कल तक थी जो सहारा, सरकार ने उसे फटकारा
’सोशल मीडिया अौर डिजिटल इंडिया.
नयी दिल्ली, 26 मार्च: भले ही सरकार ने पिछले सप्ताह फेसबुक को 'अनफ्रेंड' कर दिया हो, लेकिन कुछ समय पहले सरकार ने महत्त्वाकांक्षी 'डिजिटल अभियान' के लिए मार्क जुकरबर्ग की इस कंपनी और अग्रणी तकनीकी कंपनी गूगल का सहारा लिया था। सरकार ने दिग्गज सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक को अगले साल के चुनावों को प्रभावित न करने की चेतावनी दी है।
वर्ष 2014 में डिजिटल इंडिया कार्यक्रम शुरू होने से लेकर अब तक अमेरिका की इन दो दिग्गज कंपनियों ने इस कार्यक्रम के हर क्षेत्र में अहम भूमिका निभाई है। फेसबुक और गूगल ने सरकार के लिए लोगों को इंटरनेट के बारे में शिक्षित करने से लेकर सुदूरवर्ती इलाकों को तेज रफ्तार वाले इंटरनेट से जोड़ने, उद्यमिता को प्रोत्साहित करने, स्टार्टअप इनक्यूबेटर बनाने, महिला सशक्तीकरण और यहां तक कि मतदाता पंजीकरण अभियान चलाने, साइबर सुरक्षा और आतंक निरोधी अभियान आदि चलाए हैं।
कैसे शुरू हुई साझेदारी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 में 'डिजिटल इंडिया' शुरू करने के बाद इसकी शुरुआत हुई। इस कार्यक्रम के शुरू होने के कुछ सप्ताह के भीतर ही फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और नीति आयोग के साथ बैठकें शुरू कर दीं। डिजिटल इंडिया की घोषणा के तुरंत बाद गूगल नई पीढ़ी के उपयोगकर्ताओं को जोडऩे के लिए अपना सबसे बड़ा कार्यक्रम 'नेक्स्ट बिलियन यूजर' लेकर आई। वहीं फेसबुक ने सभी के लिए इंटरनेट 'इंटरनेट डॉट ओआरजी' का विचार पेश किया।
जब 2015 में प्रधानमंत्री पहली बार अमेरिका गए तो वह फेसबुक, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट समेत सभी प्रमुख तकनीकी कंपनियों के कार्यालयों में गए, जहां उन्होंने डिजिटल इंडिया को लेकर लंबी बातचीत की। फेसबुक ने एक कदम आगे बढ़ते हुए डिजिटल इंडिया और इंटरनेट डॉट ओआरजी को बराबर बता दिया। कंपनी ने अपनी इस गलती के लिए बाद में माफी भी मांगी। ये सब गड़बडिय़ां हुईं, मगर जुकरबर्ग, गूगल सीईओ सुंदर पिचाई और माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला ने प्रधानमंत्री के साथ कई बैठकें कीं। जब भी वे अपने आधिकारिक दौरे पर भारत आए, तब सभी बातें डिजिटल इंडिया अभियान पर केंद्रित रहीं।
डिजिटल इंडिया में फेसबुक और गूगल की कितनी भागीदारी?
गूगल के मुताबिक अगले एक अरब लोगों को ऑनलाइन लाने के हमारे वैश्विक प्रयासों के तहत भारत में प्रत्येक व्यक्ति के लिए इंटरनेट उपलब्ध कराने पर ध्यान दिया गया। कंपनी के सवालों के जवाब में कहा, 'हम अगले एक अरब यूजर की उन जरूरतों को पूरी करने पर ध्यान दे रहे हैं, जो ऑनलाइन नहीं हैं। यह मिशन भारत सरकार के डिजिटल इंडिया अभियान से काफी मेल खाता है।' पूरे भारत के इंटरनेट से जुड़ने से उद्यमों को बढऩे और अगले पीढ़ी की शिक्षा में मदद मिलेगी और भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि में तेजी आएगी। हम उन नई पहलों, उत्पादों, फीचर और सेवाओं से इंटरनेट तक जुड़ाव कायम करना चाहते हैं, जो भारत में अनोखी और प्रासंगिक हैं।
