न्यूक्लियर स्मार्ट कोड PM के पास होता है, असली बटन सबसे निचली कड़ी के पास
ट्रंप-किम जोंग में परमाणु बटन पर छिड़े विवाद के बीच जानें- भारत में क्या है इसकी हकीकत।
नई दिल्ली.अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प और उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के बीच न्यूक्लियर बटन को लेकर खासा विवाद रहा। ट्रम्प ने किम की हमले की धमकी के बाद कहा था कि उनका न्यूक्लियर बटन हमेशा उनके ऑफिस की डेस्क पर रहता है। अमेरिकी प्रेसिडेंट के इस तीखे बयान के बाद भारत में भी लोग इस बात को जानना चाहते हैं कि आखिर अगर यह बटन है तो किसके पास है और इससे हथियार कैसे दागे जाएंगे?
- न्यूक्लियर कमान की जानकारी रखने वालों के मुताबिक, प्रधानमंत्री के पास कोई बटन ही नहीं होता जिसे दबाकर न्यूक्लियर मिसाइल अपने निशाने की ओर बढ़ जाए। यह बटन तो न्यूक्लियर कमांड की सबसे निचली कड़ी के पास होता है जिसे वाकई वह मिसाइल दागनी है। प्रधानमंत्री के पास सिर्फ स्मार्ट कोड होता है।
- भारत में न्यूक्लियर हमले का फैसला लेने का अधिकार सिर्फ पीएम के पास होता है। परिस्थितियों के मुताबिक, वे अपनी कैबिनेट या कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्युरिटी, चेयरमैन चीफ ऑफ स्टाफ्स कमेटी और नेशनल सिक्युरिटी एडवाइजर (एनएसए) से सलाह लेकर ही न्यूक्लियर बम दागने का फैसला ले सकते हैं।
पीएम की कमांड के बाद भी 30-40 मिनट से पहले नहीं दागी जा सकती मिसाइल
1. वजन 15 से 20 किलोग्राम तक
- प्रधानमंत्री के साथ हमेशा एक ब्रीफकेस चलता है। उसे न्यूक्लियर ब्रीफकेस कहते हैं। इसका वजन करीब 15-20 किलो होता है।
- इसमें कंप्यूटर और रेडियो ट्रांसमिशन इक्विपमेंट होते हैं। हर देश ने अपने-अपने न्यूक्लियर केस के अलग नाम दिए हुए हैं।
2. स्मार्ट कोड (यह वेरिफिकेशन कोड है)
- पीएम का स्मार्ट कोड दरअसल एक वेरिफिकेशन कोड होता है। जो न्यूक्लियरकमांड को भेजा जाता है। हर देश में इस कोड के कार्ड के अलग-अलग नाम हैं।
- भारत में पीएम के पास यह ऑप्श है कि वह अपने मन मुताबिक इसे कोई भी नाम दे सकते हैं।
3- कोड सेफ (कहां, कोई नहीं जानता)
- शिप, सेना में न्यूक्लियर बैटरी यूनिट या एयरफोर्स में कमांडिंग ऑफिसर के साथ दो-दो अन्य अधिकारी होते हैं।
- उनके पास दो अलग-अलग लॉकर होते हैं। इन्हें कोड सेफ कहते हैं। ये कहां है, कुछ अफसरों को ही पता होता है।
4. कोड मैच (...यानी फाइनल एक्टिवेशन)
- प्रधानमंत्री का स्मार्ट कोड मिलने के बाद कमांडिंग ऑफिसर अपने दोनों साथी अफसरों को बताता है जो अपने-अपने कोड सेफ खोलकर उसका मिलान करते हैं। तीनों कोड सही पाए जाने पर न्यूक्लियर हमला बोल दिया जाता है।
निर्देशों के बाद हमले में वक्त लगने की वजह दूसरी तैयारियां
प्रधानमंत्री का निर्देश हासिल होने के बाद उसकी पुष्टि की प्रक्रिया तो कुछ ही मिनट में हो जाती है लेकिन हवाई हमले के लिए लड़ाकू विमान को तैयार करने या थल सेना बैटरियों और नौसेना में मिसाइलों को दागने में 30 से लेकर 40 मिनट तक का समय लग सकता है।
ब्रीफकेस में टार्गेट्स की पूरी लिस्ट और स्थान का ब्यौरा भी रहता है
- न्यूक्लियर हमला कहां करना है, इसके लिए टार्गेट्स की लिस्ट और स्थान तैयार रहते हैं।
- सेना में शीर्ष पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, इस तरह के करीब पांच हजार टार्गेट्स की पहचान हो चुकी है और उनके स्थान का ब्योरा न्यूक्लियर ब्रीफकेस में और निचले स्तर पर न्यूक्लियर हथियार दागने वालों के पास मौजूद होता है।
- समय-समय पर इन ठिकानों का रिव्यू भी किया जाता है और नए ठिकानों को जोड़ा भी जाता है। यह कवायद लगातार कड़ी निगरानी में चलती रहती है।
डीआरडीओ संभालता है नेटवर्क, और कंप्यूटर कोड की जिम्मेदारी
- देश का डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन ( डीआरडीओ ) इस पूरे नेटवर्क, कमांड और कंप्यूटर कोड का जिम्मा संभालता है।
- पानी के भीतर न्यूक्लियर सबमरीन तक, जमीन पर तैनात न्यूक्लियर बैटरी यूनिट, शिप और एटमी हमला बोलने में कैपेबल एयरफोर्स के अड्डों में इस काम के लिए लगे कंप्यूटरों को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी डीआरडीओ के पास है।
पूर्व नेवी चीफ ने बताईं दो सबसे बड़ी सावधानियां
भारत का न्यूक्लियर सिद्धांत तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश ने बताया कि एटमी हमले पर अमल करने से जुड़ी पूरी कमांड चेन में दो बातों पर खास जोर रहता है।
1. प्रधानमंत्री की ओर से जो फैसला आए, उस पर पूरी सटीकता से अमल हो और जल्द से जल्द हमला बोल दिया जाए।
2. निचले स्तर पर कोई भी शरारत न होने पाए और निर्देश की दो सौ फीसदी पुष्टि हो। हालांकि उन्होंने पूरे तंत्र को अभेद्य बताया।
(साभार:- भाष्कर)
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