ट्रंप से डरे किम या चली 'चीनी' चाल, बातचीत के पीछे बिछा है कौन सा जाल?
अमेरिका से बातचीत के बनते माहौल से युद्ध के बादल छंटने लगे हैं तो उत्तर कोरिया को लेकर दुनिया के नजरिए की धुंध भी छंटनी शुरु हो गई है.
फर्स्ट पोस्ट.कॉम 07 मार्च 2018:
पिछले साल सितंबर में जब जापान के ऊपर से उत्तरी कोरिया की बैलिस्टिक मिसाइल गुजरी, तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लगा, मानों सिर से सनसनाता हुआ पत्थर गुजरा. डोनाल्ड ट्रंप और उनके ‘फेवरेट’ ‘रॉकेटमैन’ यानी उत्तरी कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंग के बीच जुबानी जंग एक दूसरे को नेस्तनाबूत करने की धमकियों के शोलों से दहक रही थी.
एकबारगी दुनिया इस आशंका से घिर गई थी कि कोरियाई प्रायद्वीप पर जंग कभी भी छिड़ सकती है. लेकिन शीतकालीन ओलंपिक के बाद से कोरियाई देशों के बीच जमी रिश्तों की बर्फ ने पिघलना शुरु कर दिया है. बातचीत के बनते माहौल से युद्ध के बादल छंटने लगे हैं तो उत्तर कोरिया को लेकर दुनिया के नजरिए की धुंध भी छंटनी शुरु हो गई है
दरअसल उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंग परमाणु बम के बटन वाली टेबल से उठकर अब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ बातचीत की टेबल पर बैठने को तैयार हैं. ये तस्दीक कोई और नहीं बल्कि खुद दक्षिण कोरिया कर रहा है. दोनों के बीच आखिरी जुबानी जंग परमाणु बम के बटन की टेबल पर जा कर रुकी थी जब दोनों ने ही ये दावा किया था कि दोनों के हाथ परमाणु टेबल के बटन पर रहते हैं.
किम जोंग ने मांगी सैन्य सुरक्षा की गारंटी
लेकिन विंटर ओलंपिक के बाद अब उत्तरी कोरिया के ‘सरकार’ बदले बदले से नजर आते हैं. किम जोंग उन अब दक्षिण कोरिया के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण के मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार हो गए हैं. साथ ही ये भी कहा है कि अगर उनके देश को सैन्य-सुरक्षा की गारंटी मिले तो वो न्यूक्लियर टेस्ट करना छोड़ना देंगे.
उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग में किम जोंग उन ने दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार चुंग यी योंग से मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद जो सामने आया वो किम जोंग की फितरत के बिल्कुल विपरीत था. योंग ने बताया कि परमाणु निरस्त्रीकरण के मुद्दे पर अमेरिका से बातचीत के लिए किम जोंग तैयार हैं और बातचीत के दौरान न्यूक्लियर टेस्ट और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को बंद रखेंगे.
वहीं अब ये दोनों देश एक नए वादे के साथ अप्रैल में ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन करने जा रहे हैं. इस शिखर सम्मेलन के जरिए उत्तर-दक्षिण कोरिया के सर्वोच्च नेता दुनिया को आश्चर्यजनक और उत्साहजनक संदेश दे सकते हैं.
संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों से मजबूर हुआ उत्तर कोरिया?
बहुत मुमकिन है कि पश्चिमी देश और अमेरिका किम जोंग के बदलते रुख को उन प्रतिबंधों के चश्मे से देखें जो संयुक्त राष्ट्र ने लगाए हैं. अमेरिका और पश्चिमी देश ये सोच सकते हैं कि उत्तर कोरिया पर लगे प्रतिबंधों ने उसकी कमर तोड़ दी है जिस वजह से अब उत्तर कोरिया बातचीत के लिए मजबूर हुआ है.