गूगल जिन नई योजनाओं पर काम कर रही है, उनमें तेज एवं उच्च गुणवत्ता के इंटरनेट तक पहुंच, कम कनेक्टिविटी में भी काम करने वाले उत्पाद बनाना, भारतीय भाषी लोगों के लिए वेब को ज्यादा उपयोगी बनाना, ग्रामीण भारत में महिलाओं में इंटरनेट का उपयोग बढ़ाना और डेवलपर एवं लघु व मझोले कारोबारों (एसएमबी) के लिए कौशल विकास और सुरक्षित डिजिटल भुगतान अनुभव आदि शामिल हैं। दूसरी ओर फेसबुक ने भारत में अपना इंटरनेट डॉट ओआरजी अभियान असफल होने के बाद एक्सप्रेस वाई-फाई शुरू किया है, जो भारत के चार राज्यों- उत्तराखंड, गुजरात, राजस्थान और मेघालय में हॉटस्पॉट के जरिये वाणिज्यिक रूप से उपलब्ध है। फेसबुक भारती एयरटेल की साझेदारी में 20,000 अतिरिक्त हॉटस्पॉट शुरू करेगी। इसकी घोषणा मई, 2017 में की गई। इससे एक्सप्रेस वाई-फाई उन करोड़ों भारतीयों तक पहुंच जाएगा, जिन्हें तेज और किफायती कनेक्टिविटी की जरूरत है।
अब भारत सरकार इस बात से चिंतित है कि फेसबुक भारतीय उपयोगकर्ताओं का ब्योरा चुनावों को प्रभावित करने के लिए कर रही है। लेकिन कुछ समय पहले फेसबुक ने भारतीय चुनाव आयोग के साथ मिलकर देश भर में मतदाता पंजीकरण अभियान शुरू किया था।
वर्ष 2017-18 में फेसबुक ने हिमाचल प्रदेश, गुजरात, मेघालय, त्रिपुरा और नगालैंड के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को राज्य चुनावों में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए सहयोग दिया था। इस सहयोग के तहत फेसबुक ने चुनाव वाले दिन लोगों के न्यूज फीड में एक रिमाइंडर का प्रचार किया ताकि राज्य चुनावों में शिक्षित लोगों को भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। गूगल 400 रेलवे स्टेशनों पर उच्च गति का वाई-फाई मुहैया कराने के लिए भारतीय रेलवे और रेलटेल के साथ मिलकर काम कर रही है। कंपनी 300 स्टेशनों पर पहले ही वाई-फाई मुहैया करा चुकी है, जिसके करीब 77 लाख लोग मासिक उपयोगकर्ता हैं।
गूगल ने एक अन्य कार्यक्रम 'इंटरनेट साथी' टाटा ट्रस्टों की साझेदारी में शुरू किया है। यह कार्यक्रम अभी 13 राज्यों में चल रहा है। गूगल ने कहा, 'इस कार्यक्रम से 1.35 करोड़ महिलाएं पहले ही लाभान्वित हो चुकी हैं और इस समय हमारा यह कार्यक्रम 1,40,000 गांवों में चल रहा है।' इनके अलावा सैकड़ों ऐसे कार्यक्रम हैं, जिनमें ये दो कंपनियां डिजिटल इंडिया अभियान के तहत सरकार के साथ मिलकर काम कर रही हैं।
सरकार ने इनके साथ क्यों करार किए?
उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के लिए इन कंपनियों के संसाधनों, पहुंच और डेटा का इस्तेमाल कर अपना कार्यक्रम शुरू करना सबसे आसान था। इनटेरा इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजिज के अध्यक्ष और सीईओ अशोक के लाहा ने कहा, 'गूगल और फेसबुक को इस्तेमाल करना सबसे सुरक्षित है। सरकार किसी छोटी कंपनी से क्यों करार करेगी। इन कंपनियों के पास बहुत ज्यादा डेटा है, जो अद्यतन है।'
सरकार ने जोखिमों पर नहीं दिया ध्यान
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार ने डिजिटल इंडिया की हड़बड़ी में उन जोखिमों पर विचार ही नहीं किया, जो ऐसी कंपनियां देश के सामने पैदा करती हैं। एक साइबर कानून विशेषज्ञ और उच्चतम न्यायालय में वकील पवन दुग्गल ने कहा, 'हमें यह समझना होगा कि ये सभी डेटा बिचौलिया हैं। यह स्वाभाविक है कि वे डेटा का हर तरीके से इस्तेमाल करेंगी। सरकार ने इसका अनुमान नहीं लगाया। लेकिन यह घटना दर्शाती है कि भारत के सामने बहुत जोखिम है। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का मुख्य मकसद भारत को एक डिजिटल समान में बदलना था। यही वजह है कि सरकार ने इन बिचौलिया कंपनियों पर निर्भरता की कोशिश की। ऐसी घटनाओं से यह साफ दिखता है कि हम उनसे निपटने के लिए तैयार नहीं हैं।'
(साभार: बिजनेस स्टैण्डर्ड)
संपादक: स्वतंत्र भारत न्यूज़
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