाट्य योजना, प्रदर्शनी, होर्डिग्स,एलईडी, फिल्म बन्धु से लेकर कई अनुभाग है, लेकिन इनके जो दायित्व है उसके आधार पर उनकी केवल भाजपा सरकार के कार्यकाल की समीक्षा कर ली जाए तो पता चल जाएगा कि काम के नाम पर केवल कागजी खाना पूर्ति हो रही है।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में सीधी भर्ती के पचास प्रतिशत पद जिला सूचना अधिकारी के खाली है। इसका सीधा सा मतलब यह कि राजधानी सहित प्रदेश के आधे जनपद सूचनाधिकारी विहीन है। ऐसे में काम चलाऊ व्यवस्था के तहत प्रेस और जनता से सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग का काम चल रह है। कही सेवानिवृत्त सूचना अधिकारी तो कही अतिरिक्त सूचना अधिकारी, कही संरक्षक तो कही लेखाकार से जिलासूचनाधिकारीका काम लिया जा रहा है। सरकार की कितनी योजना, क्रिया कलाप प्रेस और पब्लिक तक ऐसी स्थिति में पहुंच पाएगें इसे सरकार अच्छी तरह समझ सकती है। स्थिति यह है कि कैबिनेट की बैठक में होने वाले निर्णय इतनी देर बाद प्रेस तक पहुंच पाते है कि कैबिनेट बैठक की खबर से लगभग 50 प्रतिशत अखबार वंचित रह जाते है। यही नही मार्च पूरा बिताने वाला है। गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों को सचिवालय की रिपोर्टिग के लिए एक फार्म के माध्यम से सचिवालय पास जारी की व्यवस्था इस आशय से पूर्व सरकार ने की थी कि एक सीमा के बाद राज्य मुख्यालय पर पत्रकारो को मान्यता नही दी जा सकती लेकिन कवरेज की दृष्टि से उन्हें सचिवालय पास दिया जा सकता है। यह परम्परा चली आ रही थीं, सरकार ने पहले तो उसी आशय से गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों से फार्म भरवा लिये, एलआईयू से लेकर पुलिस जांच सब हो गई अब मार्च के अंतिम समय पर यह कहा जा रहा है कि सचिवालय पास के लिए नए फार्म भरवाए जाएगे। ऐसे में पत्रकारों में यह चर्चा उठनी लाजमी है कि या तो सरकार पत्रकारों को परेशान करना चाह रही है या फिर वह सचिवालय में होने वाली गतिविधियों से पत्रकारो को दूर रखकर यह दिखाना चाह रही है कि सचिवालय में सबकुछ ठीक ठाक चल रहा है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भाजपा मीडिया के प्रति दोस्ताना रवैया रखना चाहती है लेकिन सरकार और मीडिया के बीच सम्बंध खराब कराने की गर्ज से कुछ अधिकारी इस तरह के आदेश निर्देश जारी कर पत्रकारों के मन में सरकार के प्रति नकारात्मक रवैया बना रहे है।
अभी विधानसभा सत्र के दौरान ऐसे ही चंद सूचना विभाग अधिकारियों के कारण कई वरिष्ठ पत्रकारों जिनके द्वारा दस से पन्द्रह वर्ष तक सदन की कवरेज की गई उन्हें पत्रकार दीर्घा पास से वंचित कर दिया गया। यही नही डायरी प्रकाशन की बात करे तो यहां भी बड़े खेल चलते है। इस डायरी के खेल देखने है तो इस डायरी को लेकर मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष किसी भी दिन डायरी खोल ले और चार अधिकारियेां को शहर के दस स्टालों पर भेज दे पता चल जाएगा कि डायरी में प्रकाशित मीडिया प्रतिनिधियों के नाम प्रकाशन मे कितना बड़ा खेल चल रहा है।
यहां इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी है कि एक समाचार एजेन्सी जिसके माध्यम से लगभग एक हजार से अधिक समाचार पत्र सेवा लाभ दे रहे है , उसके द्वारा डायरी प्रकाशन में भेजी सामग्री को सूचना विभाग के डायरी प्रकाशन अधिकारी द्वारा दर किनार कर उक्त एजेन्सी को सरकार के प्रति उकसाने का प्रयास किया गया। यही नही विज्ञापन प्रभाग भी पुरानी सरकार के ढ़र्रे में चल रहा है किस समाचार पत्र को कितना विज्ञापन मिला किसकों नही मिला किसका भुगतान हुआ किसका नही हुआ या सब अधिकारियों एवं पार्टी नेताओं की मेहरबानी पर चल रहा है।
