योगीजी का अमन प्रेम !
गढ़हा मुक्त सड़क की बात करने वाले योगी के वाहन के पहिये अक्सर सड़क में धसते है और ऐसे कई डपोरशंखी वादे है जिनके पूरा होने के राह में हम सब खड़े हैं पर बतौर मुख्यमंत्री योगी जी को अपनी जातीय दुश्मनी निभाने से फुरसत कहाँ है?
मुझे कोई आपत्ति नहीं है की योगी जी राजा भैया से मिलते है या आजम खान के गलबहियां होते है, मुझे आपत्ति इस बात को लेकर भी नही है कि अमनमणि त्रिपाठी के सर पर योगी जी के हाथ क्यों फिरने लगे | मुझे या आपको यह जानना है कि कथित बाहुबलियों के खिलाफ मुखर होने वाले योगी जी को अमन प्रेम का रोग कैसे और किस बिना पर लगा ?-
यह जानने के लिये कुछ दशक पीछे चलते है - नाक की लड़ाई में गोरखपुर विश्व विद्यालय के तत्कालीन वी सी सूरत मणि त्रिपाठी और तब के महंथ दिग्विजय नाथ का दौर आज भी हाता और मंदिर के रूप में जारी है | मंदिर का आशय योगी आदित्य नाथ और उग्र हिदुत्व की राजनीति से है, इसके अलावे शाही समर्थकों का यह केंद्र भी है | हाता वह जगह है जहाँ बाहुबली नेता और पूर्व मंत्री पंडित हरिशंकर तिवारी अपने पुत्र भीष्म शंकर तिवारी और विनय शंकर तिवारी के साथ रहते है | हाता गोरखपुर और पूर्वांचल में ब्राह्मण राजनीति का बड़ा आखाडा माना जाता है | विदित है कि ये जिस पार्टी में रहें पर इनके लोग हर पार्टी में होते है|
अमनमणि त्रिपाठी सजा काट रहे अमरमणि त्रिपाठी के बेटे है जो कभी पंडित हरिशंकर तिवारी के अति करीबी थे पर नवतनवा सीट से चुनाव को लेकर अलग हुए अमरमणि ने अपनी अलग राजनितिक पहचान बनाई और अब अमनमणि उस परंपरा के वाहक हैं|
कहा जाता है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है | अमनमणि वही योगी के दोस्त हैं| पिछले दिनों अमनमणि ने विधान सभा में बताया की एक हिस्ट्रीशिटर उनकी हत्या करना चाहता है| जब उसका नाम बताने की बात आई तब त्रिपाठी ने कहा की नाम का खुलासा करने पर मेरी हत्या अपरिहार्य हो जाएगी, इसलिए कि उसको पूर्व विधायक का संरक्षण प्राप्त है| उनका इशारा हाता की ओर था| बात तब समझ आया जब योगी के करीबी विधायक अमन के समर्थन में गला फाड़ते नजर आये| हद तब हो गई जब सदन ने जाँच की अनुशंसा किये बिना सुरक्षा की गारंटी दे दी|
इस पूरे प्रकरण में राजनितिक साजिश दिख रही है | राजनितिक वर्चस्व को लेकर हाता और मंदिर की खिंच-तान जग जाहिर है | अभी बीते दिनों हाते पर पुलिसिया कार्यवाही में मात खाए योगी शह-मात के खेल में अमन त्रिपाठी को अपनी चाल का मोहरा बना रहे हैं या फिर पूर्वांचल की राजनीति में भाजपा और तिवारी समर्थकों के बीच लकीर खींच रहे हैं | यह नहीं भूलना चाहिए कि ब्राह्मणों की एक बड़ी जमात पंडित हरिशंकर तिवारी के स्मिता से अपने को जोड़ती है | इसकी बानगी कुछ महीने पहले कलक्ट्रेट का गेट ढहते हुए दिखा है | इस बावत भाजपा में रहते हुए कई विधायकों और मंत्रियों के विरोध का स्वर सुने गये कि इसे न छेड़ो बरना उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण आहत होंगें |
योगी जी अपने डपोरशंखी वादों को निभाने में कितना सफल हुए हैं इसका आकलन जनता कर रही है पर अपनी जातीय दुश्मनी निभाने में कितना आगे हैं यह सबको दिख रहा है | बीते विधान सभा चुनाव में चिल्लूपार को लेकर योगी को हकलाते और एडी चोटी का पसीना एक करते सबने देखा पर अकेला दम तिवारी ने अपना रसूख साबित किया | सामने की लड़ाई में हारे योगी अब अंटी मार रहे हैं | अमनमणि त्रिपाठी को शिखंडी के तौर पर इस्तेमाल कर पंडित हरिशंकर तिवारी को धरासाई करना चाहते हैं |
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने योगी को पूर्व में भी समझाया था कि ओखल में सिर मत दो, अभी २०१९ का चुनाव सर पर है | हाते से दुश्मनी से उपजी नाराजगी को दूर करने के लिये योगी के विरोध के बावजूद शिवप्रताप शुक्ला को केंद्र में मंत्री बनाया गया , इसके बावजूद योगी अक्ल के दुश्मन बने हैं, ऐसे में २०१९ को पार पाना भाजपा के लिये आसान हो पर योगी के लिये कत्तई नहीं | (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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