राष्ट्रपति ने दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 में संशोधन के लिए अध्यादेश को मंजूरी दी. - क्या इस अध्यादेश से बेईमानों लोगों को रोका जा सकेगा ?-
भारत के राष्ट्रपति ने दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 में संशोधन के लिए अध्यादेश को आज मंजूरी दी।
अध्यादेश का उद्देश्य अवांछनीय एवं बेईमान लोगों को उपर्युक्त संहिता के प्रावधानों का दुरुपयोग करने अथवा उन्हें निष्प्रभावी बनाने से रोकने के लिए आवश्यक हिफाजती इंतजाम करना है। संशोधनों का उद्देश्य उन लोगों को इसके दायरे से बाहर रखना है जिन्होंने जानबूझकर डिफॉल्ट किया है अथवा जो फंसे कर्जों (एनपीए) से संबंधित हैं और जिन्हें नियमों का अनुपालन न करने की आदत है और इस तरह जिन्हें किसी कंपनी के दिवाला संबंधी विवादों के सफल समाधान में बाधक माना जाता है। इस तरह के विवाद समाधान अथवा परिसमापन प्रक्रिया में भाग लेने से इस तरह के लोगों को प्रतिबंधित करने के अलावा उपर्युक्त संशोधन में इस तरह की रोकथाम के लिए यह भी निर्दिष्ट किया गया है कि ऋणदाताओं की समिति मंजूरी देने से पहले विवाद समाधान योजना की लाभप्रदता एवं संभाव्यता सुनिश्चित करेगी। भारतीय दिवाला एवं दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) को भी अतिरिक्त अधिकार दिए गए हैं।
उल्लेखनीय है कि आईबीबीआई के नियम-कायदों को भी हाल ही में संशोधित किया गया है, ताकि विवाद समाधान पेश करने वाले आवेदक के पूर्ववर्ती से संबंधित सूचनाओं के साथ-साथ वरीयता, कम मूल्यांकन या धोखाधड़ी से जुड़े लेन-देन के बारे में भी जानकारियां ऋणदाताओं की समिति के समक्ष पेश की जा सकें, जिससे कि वह समुचित जानकारी के आधार पर इस बारे में उपयुक्त निर्णय ले सके।
बेहतर अनुपालन के लिए अन्य कदम उठाने के अलावा बैंकिंग क्षेत्र में सुधार और समाधान प्रक्रिया से अवांछनीय तत्वों को बाहर रखना भी सरकार के मौजूदा सुधारों का एक हिस्सा है। इसी तरह धनराशि के अन्यत्र उपयोग के लिए कॉरपोरेट ढांचे का दुरुपयोग रोकने हेतु डिफॉल्ट करने वाली कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई भी सरकार मौजूदा सुधार कार्यक्रम का एक हिस्सा है। इससे औपचारिक अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और ईमानदार कारोबारियों एवं उभरते उद्यमियों को विश्वसनीय एवं स्थिर नियामकीय माहौल में काम करने के लिए प्रोत्साहित करने में मदद मिलेगी।
उपर्युक्त अध्यादेश के जरिए दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 की धारा 2, 5, 25, 30, 35 एवं 240 में संशोधन किए गए हैं और इसके साथ ही संहिता में 29ए तथा 235ए नामक नई धाराएं जोड़ी गई हैं।
संशोधनों का सार नीचे दिया गया हैः
1. संहिता की धारा 2 के अनुच्छेद (ई) को तीन अनुच्छेदों ने प्रतिस्थापित किया है। इससे व्यक्तियों एवं भागीदारी कंपनियों से संबंधित संहिता के भाग III को विभिन्न चरणों में शुरू करने में मदद मिलेगी।
2. संहिता की धारा 5 के अनुच्छेद (25) एवं (26), जो ‘समाधान संबंधी आवेदक’ को परिभाषित करते हैं, में संशोधन किया गया है, ताकि इस बारे में स्थिति स्पष्ट हो सके।
