अलविदा 2017: सियासी जुमलों से ज्यादा अजीबो-गरीब नाम का साल
राजनीति में कई नए नाम और परिभाषाएं इस साल सुनने को मिलीं
राजनीति में नामकरण किया जाना नई प्रथा नहीं है. देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू जी के नाम में लगा ‘चाचा’ बाद में जय प्रकाश नारायण के लोकनायक में तब्दील हुआ तो मुलायम सिंह यादव फक्र महसूस करते हैं नेताजी और मौलाना के नाम पर. उन्हीं मुलायम सिंह यादव के पुत्र और यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान एक रैली में ‘गुजरात के गधे’ नामक जुमले का इस्तेमाल किया. निशाना सीधा पीएम मोदी पर था. पीएम ने गधे शब्द का इस्तेमाल अपने पक्ष में किया और बाजी पलट दी. खैर, अखिलेश यादव चुनाव हार गए और उनके मुंह से निकले कुछ शब्दों को उनकी हार की कई वजहों में एक वजह गिनाया.
राजनीतिक नामकरण में अगली बारी किसी नेता की नहीं बल्कि टैक्स सिस्टम की थी. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (जो तब उपाध्यक्ष ही थे) ने गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स का नाम दिया. गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान उन्होंने इन शब्दों का खूब इस्तेमाल किया. जीएसटी से व्यापारी वर्ग को हो रही परेशानियों को वोटों में तब्दील करने के लिए राहुल गांधी ने यह जुगत लगाई थी जो नतीजे के तौर पर तो उनके काम नहीं आ सकी लेकिन मीडिया में सुर्खियां बटोरने में खूब कामयाब रही. हां वो ये जरूर मान सकते हैं कि गुजरात की सम्मानजनक हार में उनके इस नामकरण की दिमागी कसरत ने जरूर थोड़ा रोल अदा किया होगा.
गुजरात चुनाव के दौरान ही सबसे आपत्तिजनक बयान दिया कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने. मणिशंकर राजनीतिक आलोचना से परे भावावेष की ऐसी धारा में बह गए कि उन्होंने पीएम को नीच आदमी कह डाला. ऐन चुनावों के मौके पर अपने एक वरिष्ठ नेता की बयानबाजी से एक ओर कांग्रेस बैकफुट पर आई तो बीजेपी ने इसे जमकर चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की. इसे जातिगत टिप्पणी से जोड़कर दिखाने की कोशिश की गई. खुद मणिशंकर अय्यर ने अपने दक्षिण भारतीय होने का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि उनके बयान का गलत अर्थ निकाला गया है. लेकिन तब तक बात काफी आगे निकल चुकी थी. उनके बयान को लेकर जितना सियापा मचना था तो वो मच चुका था.
ऐसा नहीं है ऐसी बयानबाजी सिर्फ विपक्ष की तरफ से हुई. गुजरात चुनाव के दौरान ही खुद नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी के अध्यक्ष चुने जाने की संज्ञा औरंगजेब से कर डाली थी. जिसे कांग्रेस पार्टी की तरफ से आपत्तिजनक बताया गया था.
बीजेपी के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राम मंदिर पर अपने एक ट्वीट में ओवसी और जिलानी पर निशाना साधते-साधते राहुल गांधी को अलाउद्दीन खिलजी और बाबर का रिश्तेदार बता गए.
गुजरात चुनाव के दौरान जब राहुल गांधी मंदिरों की यात्रा लगातार कर रहे थे तो वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बीजेपी को असली हिंदुत्ववादी पार्टी करार देते हुए कांग्रेस को बहरूपिया शब्द से नवाज दिया था.
कई बार ऐसा भी होता है कि राजनीतिक बयानबाजियों में विपक्षी ही नहीं अपनी पार्टी की खिल्ली भी उड़ जाती है. ऐसा ही वाकया छत्तीसगढ़ में तब हुआ जब वहां के श्रम मंत्री भइयालाल रजवाड़े ने राज्य के सीएम रमन सिंह और देश के पीएम नरेंद्र मोदी को कुंवारा बता डाला था. थोड़ी और छूट लेते हुए उन्होंने बीजेपी को कुंवारों की पार्टी भी कह दिया था.
ये तो कुछ नाम हैं इनके अलावा कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल से लेकर बीजेपी के अनिल विज तक 2017 में कई नेताओं ने ऐसे बयान दिए जिससे पार्टियों को बैकफुट पर जाना पाड़ा और जमकर आलोचनाएं झेलनी पड़ीं. दरअसल भारतीय लोकतंत्र में कहने-सुनने की आजादी का अगर सबसे ज्यादा फायदा कोई उठाता है वो शायद राजनेता बिरादरी ही है. लेकिन ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए कि साल 2018 में हमारे नेता एक दूसरे के खिलाफ राजनीतिक बयानबाजी करते हुए ऐसे बयान न दें जिससे उन्हें फजीहत उठानी पड़े.
साभार: फर्स्ट पोस्ट
संपादक: स्वतंत्र भारत न्यूज़
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