अरे सियासत का भूगोल तो ......!
‘राम’ सिर्फ ढाई अक्षर का शब्द नहीं है.....
‘राम’ राष्ट्र के लिए समर्पित मनुष्य थे , शासनाध्यक्ष थे , देशभक्त थे , सत्यनिष्ठ थे , मर्यादित कर्मशील महामानव थे, और इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहा गया|
यह मुल्क किसका है? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिन्दुओं का या ओवैसी जैसों की जमात का? या फिर नरेंद्र मोदी का या योगी आदित्यनाथ का? या राहुल गाँधी, सोनिया गाँधी का? या मायावती , ममता , महबूबा का? या फिर किसी ठाकरे , नायडू , मुलायम या किसी खास सियासी दल/संघ व उनके कार्यकर्ताओं का? या फिर सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों का ? यह सवाल बेहद अहम् है | खासकर मौजूदा वोटों की जंग के दौर में जहां जीत की लय बरकरार रखने की जिद में मेघालय और गोवा जैसे घाव की पीड़ा से लोकतंत्र की आंखो में आंसू छलक रहे हों और जीत के जश्न व उसके जवाब में चुनौतियां महापुरुषों की मूर्तियों को तोड़कर हिंसा का नंगनाच हो रहा हो| इससे भी आगे यह सवाल तब बेहद जरूरी हो जाता है जब देश में हिन्दू वोटों की गिनती हो रही हो , अलग-अलग जातियों/फिरकों की वोटों की शक्ल में गिनती हो रही हो और अलग-अलग धर्मों के वोटों की गिनती बाकायदा धमकियां देकर हो रही हों| और तो और 70 बरस में जवान हुईं नफरत की औलादें रोज नई-नई लाशों को बेचकर मुनाफे की सियासत में अपनी हैसियत बना रहे हों| ऐसे हालातों में भारत के नागरिक की हैसियत से मेरा सवाल है कि यह देश किसका है? हिन्दुओं का , दलितों का , अल्पसंख्यकों का या गुजरातियों,मराठियों,बिहारियों का या बाभन,ठाकुर,बनियों का या पिछड़ों , अति पिछड़ों का आखिर किसका है यह देश? जवाब कौन देगा? सत्ता के अश्वमेघ का हांका लगाने वाले या इतिहास की गठरी लादे सियासतदां?-
मुझे मालूम है कि इस सवाल का जवाब कोई नहीं देगा , क्योंकि इस सवाल का जवाब देने से किसी के हिस्से में वोटों का इजाफ़ा नहीं होने वाला| यह मुल्क हमारा है| हम 125 करोड़ भारतवासियों का है| यह मुल्क मेरा है| मैं अपने देश से प्रेम करता हूं , अपने देश के प्रति वफादार हूं| मुझे नहीं लगता कि किसी मोदी,योगी,भागवत को देशप्रेम के प्रमाण-पत्र बांटने का ठेका हासिल है| इसीलिये इनमे से किसी के प्रति भी वफादारी के क्या मायने ? ये नाम तो आते-जाते रहेंगे लेकिन देश तो पृथ्वी के वजूद तक मौजूद रहेगा| ऐसे में क्या किसी को भी देश के इतिहास से खिलवाड़ करने की इजाजत दी जानी चाहिए? क्या राजनीति के भूगोल में आड़ी-तिरछी रेखाएं खींचने का अधिकार सियासतदानों को दिया जाना चाहिए? गांधी और राम के नाम से भयादोहन और पूर्वजों के खून-पसीने की हर बूंद को गाली देने का हक राजनीतिज्ञों को किसने दिया है? बेशक विरोधियों की निन्दा करके वोट अपने पाले में करने का हक सभी दलों के नेताओं को है लेकिन 125 करोड़ लोगों से झूठ बोलकर?-
पचास साल के कांग्रेसी शासन में देश में कितना विकास हुआ इसकी गवाही में केवल इतना कि उसी विकास की ऊँची छत पर खड़े होकर भाजपा अपनी छाती कूट रही है और उन्हीं की योजनाओं का बाइस्कोप सिर पर उठाये दुनिया भर में डुगडुगी नहीं बजा रही है? भाजपा को देश के महज 25 करोड़ वोटरों ने सत्ता सौंपी है और वो भी भ्रष्टाचार से लड़ाई लड़ने के वायदे पर, लेकिन हो क्या रहा है? केवल कांग्रेस को गरियाने और हर दोष कांग्रेस के माथे का तिलक साबित करने की कसरत | बाकी की कसर ढोल-नगाड़ा बजाकर अपनी पीठ अपने ही हाथों ठोंककर पूरी की जा रही है| आधार कार्ड , जनधन योजना , योगा, उज्ज्वला योजना , सर्जिकल स्ट्राइक , नोटबंदी , जीएसटी , कन्हैया कुमार से लेकर हार्दिक पटेल तक पर देशद्रोह के