नई दिल्ली में पोंगल उत्सव के दौरान प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ: प्रधानमंत्री कार्यालय
नई दिल्ली (PIB): प्रधानमंत्री कार्यालय ने "नई दिल्ली में पोंगल उत्सव के दौरान प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ" जारी किया।
पोंगल उत्सव के दौरान प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ:
वणक्कम, आप सभी को पोंगल के पर्व की अनेक-अनेक शुभकामनाएं ! इनिय पोङ्गल् नल्वाळ्तुक्कल् !
पोंगल के पवित्र दिन तमिलनाडु के हर घर से पोंगल धारा का प्रवाह होता है। मेरी कामना है उसी तरह आपके जीवन में भी सुख, समृद्धि और संतोष की धारा का प्रवाह निरंतर होता रहे। कल ही देश ने लोहड़ी का पर्व धूमधाम से मनाया है। कुछ लोग आज मकर संक्रांति-उत्तरायण मना रहे हैं, कुछ लोग शायद कल मनाएंगे। माघ बिहू भी बस आने ही वाला है। मैं इन सभी पर्वों की सभी देशवासियों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, शुभकामनाएं देता हूं।
साथियों,
यहां मुझे मेरे कई परिचित चेहरे नजर आ रहे है। पिछले साल भी हम सब तमिल पुथांडु के अवसर पर यहां मिल चुके हैं। मैं मुरुगन जी को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने मुझे इस अद्भुत आयोजन का हिस्सा बनने का अवसर दिया। ये ऐसा है, जैसे मैं अपने परिवार और दोस्तों के साथ कोई उत्सव मना रहा हूं।
साथियों,
संत तिरुवल्लूवर ने कहा है- तळ्ळा विळैयुळुम् तक्कारुम् ताळ्विला चेव्वरुम् सेर्वदु नाडु यानी अच्छी फसल, पढ़े लिखे व्यक्ति और ईमानदार व्यापारी, ये तीनों मिलकर राष्ट्र निर्माण करते हैं। तिरुवल्लूवर जी ने पॉलिटिशियन का उल्लेख नहीं किया है, ये हम सबको संदेश है। पोंगल पर्व में ताजी फसल को भगवान के चरणों में समर्पित करने की परंपरा है। इस पूरी उत्सव परंपरा के केंद्र में हमारे अन्नदाता, हमारे किसान हैं। और वैसे भी भारत का हर त्योहार किसी न किसी रूप में गांव से, किसानी से, फसल से जुड़ा हुआ होता है।
मुझे याद है, पिछली बार हमने इस बारे में भी चर्चा की थी कि कैसे हमारे Millets या श्री अन्न तमिल संस्कृति से जुड़े हुए हैं। मुझे खुशी है कि इस सुपरफूड को लेकर देश में और दुनिया में एक नई जागृति आई है। हमारे बहुत से नौजवान, मिलेट्स- श्री अन्न को लेकर नए स्टार्टअप शुरू कर रहे हैं और ये स्टार्टअप्स आज बहुत पॉपुलर हो रहे हैं। श्री अन्न के उत्पादन से हमारे देश के तीन करोड़ से अधिक छोटे किसान जुड़े हुए हैं। हम श्री अन्न को प्रमोट करते हैं तो सीधे-सीधे इन तीन करोड़ किसानों का भला होता है।
साथियों,
पोंगल के अवसर पर तमिल महिलाएं अपने घर के बाहर कोलम बनाती हैं। सबसे पहले वो आटे का इस्तेमाल करके जमीन पर कई Dots बनाती हैं। और एक बार जब सारे Dots बन जाते हैं, तो हर एक का एक अलग महत्व होता है। ये तस्वीर ही मन लुभाने वाली होती है। लेकिन कोलम का असली रूप तब और वैभवशाली हो जाता है, जब ये सभी Dots मिला दिए जाते हैं और बड़ी कलाकृति बनाकर इसमें रंग भरा जाता है।
हमारा देश और इसकी विविधता भी कोलम के जैसी है। जब देश का कोना-कोना एक दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़ता है, तो हमारी शक्ति, एक अलग रूप दिखाती है। पोंगल का पर्व भी एक ऐसा ही पर्व है, जो एक भारत-श्रेष्ठ भारत की राष्ट्र भावना को दर्शाता है। बीते समय में, काशी-तमिल संगमम और सौराष्ट्र तमिल संगमम अत्यंत महत्वपूर्ण परंपरा शुरू हुई है, और उसमें भी ये भाव प्रकट होता है, ये भावना दिखती है। इन सभी आयोजनों में बहुत बड़ी संख्या में हमारे तमिल भाई-बहन उत्साह से हिस्सा लेते हैं।
साथियों,
एकता की यही भावना 2047 तक विकसित भारत के निर्माण की सबसे बड़ी शक्ति है, सबसे बड़ी पूंजी है। आपको याद होगा, लाल किले से मैंने जिस पंच प्राण का आह्वान किया है, उसका प्रमुख तत्व देश की एकता को ऊर्जा देना है, देश की एकता को एकता को मजबूत करना है। पोंगल के इस पावन पर्व पर हमें देश की एकता को सशक्त करने का संकल्प दोहराना है।
साथियों,
आज यहां बहुत से कलाकार और जाने-माने कलाकार, गणमान्य कलाकार अपनी प्रस्तुति के लिए तैयार हैं, आप सब भी इंतजार करते होंगे, मैं भी इंतजार करता हूं। ये सभी कलाकार राजधानी दिल्ली में तमिलनाडु को जीवंत बनाने वाले हैं। कुछ पल हमें तमिल जीने का मौका मिलेगा, ये भी एक सौभाग्य होता है। मेरी इन सभी कलाकारों को अनेक-अनेक शुभकामनाएं हैं। मैं फिर एक बार मुरगन जी का धन्यवाद करता हूं।
मुणक्कम!
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