
मोहल्लों के मुखिया चुनने में ईवीएम का खेल ?
उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव की प्रयोगशाला में हुए शोध से निकले भाजपा के विजयरथ की रफ़्तार के रास्ते में कई तरह के सवाल
उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव की प्रयोगशाला में हुए शोध से निकले भाजपा के विजयरथ की रफ़्तार के रास्ते में कई तरह के सवाल हर चुनावी चौराहे पर लालबत्ती की तरह खड़े हैं , भले ही उन्हें तर्कों-कुतर्कों की जमात और सोने के दांत जड़े मीडिया हलक फाड़ कर अनदेखा करने की हिमाकत कर रहे हों | सबसे अहम सवाल ईवीएम के ईमान पर खड़ा किया जा रहा है | सूबे के दो बड़े दलों बसपा,सपा के मुखिया मायावती और अखिलेश यादव का कहना है ‘भाजपा का ईवीएम से गहरा रिश्ता है ,जहां मतपत्रों से चुनाव हुए वहां भाजपा हारी और जहाँ ईवीएम से, वहां जीती |’ पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है ‘ईवीएम से किस बूथ पर किसको कितने वोट मिले, इसकी जानकारी हो जाती है ,जबकि मतपत्रों से होने वाले चुनावों में ऐसा नहीं होता | वे ये भी कहते हैं कि ईवीएम खराब हो सकती है फिर ठीक हो सकती है तो ईवीएम ख़राब भी की जा सकती है | इससे पहले निर्वाचन आयोग ने यह स्वीकार किया है कि ईवीएम में भी खामियां हो सकती हैं | अगर इसकी मरम्मत की जा सकती है तो इसके साथ छेड़छाड़ भी की जा सकती है | कई जगहों पर ऐसा देखा गया कि एक बटन दबाने पर वह वोट भाजपा को गया |’ उनके तर्क को खोखली दलीलों से कतई खारिज नहीं किया जा सकता और उसकी गवाही में भाजपा के चेयरमैन पद के 38.94 % व पार्षद सदस्य पद के 46.03 % उम्मीदवारों की जमानतें जब्त हो गईं , 36 जिला मुख्यालयों में भाजपा बुरी तरह से हारी , और तो और मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री सहित भाजपा के कई दिग्गज नेता अपने ही घरों को नहीं बचा पाए वहीं तमाम हथकंडो के बावजूद शाहजहांपुर की हार को , रखा जा सकता है और यह सब मतपत्रों पर लगे ठप्पों का कमाल है | इसके आलावा उत्तर प्रदेश के चुनाव आयुक्त का बयान,’ लखनऊ में सबसे उम्दा ईवीएम दी गईं थीं फिर भी खराब हुईं यह बदइन्तजामी और अफसरों की नालायकी है ’ बड़े सवाल नहीं खड़ा करता है ? सोशल मीडिया पर ईवीएम के ब्लूटुथ से हैक किये जाने की खबर भी तेजी से वायरल हो रही है ! यही नहीं चुनाव आयुक्त वोटर लिस्ट की जबर्दस्त खामियों पर भी जम कर बरसे | लाखों वोटर मतदान केंद्र से मतदाता सूची में अपना नाम न पाकर मायूस वापस लौटे उनमे पूर्व मंत्री कलराज मिश्र ,राज्यसभा सदस्य संजय सेठ भी शामिल थे | लौटे तो और भी मतदाता या जानबूझ कर लौटाए गये ? यह सवाल बेहद अहम है | लखनऊ समेत पूरे सूबे में ईवीएम खराब हुईं और उन्हें बदलने में घंटों लगाये गये जबकि यह चंद मिनटों में हो सकता था | इस दौरान मतदान रुका रहा , ऐसे माहौल में मतदान करने के लिए आये मतदाताओं के बीच दल विशेष के लोग प्रायोजित कार्यक्रम के तहत भ्रामक बातों से उन्हें वापस जाने के लिए उकसाने का काम करते रहे ? मायूस और मोबाइलयुगीन डिजिटल इण्डिया का मतदाता अपने टीवी सीरियल्स,फेसबुक-वाट्सअप चैट,फैशन,फ़ूड-फन,फिल्म,डांस और हॉट-सेक्सी सांग्स के साथ छुट्टी के भरपूर मजे लेने के लिए वापस हो गया | यूं भी शहरी मतदाता अपने 10-12 फुट के ड्राइंग-डाइनिंग में सरकारें बनाने-गिराने या टीवी पर होने वाली बहसों में मस्त रहता है | तब सवाल उठता है 50 फीसदी से अधिक मतदान शहरों में किसने किया ? मतदान केन्द्रों पर बचे हुए भाजपा समर्थकों ने , भाजपा कार्यकर्ताओं/कार्यकर्तियो के जरिये उसी बीच घर-घर से जबरिया या लालच दे निकाल कर लाये गये भाजपा के वोटरों ने ? और यदि ऐसा ही हुआ है तो क्या इसे ईमानदारी कहा जा सकता है या इसे निष्पक्ष मतदान कहा जा सकता है ? यह महज आरोप नहीं है 10 लाख भगवा पटुका और लाखों की तादाद में भगवा रंग के गमछे आर्डर देकर मथुरा व लखनऊ की फैक्ट्रियों में बनवा कर पूरे प्रदेश में किसने बांटे ? लखनऊ में घड़ी बांटने का मामला भी किसी से छुपा है ? एक सवाल और जुबान दर जुबान सूबे के गलियारों में गूँज रहा है कि मेरा वोट तो बसपा या सपा या कांग्रेस को था फिर कहां गया ? कई उम्मीदवार भी ऐसे ही आरोप लगा रहे हैं ?