आरोप का शंखनाद कितना झूठा है,कितना तकलीफदेह है यह 110 करोड़ से अधिक देशवासी जानने समझने लगे हैं | और भ्रष्टाचार के मुखालिफ योद्धा होने का दावा कितना हास्यास्पद है, वह ललित मोदी , माल्या से लेकर नीरव मोदी , विक्रम कोठारी तक की कलई आरबीआई से लेकर जांच एजेंसियों के साथ प्रधानमंत्री के ‘मेहुल भाई’ संबोधन ने खोल दी है| मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला, छतीसगढ़ का चावल घोटाला, महाराष्ट्र का सिंचाई घोटाला और कर्नाटक के खनन घोटाले में मुख्यमंत्री रहते येदुरप्पा की जेलयात्रा के आलावा और बहुत से प्रकरण हैं|
गुजरात में भाजपा ने सरकार बना ली| त्रिपुरा जीत लिया| मेघालय में कुल 2 नागालैंड में 11 सीटों के बलबूते भाजपा गंठजोड़ ने सरकार बना ली| क्या यही है चाय-पकौड़ा लोकतंत्र?-
तीनों राज्यों की आबादी लगभग सवा करोड़ होगी और वोटर लगभग 80 लाख होंगे| इनके बीच चुनाव प्रचार के दौरान 30-35 केन्द्रीय मंत्री,100-125 से अधिक सांसद, 4-5 सौ से अधिक देशभर के भाजपा विधायक, 2-3 प्रदेशों के मुख्यमंत्री और संघ के हजारों-हजार कार्यकर्ता महीनों डेरा जमाये रहे| इन सबके साथ एक अनुमान के मुताबिक़ 300 करोड़ से अधिक का खर्च सिर्फ ‘लाल’ को ‘भगवा’ करने के लिए? क्या इसे चुनावी भ्रष्टाचार नहीं कहा जाना चाहिए? और आगे कालाधन विदेशों से तो आया नहीं उल्टे देश में छापों का दौर जारी है, विरोधियों के गले में भ्रष्टाचारी की तख्ती लटकाकर उनकी फोटुएं खबरों सहित अखबारों में छापी जा रही हैं, टेलीविजन के पर्दे पर हलक फाड़कर दिखाई जा रहीं हैं| उन्हें जेल भेजा जा रहा है | संचार घोटाले का सच सारे देश के सामने आ चुका है| गोया झूठ को नकली मोतियों से टंका सच्चा लहंगा पहनाकर पूरी बेशर्मी से देश-दुनिया भर में नचाया जा रहा है| चुनांचे फिर सवाल सामने है | क्या गंगा मां के बेटे ने गंगा निर्मल कर दी? क्या काशी क्योटा बन गया? क्या करोड़ों बेरोजगार रोजगार पा गये ? क्या गाय कटनी बंद हो गई? क्या गरीब जन-धन खाता खुलवाने के बाद अमीर हो गये या उनमें से कितने खाताधारक रूपे कार्ड का लाभ पा रहे हैं? इनमें से कितनों को बैंकों ने स्वरोजगार के लिए ऋण दिया? क्या चारसाला भाजपा शासन में किसानों के हालात बदले या उनकी आत्महत्याएं रुकीं? क्या दो सैनिकों के सरों के बदले दस आतंकियों के सर देश में लाये गये? फिर भी ताली बजा कर उंगली दिखाकर धमकियों का, सच के मुंह में झूठ की जुबान डालने का और सपने बेचने का सिलसिला नहीं जारी है? इससे देश का क्या भला होगा ?
राम मन्दिर की सारंगी बेसुरे ढंग से कब तक बजती रहेगी ? ‘राम’ सिर्फ ढाई अक्षर का शब्द नहीं है| न ही कोई कुतुबमीनार या ताजमहल और न ही उन मकबरों के भीतर जाले बुनने वाली मकडी| राम तो मैं हूं, हम हैं| सिर्फ ‘मैं’ और ‘हम’ को कर्म के बहीखाते में दर्ज मानवत्व की बारीकी से श्रद्धापूर्वक जांचने परखने की जरूरत भर है| "राम" यानी रा+म = राष्ट्रीय मानव| सरल बीजगणित का हल हुआ समीकरण है और यही सच है| इसी को ईश्वर के प्रतिरूप में महर्षि वाल्मीकि, महाकवि कंबन और गोस्वामी तुलसीदास ने स्वीकार किया है| मुनि नारद ने ऋषि वाल्मीकि को रामकथा सुनाने से पहले ही बताया था कि ‘इस संसार के वीर पुरुषों में सर्वसदगुण संपन्न पुरुष सूर्यवंशी राम हैं, जो अयोध्या में राज कर रहे हैं | ‘राम’ राष्ट्र के लिए समर्पित मनुष्य थे, शासनाध्यक्ष थे, देशभक्त थे, सत्यनिष्ठ थे, मर्यादित कर्मशील महामानव थे | ऐसे महामानव को समूची दुनिया श्रद्धा से प्रणाम करती है| उन्हें बदनाम करते हुए भाजपा को 25 बरस से अधिक हो गये! इससे देश को क्या हासिल हुआ ? सवाल और भी हैं लेकिन अक्षरों की अपनी सीमा भी है|
-राम प्रकाश वरमा