दरअसल उत्तरी कोरिया के परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रमों की वजह से संयुक्त राष्ट्र परिषद ने कई प्रतिबंध लगाए हैं. लेकिन उत्तरी कोरिया हर नए प्रतिबंध के साथ ही एक नया न्यूक्लियर टेस्ट कर अपने इरादे जता देता था. उत्तर कोरिया ने हमेशा ही संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को अमेरिकी नफरत का हिस्सा बताते हुए खुद के साथ नाइंसाफी करार दिया है. वो हर प्रतिबंध के बाद और मजबूत हो कर दुनिया के सामने आया है. पिछले साल उत्तर कोरिया के हाइड्रोजन बम के सबसे पॉवरफुल टेस्ट ने अमेरिका समेत दुनिया की नींद उड़ा दी थी. उत्तरी कोरिया ने अमेरिकी शहरों तक अपनी परमाणु मिसाइलें पहुंचने का दावा भी किया था.
न्यूक्लियर और इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों के टेस्ट की वजह से ही अमेरिका बार बार उत्तर कोरिया को दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते आया है. यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सरेआम उत्तर कोरिया को राख के ढेर में बदल देने की धमकी तक दे डाली थी. जिसके बाद उत्तरी कोरिया ने जवाब देते हुए कहा था कि अगर उस पर हमला हुआ तो पूरी दुनिया ये जरूर याद रखे कि दुनिया में होने वाली तबाही की असली वजह अमेरिका ही है.
बमों की बरसात की धमकी से बातचीत तक पहुंची बात
हालांकि, बाद में डोनाल्ड ट्रंप के रुख में बदलाव देखने को मिला. जहां अमेरिकी प्रशासन बार बार ये जोर देता रहा कि उत्तर कोरिया पर हमले की तैयारी जारी है और जंग किसी भी वक्त हो सकती है. तो उधर व्हाइट हाउस प्रशासन भी ट्रंप की धमकियों के बावजूद ये कहता रहा है कि उन्हें उम्मीद है कि 'रॉकेटमैन' यानी किम जोंग के साथ बातचीत की कोशिशें आखिरी तक नहीं रुकेंगीं.
अब उत्तर कोरिया ने बातचीत की पेशकश कर अपने नए रूप को सामने रखा है ताकि अमेरिका उत्तर कोरिया पर हमले की भूमिका तैयार न कर सके. हालांकि अगर वाकई किम जोंग अमेरिका के साथ एक सार्थक बातचीत की तरफ बढ़ते हैं तो खुद अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए ये बड़ा राजनीतिक अवसर और उपलब्धि होगी जो दूसरे अमेरिकी राष्ट्रपतियों को उत्तरी कोरिया के मामले में नहीं मिल सकी.
लेकिन सुबह का भूला किम जोंग अगर शाम को घर लौट आए तो वो किम जोंग नहीं हो सकता है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अभी भी कुछ ऐसा ही लगता है. वो उत्तर कोरिया की बातचीत की पेशकश को सशंकित नजरों से देख रहे हैं. तभी ट्रंप ने दक्षिण कोरिया के बयान के बाद कहा कि, ‘उत्तर कोरिया से बातचीत झूठी उम्मीदें हो सकती हैं, लेकिन अमेरिका किसी भी दिशा में कठोर कदम उठाने के लिए तैयार है'
अटकी हुई है दक्षिण कोरिया-जापान की सांस
उधर दक्षिण कोरिया किसी भी सूरत में नहीं चाहता कि उत्तर कोरिया के साथ वो किसी भी जंग में उलझे. दक्षिण कोरिया ये जानता है कि सबसे ज्यादा नुकसान उसी का होगा. दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में तकरीबन ढाई करोड़ की आबादी है. उत्तर कोरिया की परमाणु मिसाइलें एक घंटे के भीतर ही सियोल को बारूद के शोलों में तब्दील कर सकती हैं.
दक्षिण कोरिया भी अमेरिका की तरह ही ये जानता है कि मारने-मिटने पर आमादा उत्तर कोरिया किसी भी हद तक जा सकता है. यही वजह है कि दक्षिण कोरिया भी एक ऐसा माहौल तैयार करना चाहता है ताकि उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच संबंध सुधर सकें.
