
जंग- ए- आज़ादी- ए- हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- बदरुद्दीन तैय्यबजी.
"लहू बोलता भी है'
ज़रा याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के घर न आये....
आईये, जंग- ए- आज़ादी- ए- हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- बदरुद्दीन तैय्यबजी को जानते हैं :-
बदरुद्दीन तैय्यबजी:
बदरुद्दीन तैय्यबजी का ख़ानदान अरब से आकर बम्बई मंे बसा था। अच्छे घराने में पैदा होने के बाद भी आपने शुरुआती तालीम मदरसे में हासिल की और आला तालीम एलफिंस्टन इंस्टीट्यूट से हासिल की। सन् 1883 में जब अलबर्ट बिल आया और फ़साद बढ़ा तो हिन्दुस्तान की ओर से मुक़दमा लड़ने के लिए बदरूद्दीनजी ही आगे बढ़े। उन दिनों आपका नाम बड़े जाने-माने बैरिस्टरों में जाना जाता था। आप बम्बई विधान परिषद के नामिनी मेम्बर भी रहे। आप तहरीके़-आज़ादी के सरगर्म कारकुन भी रहे और अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तंज़ीमों के ज़रिये आम ज़िन्दगी के हर पहलू पर जद्दोजहद करते रहे। आपका ख़ानदान शुरू से कांग्रेस से जुड़ा हुआ था, जिसका पूरा असर तैय्यबजी पर भी पड़ा और आप कांग्रेस की हर तहरीक में सरगर्मी से हिस्सा लेने लगे। कांग्रेस के चलाये सभी मूवमंेट में हिस्सा लिया और जेल भी गये।
बम्बई के गवर्नर लाॅर्ड रीए जब मुसलमानों को कांग्रेस के आंदोलन सेे अलग रखने की मुहिम चलाकर साज़िश रच रहे थे, तब बदरूद्दीन तैय्यबजी को असरअंदाज़ करने के मक़सद से वायसराय के साथ उनकी मुलाक़ात करायी गयी। वायसराय ने तैय्यबजी को एक तोहफ़ा देकर मुसलमानों की बहुत तारीफ़ की और अंग्रेज़ांे से दोस्ती का भरोसा दिलाया। जवाब में तैय्यबजी ने कहा कि मैं हाक़िमो की तरफ़ से दिया गया तोहफ़ा लेने से डरता हूं। माज़रत के साथ इसे वापस ले लें। रही बात हुक़्मरानो से दोस्ती की, तो मेरी राय में आम सियासी मामलो पर हिन्दुस्तान के मुसलमानों को मैं दूसरे मज़हब के लोगों के साथ मिलकर हल करने या तहरीक के ज़रिये लेने का हामी हूं। आप जिस मुस्लिम सम्मेलन में भाग लेने के लिए दावत दे रहे हैं, मैं ऐसे हर उस कांफ्रेंस की मुख़ालिफत करूंगा जो कांग्रेस को कमज़ोर करने के लिए किया जा रहा है।
सन् 1887 मद्रास में हुए कांग्रेस के इजलास में तैय्यबजी सदर चुने गये। अपने आपने सदारती ख़ुतबे में कहा कि भारत में सब कौम के लोग मिलकर हर मुमकिन कोशिश करें कि सरकार से सुधार और बड़े अख़्तयारात हासिल किये जायंे जो हम सभी के लिए फायदेमंद होगा। मेरी राय है कि हमलोग मिलकर ज़ोरदार तरीके से आवाज़ उठायें तो हमे हमारा हक़ मिल सकता है।
कई सालों की मेहनत के बाद कांग्रेस के ज़िम्मेदार क़ायद के तौर पर आप मुसलमानों को यह समझाने में क़ामयाब हुए कि सियासी मामले में कांग्रेस का साथ दे और क़ौमी मामलों में अपने फ़ैसले के लिए आज़ाद है। उन्होंने अपनी कोशिशों से वह शक भी दूर किया जिसके चलते मुसलमानों को यह लगता था कि जिन तंज़ीमों में हिन्दुओं की अक़सरियत है, उनमें उनका हक़ नज़रअंदाज किया जायेगा। आपका इंतक़ाल 19 अगस्त सन् 1906 को हुआ।
(साभार: शाहनवाज़ अहमद क़ादरी)
संपादक: स्वतंत्र भारत न्यूज़
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