भारत ने अज़रबैजान के बाकू में आयोजित कॉप29 शिखर सम्मेलन में जलवायु वित्त पर उच्च स्तरीय मंत्रिस्तरीय बैठक में समान विचारधारा वाले विकासशील देशों की ओर से बयान दिया: पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
भारत ने बल देकर कहा कि समानता और साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं के सिद्धांतों को कॉप29 में नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य पर एक मजबूत परिणाम के लिए आधार बनाना चाहिए।
विकासशील देशों को विकास-अवरोधक शर्तों के अधीन किए बिना, 2030 तक हर वर्ष कम से कम 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने की आवश्यकता है: भारत ने विकसित देशों से कहा
नई-दिल्ली (PIB): बाकू में यूएनएफसीसीसी शिखर सम्मेलन के कॉप29 में 14.11.2024 को जलवायु वित्त पर उच्च स्तरीय मंत्रिस्तरीय बैठक में समान विचारधारा वाले विकासशील देशों (एलएमडीसी) की ओर से हस्तक्षेप करते हुए भारत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव एक आपदा से दूसरी आपदा के रूप में तेजी से स्पष्ट होते जा रहे हैं।
यह वक्तव्य देते हुए, श्री नरेश पाल गंगवार, एएस (एमओईएफसीसी) और कॉप29 में भारत के प्रमुख वार्ताकार ने कहा कि चरम मौसम की घटनाएं इतनी ज्यादा हो रही हैं कि इसका असर विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के लोगों पर पड़ रहा है। इसलिए, जलवायु कार्रवाई पर महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, " हम जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपनी लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। हम यहां जो निर्णय लेंगे, वह हम सभी को, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के लोगों को, न केवल महत्वाकांक्षी जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण कार्रवाई करने में सक्षम बनाएगा, बल्कि जलवायु परिवर्तन के अनुकूल भी बनाएगा। इस संदर्भ में यह सीओपी ऐतिहासिक है । "
बयान में दृढ़ता से कहा गया है कि ऐतिहासिक जिम्मेदारियों और क्षमताओं में अंतर को पहचानते हुए, यूएनएफसीसीसी और इसके पेरिस समझौते में जलवायु परिवर्तन के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया की परिकल्पना की गई है, जिसमें समानता और साझा लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं के सिद्धांतों का पालन किया गया है। विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों, सतत विकास लक्ष्यों और गरीबी उन्मूलन, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के संबंध में, को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। बयान में आगे कहा गया है कि इन सिद्धांतों को कॉप29 में नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य पर एक मजबूत परिणाम के लिए आधार बनाना चाहिए।
भारत के हस्तक्षेप ने दोहराया कि विकसित देशों को अनुदान, रियायती वित्त और गैर-ऋण-प्रेरित समर्थन के माध्यम से 2030 तक हर वर्ष कम से कम 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर उपलब्ध कराने और जुटाने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए, जो विकासशील देशों की उभरती जरूरतों और प्राथमिकताओं को पूरा करे, बिना उन्हें विकास-अवरोधक शर्तों के अधीन किए बिना।
वक्तव्य में माना गया कि ऐसा परिदृश्य कॉप30 की ओर बढ़ने के लिए महत्वपूर्ण है, जहाँ सभी पक्षों से अपने अद्यतन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाती है। इस परिणाम को प्राप्त करने से हमारे वैश्विक जलवायु प्रयासों में सार्थक प्रगति के लिए एक ठोस आधार तैयार होगा, ऐसा वक्तव्य में कहा गया ।
जलवायु वित्त पर नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्यों (एनसीक्यूजी) के महत्व पर आगे बात करते हुए , वक्तव्य में इस बात पर जोर दिया गया कि इसे निवेश लक्ष्य में नहीं बदला जा सकता है, क्योंकि यह विकसित देशों से विकासशील देशों के लिए एकतरफा प्रावधान और जुटाव लक्ष्य है। पेरिस समझौते में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जलवायु वित्त किसे प्रदान करना और जुटाना है - यह विकसित देश ही हैं।
भारत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी भी नए लक्ष्य के घटकों को शामिल करना, जो सम्मेलन और उसके पेरिस समझौते के अधिदेश से बाहर हैं, अस्वीकार्य है। बयान में पेरिस समझौते और उसके प्रावधानों पर फिर से बातचीत की किसी भी गुंजाइश को खारिज कर दिया गया है।
इस बात पर जोर देते हुए कि पारदर्शिता और विश्वास किसी भी बहुपक्षीय प्रक्रिया का आधार हैं, भारत ने कहा कि जलवायु वित्त में क्या शामिल है, इस बारे में कोई समझ नहीं है। विकसित देशों का अपनी मौजूदा वित्तीय और प्रोद्योगिक प्रतिबद्धताओं के संबंध में प्रदर्शन निराशाजनक रहा है।
भारत के हस्तक्षेप में कहा गया है कि यूएनएफसीसीसी और उसके पेरिस समझौतों के प्रावधानों के अनुरूप जलवायु वित्त की स्पष्ट परिभाषा पारदर्शिता को बढ़ावा देगी और रचनात्मक विचार-विमर्श को आगे बढ़ाने तथा विश्वास निर्माण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस संबंध में, बयान में कहा गया है, "हम वित्त पर स्थायी समिति द्वारा किए गए काम पर ध्यान देते हैं , हालांकि, जलवायु वित्त की सार्थक परिभाषा पर पहुंचने के लिए और काम करने की आवश्यकता है । "
हस्तक्षेप में विकसित देशों को ध्यान दिलाया गया कि वे 2020 तक संयुक्त रूप से प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर जुटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिसकी समय सीमा 2025 तक बढ़ा दी गई है। जबकि 100 बिलियन डॉलर का लक्ष्य विकासशील देशों की वास्तविक आवश्यकताओं की तुलना में पहले से ही अपर्याप्त है, जुटाई गई वास्तविक राशि और भी कम उत्साहजनक रही है। " 100 बिलियन डॉलर की प्रतिबद्धता 15 साल पहले यानी 2009 में की गई थी। हर पाँच साल में महत्वाकांक्षाओं को व्यक्त करने के लिए हमारे पास एक समान समय सीमा है। बयान में कहा गया है, "जलवायु वित्त के मामले में भी ऐसी ही ज़रूरत है। हमें पूरी उम्मीद है कि विकसित देश बढ़ी हुई महत्वाकांक्षाओं को सक्षम करने और इस कॉप29 को सफल बनाने की अपनी ज़िम्मेदारी को समझेंगे।"
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(फ़ोटो साभार- IISD / ENB फ़ोटो)
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