जंग- ए- आज़ादी- ए- हिन्द के मुस्लिम किरदार - अब्दुल समद खान अचकज़ई ;बलोच गांधी
"लहू बोलता भी है'
ज़रा याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के घर न आये....
आईये, जंग- ए- आज़ादी- ए- हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार को जानते हैं .....
अब्दुल समद खामदन की पैदाइश 7 जुलाई सन् 1907 में कोयटा के करीब गुलिस्तान कस्बे में हुई थी। आपके वालिद का नाम नूर मोहम्मद था, जो एक आलिमेदीन और उर्दू, परशियन के अलावा अरबी जुबान के माहिर थे। वालिद की तरबियत और तालीम ने आपको बहुत ही कम वक्त में अरबी और फ़ारसी जुबान का माहिर बना दिया था। उसके बाद आपने अंग्रेजी, सिंधी, पख़्तूनी और बलूची जुबाने सिखी। दौराने-तालीम आपने एक स्टूडेंट मूवमेंट में हिस्सा लिया, जोकि जंगे-आज़ादी का आग़ाज़ था उस वक्त आप गिरफ्तार भी हुए लेकिन आपकी उम्र को देखते हुए आपको रिहा कर दिया गया। इसके बाद फिर आप 15 साल की उम्र में ख़िलाफ़त मूवमेंट में शरीक हुए और गिरफ़्तार भी हुए लेकिन फिर आपकी उम्र की वजह से सिर्फ 28 दिन की ही सजा हुई। अफ़गास्तिान की आज़ादी के लिए सन् 1919 में अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ तहरीक चलायी बाद में अमानुल्लाह खान की क़यादत मंे तहरीके-आज़ादी मंे शामिल हुए और गिरफ़्तार भी हुए; जेल की सज़ा हुई; एक साल बाद छूटकर आये।
सन् 1932 में आॅल इण्डिया बलूच कांफ्रेंस की सदारत की जिसमें बलुचिस्तान और अफ़गान की आज़ादी के लिए अलग से तहरीक चलाने की जरूरत बतायी जिस पर अमल भी हुआ। बाद में आपने बलूच कांफ्रंेस हैदराबाद और कराची में भी हिस्सा लिया; इन्ही कांफ्रंेस में आपने जो तक़रीरे की उसे अंग्रेज़ हुकूमत ने बग़ावत का नाम देकर गिरफ़्तार कर लिया और तीन साल की कैद की सज़ा सुनायी।
जेल से आने के बाद आपने सन् 1938 में इस्तकलाल नाम से अखबार निकला। अखबार के अलावा आपने मजहब और सियासत पर कई किताबे भी लिखी।
आप कांग्रेस पार्टी से भी करीब थे। आपने कांग्रेस के नेशनल मूवमेंट में भी हिस्सा लिया था; जेल भी गये थे। आप खान अब्दुल गफ़्फ़ार खान (सरहदी गांधी) के भी काफी करीब थे उनके साथ मिलकर हिस्दुस्तान और पख़तुनिस्तान की आज़ादी की तहरीक की मुहिम मंे शामिल रहे।
सन् 1939 में अंजुमने वतन बलुचिस्तान नाम से एक पार्टी बनायी जिसके ज़रिये बलुचिस्तान की आज़ादी की जंग लड़ते रहे। आपकी पूरी जिन्दगी मुल्क और बलुचिस्तान की जंगे-आज़ादी में बीत गयी। आप मुस्लिम लीग के कट्टर मुखालिफो में थे, जिसकी वजह से पाकिस्तान की आजादी के बाद भी आपको जेल में रहना पड़ा।
आप लेजिस्लेटिव एसेम्बली के मेम्बर भी चुने गये थे। आप बतौर सज़ा 30 साल जेल में ही थे। जेल से छूट कर आने के बाद मुस्लिम लीग की दुश्मनी की वजह से 21 दिसम्बर सन् 1973 को आप का क़त्ल कर दिया गया।
(शाहनवाज़ अहमद क़ादरी)
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