चुस्त व चमक दमक के बुर्के पहनना नाजायज, दारुल उलूम देवबंद ने जारी किया फतवा
बुर्के को लेकर एक व्यक्ति ने दारुल उलूम के इफ्ता विभाग से लिखित सवाल पूछा था।
सहारनपुर. दारुल उलूम देवबंद ने मंगलवार को एक फतवा जारी किया है। दारुल उलूम देवबंद द्वारा कहा गया है कि मुस्लिम महिलाओं द्वारा पर्दे के नाम पर इस्तेमाल किये जा रहे विभिन्न डिजाइनों के बुर्के व चुस्त लिबास पहना सख्त गुनाह व नाजायज है। फतवे में कहा गया है कि ऐसा बुर्का या लिबास पहनकर महिलाओं का घर से बाहर निकलना जायज नहीं है। जिसकी वजह से अजनबी मर्दों की निगाहें उसकी तरफ आकर्षित हों।
-देवबंद के ही एक व्यक्ति ने दारुल उलूम के इफ्ता विभाग से लिखित सवाल पूछा था- "मुस्लिम औरतों के लिए ऐसा बुर्का या लिबास पहनना कैसा है जिसमें औरतों की आजा (शरीर के अंग) जाहिर होते हों। ऐसा चमक-दमक का बुर्का पहन कर बाजार जाना कैसा है? जिसकी वजह से गैर मर्दों की निगाहें उसकी तरफ उठती हों।
-दारुल उलूम देवबंद के मुफ्तियों की खंडपीठ ने उक्त सवाल का लिखित जवाब देते हुए कहा है- "मोहम्मद साहब ने इरशाद फरमाया है की औरत छुपाने की चीज है। क्योंकि जब कोई औरत बाहर निकलती है तो शैतान उसे घूरता है। इसलिए बिना जरूरत औरत को घर से नहीं निकलना चाहिए।
-जब जरूरत पर घर से निकले तो अपने जिस्म को इस तरह छुपाए कि उसके आजा (शरीर के अंग) जाहिर न हों, यानी ढीला लिबास पहन कर निकले। तंग व चुस्त लिबास या बुर्का पहन कर निकलना और लोगों को अपनी ओर आकर्षित करना हरगिज जायज नहीं है और सख्त गुनाह है।
क्यों जारी किया गया लिवास
-दारुल उलूम से जारी फतवे को वक्त की जरूरत बताते हुए तंजीम अब्ना-ए-दारुल-उलूम के अध्यक्ष मुफ्ती यादे इलाही कासमी ने कहा- "पश्चिमी सभ्यता हिंदुस्तानी तहजीब पर पूरी तरह हावी हो चुकी है। हमारी औरतें पर्दों से निकलकर छोटे व तंग लिबासों में आ गईं हैं।"
-"पर्दे के नाम पर मुस्लिम महिलाएं खास तौर पर स्कूल कॉलेजों में जाने वाली लड़कियों द्वारा खिलवाड़ किया जा रहा है। बेहद तंग व चमक दमक के बुर्कों से बाजार भरे पड़े हैं। इस्लाम ने जिस पर्दे का हुक्म दिया है वह इन बुर्कों से पूरा नहीं होता। इसलिए वह ढीले-ढाले बुर्कों का इस्तेमाल करें ताकि वह बुरी नजरों से बच सकें।"
नए साल का जश्न नहीं मनाने को कहा था
-हाल ही में देवबंद ने नए साल का जश्न 1 जनवरी को नहीं मानाने का फरमान जारी किया था। मदरसा जामिया हुसैनिया के वरिष्ठ उस्ताद मौलाना मुफ्ती तारिक कासमी ने कहा था- "नए साल की जश्न मनाना इस्लाम में जायज नहीं है इसके साथ ही कहा गया है कि केक काटना भी इस्लाम में जायज नहीं है।"
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