कोरिया प्रायद्वीप पर दक्षिण कोरिया के बराबर ही जापान को भी खतरा है. उत्तर कोरिया ने एक महीने में दो बार जापान के ऊपर से अपनी बैलिस्टिक मिसाइल दाग कर सीधे अमेरिका को ही धमकी दी थी. उत्तर कोरिया लगातार उकसावे वाली कार्रवाई करता आया है. लेकिन अमेरिका अपनी रणनीति के तहत सिर्फ धमकियों और प्रतिबंधों से ही जवाबी कार्रवाई करता आया है. अमेरिका जानता है कि युद्ध की सूरत में दक्षिण कोरिया और जापान की तबाही का अंत नहीं होगा. यही वजह है कि इन दोनों देशों की सुरक्षा को लेकर अमेरिका ने इराक की तरह कोरियाई प्रायद्वीप पर जंग छेड़ने में जल्दबाजी नहीं दिखाई.
अमेरिकी थिंक टैंक और रक्षा विशेषज्ञ पहले ही ये अंदेशा जता चुके हैं कि उत्तर कोरिया की परमाणु मिसाइलें अमेरिकी शहरों को निशाना बनाने में सक्षम हैं. जबकि दूसरी तरफ उत्तर कोरिया पर हमले की सूरत में चीन और रूस जैसे देशों का जंग में उतरना तय है. ऐसे में हालात साफतौर से तीसरे विश्वयुद्ध के ही बनेंगे भले ही उसके लिए दुनिया उत्तर कोरिया को ही जिम्मेदार ठहराए.
अमेरिका के डर से बढ़ाई परमाणु ताकत
किम जोंग उन के व्यवहार में आए बदलाव की वजह से अब ये उम्मीद जाग रही है कि बात होने से बात बन सकती है. जिस तरह से उत्तर कोरिया ने सुरक्षा की गारंटी मांगी है वो इशारा करती है कि उसे खतरा सिर्फ और सिर्फ अमेरिका से ही है.
उत्तर कोरिया ने लगातार अपने परमाणु परीक्षणों के पीछे अमेरिकी हमले का अंदेशा जताया है. उसने कई दफे कहा है कि वो अमेरिकी हमलों की आशंका की वजह से अपने मुल्क की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और इसीलिए अपने परमाणु कार्यक्रमों को बंद नहीं करेगा.यही बात उसने इस बार दूसरे तरीके से दोहराई है. इस बार उत्तर कोरिया कह रहा है कि वो भी अपने हथियार टांग सकता है लेकिन न चलाने के लिए उसे सुरक्षा की गारंटी मिलना जरूरी है.
अप्रैल में होगा शिखर सम्मेलन
अगले महीने दोनों देशों के बीच होने वाले शिखर सम्मेलन पर पूरी दुनिया की नजरें होंगी. इस शिखर सम्मेलन में साफ हो जाएगा कि दोनों देशों के बीच गतिरोध रहता है या फिर हमेशा के लिए दूर हो जाता है. दोनों ही देश सीमा पर हथियारों की भारी तैनाती के मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार हो गए हैं. किम जोंग उन अब दक्षिण कोरिया के साथ रिश्तों को ऐतिहासिक तौर पर बेहतर बनाना चाहते हैं तभी उन्होंने दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति को अपने मुल्क आने का न्यौता दिया है.
ये वाकई एक बड़ा बदलाव है जिसे दुनिया उम्मीद से निहार रही है. क्योंकि अबतक उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों पर बातचीत करने से साफ मना कर चुका था. फिलहाल गेंद अमेरिका के पाले में है कि वो किम जोंग की पेशकश को किन शर्तों के साथ तवज्जो देंगे.
(साभार: न्यूज़-18)
संपादक- स्वतंत्र भारत न्यूज़
swatantrabharatnews.com