
लाइव 'ला': *टेक्नॉलॉजी न्यायिक कार्यों का स्थान नहीं ले सकती*: CJI बी.आर. गवई ने AI और ऑटोमेटेड सिस्टम्स के उपयोग पर दी सतर्कता की सलाह
नई दिल्ली (लाइव 'ला' - आमिर अहमद): कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में न्याय तक पहुंच को बेहतर बनाने में तकनीक की भूमिका विषय पर बोलते हुए भारत के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बी. आर. गवई ने न्यायिक प्रणाली में तकनीक और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के संयोजन को लेकर सतर्कता बरतने की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने कहा कि तकनीक एक उपयोगी डिवाइस हो सकती है, लेकिन यह न्यायिक सोच की मूल भावना को कमजोर नहीं कर सकती।
उन्होंने कहा,
"आगे का रास्ता बुनियादी सिद्धांतों का पालन मांगता है। तकनीक को न्यायिक कार्यों को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए, न कि उन्हें प्रतिस्थापित करने के लिए खासकर तर्कसंगत निर्णय प्रक्रिया और व्यक्तिगत मामलों के मूल्यांकन में। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि स्वचालित प्रणालियाँ जजों के निर्णय को सहयोग दें, न कि उसे हटा दें।”
CJI गवई ने डेटा सुरक्षा और गोपनीयता पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि न्याय प्रणाली अत्यंत संवेदनशील जानकारी से जुड़ी होती है और डिजिटलीकरण के साथ साइबर सुरक्षा और गोपनीयता प्रोटोकॉल की आवश्यकता और भी अधिक हो जाती है।
उन्होंने चेताते हुए कहा,
"एल्गोरिदमिक पूर्वाग्रह और भेदभाव अन्य गंभीर चिंता हैं, क्योंकि AI और मशीन लर्निंग सिस्टम ऐतिहासिक आंकड़ों पर आधारित होते हैं। इससे वे समाज में पहले से मौजूद भेदभाव को और बढ़ा सकते हैं।"
CJI ने कहा,
"तकनीक, जैसे कि कोई भी मानव निर्मित प्रणाली, स्वाभाविक रूप से निष्पक्ष नहीं होती। इसके भीतर भेदभाव, पूर्वाग्रह और व्यवस्था की असमानताएं समाहित होती हैं। इसलिए यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम पहले अपनी प्रणालियों को शुद्ध और मजबूत करें, तभी हम उम्मीद कर सकते हैं कि तकनीक न्याय की सेवा कर सके।"
चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि भारत जैसे विविध और विशाल देश में तकनीक ने भौगोलिक और भाषाई बाधाओं को काफी हद तक कम किया है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से देश के किसी भी कोने से वकील अब सुप्रीम कोर्ट में पेश हो सकते हैं।
उन्होंने बताया कि ऑटोमेटेड केस मैनेजमेंट सिस्टम्स और डिजिटल प्रोसेसिंग के जरिए मामलों का निपटारा तेज हुआ है। इलेक्ट्रॉनिक वर्कफ्लो और ऑटोमेटेड नोटिफिकेशनों की मदद से पहले जो प्रक्रियाएं महीनों खिंचती थीं, वे अब तेजी से पूरी हो रही हैं।
CJI ने SUVAS (सुप्रीम कोर्ट विधिक अनुवाद सॉफ़्टवेयर), e-courts प्रोजेक्ट, National Judicial Data Grid (NJDG), और NALSA द्वारा विकसित तकनीकी टूल्स जैसे “न्याय मित्र”, “न्याय संपर्क”, LESA ऐप का भी उल्लेख किया, जो आम जनता को मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध कराने और उनके मामलों की प्रगति जानने में मदद करते हैं।
उन्होंने कहा,
"ये तकनीकी हस्तक्षेप संविधान द्वारा नागरिकों को दिए गए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के वादे को पूरा करने की दिशा में अहम भूमिका निभा रहे हैं। ये अधिकारों को सेवाओं में बदलने, लंबित मामलों को कम करने और न्यायिक संस्थानों में पारदर्शिता लाने का कार्य कर रहे हैं।"
लेकिन उन्होंने साथ ही डिजिटल डिवाइड पर भी चिंता व्यक्त की।
उन्होंने कहा,
"हमें यह भी मानना होगा कि तकनीक एक दोधारी तलवार की तरह है। इंटरनेट, डिवाइस और डिजिटल साक्षरता तक असमान पहुंच उन हाशिए पर खड़े लोगों को और दूर कर सकती है, जो पहले से ही न्याय तक पहुंच में बाधाएं झेल रहे हैं। यदि तकनीक को वास्तव में न्याय का साधन बनाना है तो इसकी डिज़ाइन में समावेशिता और पहुंच को केंद्र में रखना होगा।"
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(समाचार & फोटो साभार: लाइव 'ला')
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