हीरा उद्योग में हवाला का गड़बड़झाला !
पूरी दुनिया में भारत कच्चे हीरों (रफ डायमंड) का सबसे बड़ा तराशी केंद्र है।
नीरव मोदी और गीतांजलि के मेहुल चोकसी के फर्जीवाड़े ने हीरा उद्योग की चमक फीकी कर दी है। बिगड़े माहौल के बीच हीरा कारोबार में हवाला गतिविधियों और हेराफेरी (राउंड ट्रिपिंग) के अवैध तरीकों का मसला फिर से उभर आया है। भारत करीब 35 अरब डॉलर मूल्य के तराशे गए हीरों का निर्यात करता है। पूरी दुनिया में भारत कच्चे हीरों (रफ डायमंड) का सबसे बड़ा तराशी केंद्र है। हालांकि जब तराशे गए हीरों का आयात या कच्चे हीरों का निर्यात होता है तो राउंड ट्रिपिंग का संदेह पैदा हो जाता है। रत्न एवं आभूषण निर्यात संवद्र्धन परिषद (जीजेईपीसी) के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल के 150 करोड़ डॉलर के मुकाबले भारत ने इस वित्त वर्ष में जनवरी तक 117 करोड़ डॉलर मूल्य के कच्चे हीरों का निर्यात किया है। इस साल पहले 10 महीने में भारत ने तराशे गए हीरों का आयात भी किया है जो 188 करोड़ डॉलर का है।
पिछले दो सालों में निर्यात की गई खेप से वापस आए हिस्से का मूल्य भी ऊंचे स्तर पर रहा है। जब हीरों को खेप बिक्री (अगर बेची जाती है तो इस तरह की बिक्री को निर्यात का दर्जा होता है) के रुप में विदेश भेजा जाता है तो इसका कुछ हिस्सा, जिसकी बिक्री नहीं होती है, वापस आ जाता है। हीरा उद्योग से जुड़े एक कारोबारी ने कहा कि पिछले 2 साल में वापस आ जाने वाले ऐसे हीरों का प्रतिशत अब दोगुना हो गया है। सूत्रों ने कहा, 'हीरा कारोबार धन शोधन का जरिया लगातार बना हुआ है।' सरकार ने तराशे गए हीरों के आयात पर शुल्क अब 2.5 से बढ़ाकर 5 प्रतिशत कर दिया है, लेकिन इससे भी फर्क नहीं पड़ा है। बस तरीके बदलते रहते हैं। कीमतों का मानकीकरण नहीं होने से भी व्यापार में विकृति आई है।
हवाला के जरिये रकम इधर-उधर करने के लिए कुछ लोग जवाहरात का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि इनकी कीमत मुश्किल होती है। जहां तक कच्चे हीरों की बात है तो इनके आयात पर शुल्क नहीं लगता। सीमा शुल्क अधिकारियों को इससे नहीं मतलब होता कि क्या आयात हो रहा है? निर्यातकों को राउंड ट्रिपिंग जैसे गतिविधियों के जरिये बैंकों से सस्ती दरों पर ऋण पाने में आसानी होती है। आम तौर पर रत्न एवं आभूषण कारोबार अधिक जोखिम वाले समझे जाते हैं और बैंक इन्हें महंगा कर्ज देते हैं।
जीजेईपीसी का कहना है कि कुछ साल पहले आयात शुल्क बढ़ाकर 2.5 प्रतिशत किए जाने से हीरा कारोबार में राउंडट्रिपिंग अब बंद हो गई है। जीजेईपीसी के प्रवक्ता ने कहा, 'बड़े ग्राहकों के निर्यात ऑर्डर पूरे करने के बाद कुछ हीरे बच जाते हैं, जो वापस आ जाते हैं। कुल खरीदारी में वापस आए इन हीरों की हिस्सेदारी (कीमत के लिहाज से) औसतन 10 प्रतिशत तक हो सकती है। किसी भी उद्योग में ऑर्डर का 10 प्रतिशत हिस्सा लौटना आम बात है और हीरा कारोबार भी इसका अपवाद नहीं है।' जीजेईपीसी ने कहा कि आंकड़ों के अनुसार 200 करोड़ डॉलर मूल्य के तराशे गए हीरों के आयात में 50 प्रतिशत हीरे विशेष आर्थिक क्षेत्र में आयात किए जाते हैं। आभूषणों के लिए विभिन्न आकार में कटे और अलग-अलग रंगों के हीरों की जरूरत पड़ती है, जो भारत में नहीं होते हैं। जीजेईपीसी के अनुसार इनका बाहर से आयात करना होता है।
हालांकि सूत्रों ने कहा कि निर्यात खेप में कुछ हिस्सा लौट सकता है, लेकिन इनकी आड़ में इनके नाम पर महंगे हीरे भारत आ रहे हैं और हवाला के जरिये इनके लिए अधिक भुगतान किया जा रहा है। इस कारोबार का आकार कितना बड़ा है, इसका अंदाज लगाना मुश्किल है और हीरा कारोबार के लिए यह हमेशा से ही पतली गली रही है।' वर्ष 2015-16 में निर्यात खेप से वापस आए हीरों का मूल्य 10 प्रतिशत था, जो 2017-18 में जनवरी तक बढ़कर 23 प्रतिशत हो गया है। एक साल में लौटने वाले हीरे का मूल्य दोगुना होना और ऊंचे स्तर पर बने रहना चिंता की बात है। एक सवाल यह भी उठता है कि हीरों की जितनी मात्रा वापस आई क्या उसकी गुणवत्ता बाहर भेजे गए हीरों के समान ही थी? चांदी आभूषणों का निर्यात वर्ष 2014-15 में 200 करोड़ डॉलर का जो 2016-17 में बढ़कर 400 करोड़ डॉलर पहुंच गया। बता दें कि चांदी के आभूषणों पर हीरे जड़े होते हैं।
हालांकि परिषद ने कहा कि हीरों की जितनी मात्रा लौटती है, उसके साथ रकम का लेन-देन नहीं जुड़ा होता है। परिषद के अनुसार बिक्री नहीं होने से रकम के लेन-देन का सवाल नहीं होता है। इसलिए राउंड ट्रिपिंग की आशंका न के बराबर होती है। इंडियन बुलियन एवं ज्वैलर्स एसोसिएशन के राष्टï्रीय सचिव सुरेंद्र मेहता ने कहा कि अगर तगड़ा मुनाफा कमाने वाले किसी उद्योग को लंबे समय तक आयात शुल्क और अप्रत्यक्ष करों से मुक्त रखा जाता है तो इसमें अवैध गतिविधियां होने लगना स्वाभाविक है।
(साभार: बिजिनेस स्टैण्डर्ड)
संपादक- स्वतंत्र भारत न्यूज़
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