सेवा में विस्तार उन्हीं लोगों को दिया जाता है जो लाइन में हैं; यह अपेक्षा के तार्किक सिद्धांत की उपेक्षा है: उपराष्ट्रपति
यदि पेपर लीक होते रहे, तो चयन की निष्पक्षता का कोई मतलब नहीं रह जाएगा-उपराष्ट्रपति
हम लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को किसी खास विचारधारा या व्यक्ति से जुड़ा हुआ नहीं रख सकते-उपराष्ट्रपति
संस्थाओं का कमज़ोर होना पूरे देश के लिए नुकसानदेह है-उपराष्ट्रपति
राष्ट्र जिन समस्याओं का सामना कर रहा है, उन्हें पृष्ठभूमि में नहीं धकेलाना चाहिए-उपराष्ट्रपति
इस समय राजनीति बहुत विभाजनकारी, बहुत ध्रुवीकृत है; हमें राजनीतिक आग शांत करने वाले की जरूरत है-उपराष्ट्रपति
राजनीतिक गठजोड़ में बदलाव के साथ अपने हितों की पूर्ति के लिए बुद्धिजीवियों द्वारा समूह बनाना चिंताजनक है-उपराष्ट्रपति
सेवानिवृत्ति के बाद की भर्ती, तदर्थ नामकरण संविधान निर्माताओं की दृष्टि के विपरीत है-उपराष्ट्रपति
नई-दिल्ली (PIB): उप राष्ट्रपति सचिवालय ने विज्ञप्ति जारी कर बताया कि, भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज कहा कि, "सेवा में विस्तार, किसी भी रूप में किसी विशेष पद के लिए विस्तार उन लोगों को दिया जाता है जो लाइन में हैं। यह अपेक्षा के तार्किक सिद्धांत को चुनौती देता है। हमारे पास अपेक्षा का सिद्धांत है। लोग एक विशेष खांचे में रहने के लिए दशकों समर्पित करते हैं। विस्तार दर्शाता है कि कुछ व्यक्ति अपरिहार्य हैं। अपरिहार्यता एक मिथक है। इस देश में प्रतिभा की भरमार है। कोई भी अपरिहार्य नहीं है। और इसलिए यह राज्य और केंद्रीय स्तर पर लोक सेवा आयोगों के अधिकार क्षेत्र में है कि जब उनकी ऐसी स्थितियों में भूमिका हो, तो उन्हें दृढ़ रहना चाहिए।"
सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों पर श्री धनखड़ ने कहा की “सेवानिवृत्ति के बाद की भर्ती एक समस्या है। कुछ राज्यों में इसे संरचित किया गया है। कर्मचारी कभी सेवानिवृत्त नहीं होते, खासकर प्रीमियम सेवाओं में। उन्हें कई तदर्थ नाम मिलते हैं। यह अच्छा नहीं है। देश में हर किसी को अधिकार मिलना चाहिए और वह अधिकार कानून द्वारा परिभाषित किया गया है। .... इस तरह की कोई भी उदारता संविधान निर्माताओं की कल्पना के विपरीत है।
मजबूत संस्थानों के महत्व पर श्री धनखड़ ने कहा कि, "संस्थाओं का कमजोर होना। कोई भी संस्था, अगर कमजोर होती है, तो इसका नुकसान पूरे देश को होता है। किसी संस्था को कमजोर करना शरीर पर चुभन की तरह है। पूरा शरीर दर्द में होगा। इसलिए मैं आग्रह करूंगा कि हमें संस्थानों को मजबूत करना होगा। राज्यों और केंद्र को मिलकर काम करना चाहिए। उन्हें तालमेल के साथ काम करना चाहिए। जब राष्ट्रीय हित की बात आती है तो उन्हें एक दूसरे के साथ तालमेल बिठाना होगा।
श्री धनखड़ ने राष्ट्र के समक्ष उपस्थित समस्याओं को अनदेखा करने के बजाय उन्हें संवाद और चर्चा के माध्यम से हल करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, "हम एक ऐसे देश में हैं, जहां विभिन्न विचारधाराओं का शासन होना निश्चित है और क्यों नहीं? यह हमारे समाज में समावेशिता की अभिव्यक्ति है। इसलिए मैं इस मंच से आग्रह करता हूं कि सभी स्तरों पर शासन पर बैठे सभी लोगों को संवाद बढ़ाना चाहिए, आम सहमति में विश्वास करना चाहिए, हमेशा विचार-विमर्श के लिए तैयार रहना चाहिए। राष्ट्र के सामने जो समस्याएं हैं, उन्हें पृष्ठभूमि में नहीं धकेला जाना चाहिए। हम समस्याओं को और अधिक समय तक पीछे नहीं रख सकते। नहीं। इनका जल्द से जल्द समाधान करना होगा... मैं सभी राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेतृत्व से आग्रह करता हूं कि वे एक ऐसा इकोसिस्टम और माहौल बनाएं, जो औपचारिक, अनौपचारिक संवाद, चर्चा कर सके। आम सहमति वाला दृष्टिकोण और चर्चा हमारी सभ्यतागत प्रकृति में गहराई से निहित है। यह एक संदेश है जो हम दुनिया को देते हैं। अब समय आ गया है कि हम इस संदेश का स्वयं अनुसरण करें।
समाज में बुद्धिजीवियों की भूमिका पर उन्होंने कहा की, “बुद्धिजीवियों से हमारा मार्गदर्शन करने की अपेक्षा की जाती है। जब सामाजिक वैमनस्य हो, जब कोई समस्या हो, तो बुद्धिजीवियों को शांत करनेकी अपेक्षा की जाती है। मैं देखता हूँ कि बुद्धिजीवियों के समूह बन जाते हैं। वे ऐसे ज्ञापनों पर हस्ताक्षर कर देते हैं, जिन्हें उन्होंने पढ़ा नहीं होता। उन्हें लगता है कि यदि कोई विशेष व्यवस्था सत्ता में आती है, तो ज्ञापन पर हस्ताक्षर करना पद पाने का पासवर्ड है। अब बुद्धिजीवियों, पूर्व नौकरशाहों, पूर्व राजनयिकों को देखें। आपने सार्वजनिक सेवा का एक स्तर अर्जित किया है, जिसका दूसरों को अनुकरण करना चाहिए। आपको ज्ञापन देने में वस्तुनिष्ठ होना चाहिए। आप राजनीतिक गठबंधनों में बदलाव करके अपने हितों की पूर्ति के लिए कोई समूह नहीं बना सकते।”
इस अवसर पर कर्नाटक के माननीय राज्यपाल श्री थावरचंद गहलोत, कर्नाटक के माननीय मुख्यमंत्री श्री सिद्धारमैया, यूपीएससी की अध्यक्ष श्रीमती प्रीति सूदन, हरियाणा लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष श्री आलोक वर्मा, कर्नाटक लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष श्री शिवशंकरप्पा एस. साहूकार और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।
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