यह लाइने यूं ही लंतरानी नहीं लिखी जा रही हैं जरा पढ़े-लिखे शहरी मतदाता की सोंच की बानगी पे गौर कीजिये,’ अमां कुल तो बुढीवें खड़ी हैं बस एकै चेहरा है ठीक-ठाक लेकिन पार्टी गड़बड़ है , का वोट देई |’ या ‘ नों हॉट ...सो व्हाट...यार कुछ तो देखने दिखाने वाला हो तभी लाइन में लगने का मजा आये |’ क्या इस मानसिकता के वोटरों ने 50 फीसदी से अधिक का मतदान किया ? उस पर गजब ये कि वार्डों के परिसीमन में जाति विशेष के साथ हिन्दू बाहुल्य , मुस्लिम बाहुल्य इलाकों को ध्रुवीकरण के नजरिये से जोड़ने-घटाने के चक्कर में मोहल्ले के मोहल्ले गायब हो गये वरना 5 हजार की संख्या को लापरवाही या चूक मानी जा सकती है ? भाजपा के ही एक पदाधिकारी का बयान है कि राजधानी लखनऊ की वोटर लिस्ट से लगभग डेढ़ लाख नाम गायब हो गये जिस कारण राजधानी में हमारी 10-15 सीटें कम हो गईं | इससे भी आगे वोट प्रतिशत पर नजर डालें तो अकेले मेयर सीट पर भाजपा का वोट 3.62 फीसदी घटा जो भाजपा के प्रति जन नाराजगी साफ-साफ जाहिर करता है | और सूबे भर में निर्दलियों की भारी-भरकम जीत समर्पित कार्यकर्ताओं की बेकदरी के साथ जनता जनार्दन की सोंच को दर्शाता है | कुल मिला कर मोहल्लों के मुखिया चुनने के लिए मुख्यमंत्री,सारे मंत्री,केन्द्रीय मंत्री,सांसद,विधायक,संगठन के नेता,संघ के नेता कार्यकर्त्ता और हिंदूवादी संगठनों के कद्दावर कदों के साथ प्रशासन में जमे बैठे ‘पहली पसंद भगवा रंग’ के जुटने के बाद भी लोकसभा,विधानसभा चुनावों से कम वोट भाजपा को मिला जो उसकी लोकप्रियता के घटने के साफ संकेत हैं | भले ही भाजपा के नेता अपनी पीठ अपने हाथों से थपथपाते हुए गुजरात चुनावों तक में विजयी महापौरों को अपने कंधो पर बिठाये हल्ला मचाये हों |
ईवीएम की गड़बड़ी के हल्ले में भाजपा के हारे उम्मीदवारों की गुंडागर्दी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जिलों से खबरें आ रही हैं कि तमाम जगहों पर भाजपा के उम्मीदवार हारे तो वहां अधिकारीयों-कर्मचारियों से मार-पीट के समाचार अखबारों में सुर्खियाँ बटोर रहे हैं , बरेली थप्पड़ की गूंज 5,कालीदास मार्ग, लखनऊ तक सुनी गई | यह बात दीगर है कि उसे अनसुना कर दिया गया , हालांकि अफसरों, कर्मचारियों में खासा रोष है | इतने आरोपों के बावजूद मुख्यमंत्री ने मायावती को चुनौती देते हुए कह डाला कि ‘ईवीएम पर भरोसा नहीं है तो इस्तीफ़ा दें बसपा के मेयर हम दोबारा वहां मतपत्रों से चुनाव करा देंगे , वहां भाजपा का प्रत्याशी जीतेगा |’ क्या जो जनादेश बसपा को मिला है वह बेईमानी से मिला है ? सवाल बहुत हैं और अभी उठेंगे भी , उठने भी चाहिए और उसका जबाब भी सरकार को ही देना होगा | यही लोकतंत्र की गरिमा बनाये रखने के लिए जरूरी भी है | इस सबसे इतर और अहम सवाल है कि जब लगातार ईवीएम पर आरोप लग रहे हैं तो उसके विकल्प पर सोंचने की जरूरत नहीं है ? ऐसे में बैलेट पेपर के आलावा एक विकल्प है चुनावों को डिजिटल करके आधार से जोड़ दिया जाना चाहिए | यह विकल्प देश का युवा भी पसंद करेगा जिसका दम भाजपा के नेता भरते नहीं थकते | उसके आलावा जब आधार रसोई में,राशन में,बैंक में,टैक्स में,स्कूल में,गर्भ में पल रहे बच्चे में,शौचालय में,श्मशान में,अस्पताल में और सड़क से लेकर बाजार तक में जरूरी है तो मतदान में क्यों नहीं ?
-राम प्रकाश वरमा-
(साभार:प्रियंका न्यूज़)
सम्पादक - स्वतंत्र भारत न्यूज़
swatantrabharatnews.com