यही नही सचिवालय पास निर्गत कराने में भी कई ऐसे मामले है कि जो संवाददाता है ही नही, लखनऊ में मकान दिखाकर, नोएडा, दिल्ली, कानपुर, इलाहाबाद में कारोबार कर रहे है उनके भी पास जारी कर दिये जाते है। यही नही मान्यता प्राप्त पत्रकारों का 25 लाख का बीमा होता है, लेकिन उक्त बीमा का प्रीमियम जमा न होने की खबर से पत्रकारो में हड़कम्प मचा है लेकिन सूचना विभाग के जिम्मेदार अधिकारी सरकार के खिलाफ पत्रकारों को उकसाने में कोई कसर नही छोड़ रहे है।
कहने को यह जनता से जुड़ा विभाग है लेकिन पत्रकारों के फोन करने पर भी सूचना विभाग के अधिकारियों का फोन न उठाना इस विभाग के नाम और काम में अन्तर का आभास करा देता है।
विज्ञापन,होर्डिंग प्रचार के लिए करोड़,प्रेस कार्ड के लिए बजट नही
जिला स्तर के प्रेस कार्ड की बाॅत करे या फिर राज्य मुख्यालय स्तर के प्रेस कार्ड स्थिति इतनी बद्तर है कि मान्यता होने और ट्राॅसफर होने के बाद कई कई महिने पत्रकारों को इसलिए कार्ड नही मिल पाते कि कार्ड उपलब्ध नही है। जबकि वास्तविकता यह है कि पूरे प्रदेश में मान्यता प्राप्त कार्ड उपलब्ध कराने मे सिर्फ दस से बीस हजार रूपये का खर्चा आता होगा।
बसपा,सपा की आस्था वाले अधिकारियों की फौज
जी हां , बिल्ला लगाकर नही लेकिन अन्दरूनी तौर पर बसपा और सपा पर आस्था रखने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों की एक लम्बी फौज सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में दिखाई पड़ती है। इसका भी खामियाजा वर्तमान सरकार को एक तो नीम चढ़ा दूसरा करेला की तर्ज पर भुगतना पड़ रहा है। नई सरकार की छापेंमारी का शौक लगभग खत्म हो जाने के बाद अपने कार्यालय में कौन सा अधिकारी कब मिलेगा यह कहना मुश्किल है।
जिलाधिकारी और सांसद, विधायक भी नही लेते सुध
जिला स्तर पर जिला सूचना कार्यालय स्थापित है। इन सूचना कार्यालयों की क्या स्थिति है। कौन सा अधिकारी है कौन सा कर्मचारी नही है। कौन सी बैठक की खबर लोक समाचार प्रतिनिधियों को उपलब्ध कराई जा रही है। कौन सी खबर नही उपलब्ध कराई जा रही है। इसका संज्ञान न तो जिलाधिकारी ले रहे है न ही ही स्थानीय सांसद और विधायक ले रहे है। जिले के जिला सूचना कार्यालय की स्थिति क्या होगी इसका जीता जागता प्रमाण राजधानी का जिला सूचना कार्यालय है। कहने को यह राजधानी का जिला सूचना कार्यालय है। लेकिन इस कार्यालय में गंदगी और फटी शीलिंग, टूटा फूटा फर्नीचर इसकी पहचान है। यही नही इस कार्यालय से जिलाधिकारी से सम्बंधित प्रेस कतरन को चमकाने लिए जो रद्दी कागज उपयोग किया जा रहा है वह इस बात का संकेत देता है कि जिलाधिकारी उन कतरनों को देखते भी नही होगें। क्योकि घटिया से घटिया कागजों में कतरन चिपका कर डीएम के समक्ष भेजी जा रही है।
हर जिला कार्यालयों में स्टेशनरी स्टाफ और फर्नीचर की कमी
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश का कोई भी ऐसा जिला सूचना कार्यालय नही, जहां स्वीकृत के सापेक्ष स्टाफ हो और उसकी आवश्यकता अनुसार उसे स्टेनरी मुहैया कराई जा रही हो। ऐसे में जिला सूचना कार्यालय किस तरह से जिला प्रशासन की गतिविधियों को जनता तक पहुंचा पा रहे होगें भगवान जाने।
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