3. संहिता की धारा 25(2)(एच) में संशोधन किया गया है ताकि ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) से मंजूरी मिलने के बाद समाधान संबंधी प्रोफेशनल अर्हता की शर्ते निर्दिष्ट कर सके और इसके साथ ही कॉरपोरेट कर्जदार के कारोबार के परिचालन स्तर एवं इसकी जटिलता को ध्यान में रखते हुए संभावित समाधान आवेदकों से समाधान योजनाएं आमंत्रित की जा सकें।
4. धारा 29ए एक नई धारा है जिसके जरिए कुछ विशेष व्यक्तियों को समाधान आवेदक बनने के अयोग्य घोषित किया जा सकता है। ऐसे लोग जिन्हें अयोग्य घोषित किया जा रहा है उनमें निम्नलिखित शामिल हैं।
· जानबूझकर डिफॉल्ट करने वाले व्यक्ति या कंपनी
· ऐसे लोग या कंपनी जिनके खातों को एक साल या उससे अधिक अवधि के लिए गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के रूप में वर्गीकृत कर दिया गया है और जो ब्याज सहित अपनी बकाया राशि तथा समाधान योजना पेश करने से पहले खाते से संबंधित प्रभार का निपटान करने में असमर्थ हैं।
· ऐसे लोग या निकाय जिन्होंने इस संहिता के तहत कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया या परिसमापन प्रक्रिया से गुजर रहे किसी कॉरपोरेट कर्जदार के संबंध में किसी ऋणदाता को कार्यान्वयन योग्य गारंटी दे रखी है।
· उपर्युक्त लोगों या निकायों से संबंधित ऐसे व्यक्ति जो प्रमोटर हैं या प्रस्ताव पेश करने वाले आवेदक के नियंत्रण वाले प्रबंधन में हैं अथवा ऐसे व्यक्ति जो समाधान योजना के कार्यान्वयन के दौरान कॉरपोरेट कर्जदार के नियंत्रण वाले प्रबंधन में शामिल होने वाले हैं।
5. यह भी प्रावधान किया गया है कि सीओसी ऐसी किसी भी समाधान योजना को नामंजूर कर देगी जिसे अध्यादेश जारी होने से पहले पेश किया गया है, लेकिन जिसे अब तक मंजूरी नहीं मिली है। सीओसी ऐसे आवेदक द्वारा पेश की गई समाधान योजना को भी अस्वीकृत कर देगी जिसे नई धारा 29ए के तहत अयोग्य करार दिया गया है। ऐसे सभी मामलों जिनमें नामंजूर करने के कारण सीओसी के विचारार्थ कोई भी योजना उपलब्ध नहीं रहेगी, तो वैसी स्थिति में समिति नई समाधान योजनाओं को आमंत्रित कर सकती है। 6. धारा 30(4) में संशोधन किया गया है ताकि सीओसी अपनी मंजूरी देने से पहले आईबीबीआई द्वारा निर्दिष्ट शर्तों के अलावा किसी समाधान योजना की संभाव्यता एवं लाभप्रदता पर विचार करने के लिए बाध्य होगी।
7. ऐसे व्यक्ति की संपत्ति की बिक्री पर धारा 35(1)(एफ) में संशोधन के जरिए रोक लगा दी गई है जिन्हें धारा 29ए के तहत कोई भी समाधान योजना पेश करने के अयोग्य घोषित कर दिया गया है।
8. संहिता के प्रावधानों के साथ-साथ निर्धारित नियम-कायदों का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए नई धारा 235ए के तहत ऐसे मामलों में संबंधित प्रावधानों के दुरुपयोग के लिए दंड का प्रावधान किया गया है जिनमें किसी विशेष पेनाल्टी या दंड का प्रावधान नहीं किया गया है। जुर्माना राशि अच्छी-खासी होगी, जो एक लाख रुपये से कम नहीं होगी और जिसे बढ़ाकर दो लाख रुपये तक किया जा सकता है।
9. संहिता की धारा 240, जिसमें आईबीबीआई द्वारा नियम-कायदे बनाने का अधिकार दिया गया है, में अनुवर्ती संशोधन किए गए हैं, ताकि धारा 25(2)(एच) और धारा 30(4) के तहत अधिकारों का नियमन किया जा सके।
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