देश की संवैधानिक संस्थाओं का पतन चिंताजनक है: रघु ठाकुर
मुझे विश्वास है कि, उच्च न्याय पालिका मेरे प्रश्नों का उत्तर देगी और अपने लोकतांत्रिक दायित्वों का निर्वहन करेगी क्योंकि लोकतंत्र में जनता ही सर्वाेपरि होती है: रघु ठाकुर
भोपाल: लोकतान्त्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक- महान समाजवादी चिंतक व् विचारक- रघु ठाकुर ने देश की संवैधानिक संस्थाओं पर अपनी विशेष प्रस्तुति में कहा कि, देश की संवैधानिक संस्थाओं का पतन चिंताजनक है।
उन्होंने कहा कि, मार्च 2020 से आरंभ हुई कोरोना महामारी से देश के सभी पक्ष प्रभावित हुए हैं, परन्तु न्यायपालिका जो एक अर्थ में निर्वाचित सरकार से भी महत्वपूर्ण स्थान पर मानी जाती है, की कार्यविधि चिंताजनक है। कोरोना के सुरक्षा के नाम पर सर्वाेच्च न्यायालय के न्यायाधीश महोदय लम्बे समय तक अदालतों के भव्य कक्षों में आने के बजाय घरों से ही कार्य निपटातेे रहे। कोरोना का संक्रमण कहीं भी फैल सकता है, चाहे वह सर्वाेच्च न्यायालय की बिल्डिंग हो या किसी न्यायाधीश का घर। मूल प्रश्न यह है कि, कोरोना के संक्रमण के बचाव के लिए नियमित सेनेटाइज़ेशन किया जाए और वह सेनेटाइजेशन सरकारी तंत्र सरकारी खर्च पर माननीय न्यायाधीशों के घर या उनके अदालत के कक्ष में करता ही है। कोरोना महामारी के दौर में भी माननीय न्यायाधीश महोदयों के सुरक्षाकर्मी नियमित 24 घंटे उनके घरों की सुरक्षा करते रहे है, अन्य प्रशासनिक अधिकारी और कर्मचारी भी कोरोना महामारी के दौरान अपना कर्तव्य निभाते रहे है। लगभग 350 चिकित्सक देश में अपने कर्तव्य को निभाते हुए संक्रमित हुए और कई चिकित्सक कोरोना की मौत के शिकार भी हुए। कहने को पुलिसकर्मी और राजस्व विभाग के कर्मचारी देर रात लाॅकडाऊन और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कार्य करते रहे और उनमें से भी अनेक महामारी की मौत के शिकार हो गए।
परन्तु यह कितना विचित्र है कि, जिस सर्वाेच्च न्यायालय के न्यायाधीश को सर्व सुविधाएं जनता के खजाने से उपलब्ध है, वे अपने घरों से न्यायपालिका के कक्ष तक आने को तैयार नहीं। ऑनलाईन सुनवाई में कुछ एक मुकदमें सुने गए परन्तु जितना काम एक दिन में होना चाहिए उतना काम महीनों में भी नहीं हुआ। यहाँ तक की बहुत सारे नए और सामान्य लोगों के वकील काम के अभाव में एक प्रकार की भुखमरी के शिकार हो गए। मुझे दिल्ली सुप्रीम कोर्ट के एक जूनियर वकील और पटना हाई कोर्ट के एक सीनियर वकील ने कहा कि, हम लोग 6 माह से लगभग बेरोजगार है, परन्तु बेरोजगारी भत्ता भी नहीं माँग सकते। जब सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीश इतने कोरेाना के डर से भयभीत है तो फिर उच्च न्यायालय और न्यायपालिका का तो कहना ही क्या है।
जबलपुर उच्च न्यायालय के एक वकील साहब ने बताया कि, हाई कोर्ट में सीधे किसी भी प्रकार की फाइलें जमा नहीं हो रही। उन्हें पहले स्टेट वाॅर कौंसिल के दफ्तर में जमा करना होता है, और फिर वे 4-5 दिन के बाद माननीय न्यायाधीश के पास पहुंचाई जाती है, अगर यह सच है तो इसका अर्थ क्या हुआ? क्या यह माना जाए कि, अगर फाइलों से कोई संक्रमण होना है, तो वह पहले वकील साहवान को हो जाए फिर संक्रमण विहीन फाइल न्यायाधीश महोदय के पास जाएं। यह कितना विचित्र है कि, उच्च पदों पर बैठे लोगों जिनके ऊपर करोड़ों रूपये की राशि जनता की प्रतिवर्ष खर्च होती है, वह इतने भयभीत है कि, अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वाहन करने को तैयार नहीं है।
पटना हाई कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील श्री बी.एन. सिंह ने लो.स.पा. की ओर से समान चुनाव चिह्न बिहार विधानसभा में आवंटित कराने की माँग को लेकर एक याचिका पटना हाईकोर्ट में फाइल की थी। दरअसल उन्होंने 1 अक्टूबर को दो याचिकाएं पटना हाई कोर्ट में लगायी थी, एक यह कि निर्वाचन कानून के अनुसार चुनाव आयोग को एक निर्धारित अवधि के पूर्व चुनाव कराने के निर्णय की सार्वजनिक सूचना आमजन को देना चाहिए। उनके अनुसार धारा 15 में यह नियम है कि, चुनाव आयोग को 6 माह पूर्व अपनी सूचना सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करना चाहिए। उनके द्वारा दाखिल दूसरी याचिका लो.स.पा. की ओर से थी। लो.स.पा के बिहार राज्य के महासचिव श्री श्याम नंदन ठाकुर ने 7 सितम्बर 2020 को चुनाव आयोग के नियम की धारा 10 के अनुसार यह शपथ पत्र दिया था कि उनका दल बिहार विधानसभा चुनाव में 10 प्रतिशत से अधिक प्रत्याशी खड़ा करेगा। उन्होंने अपने आवेदन के साथ 32 विधानसभा क्षेत्रों के नाम की सूची भी चुनाव आयोग को भेजी थी और नियमानुसार सभी प्रत्याशियों को समान चुनाव चिह्न आवंटित करने का अनुरोध किया था। 7 सितम्बर को स्पीड पोस्ट से यह आवेदन उन्होंने भेजा, जिसकी रसीद उनके पास है, और डाक विभाग के नियमों के अनुसार अधिकतम 11 सितंबर को यह आवेदन मुख्य चुनाव आयुक्त महोदय के कार्यालय में प्राप्त हो चुका होगा। परन्तु चुनाव आयोग द्वारा चुनाव चिह्न आवंटन को लेकर कोई कार्यवाही नहीं की गई। जबकि उनके ही अनुसार आवेदन देने की अंतिम तिथि 25 सितम्बर थी। जब श्री श्याम नंदन ने यह जानकारी हमारे दिल्ली कार्यालय में दी, तब पार्टी की ओर से हमने भी चुनाव आयोग को सम्पर्क करने का प्रयास किया और आवेदन पत्र भेजा, जिसे चुनाव आयोग द्वारा 7 अक्टूबर को उसको खारिज करने की सूचना दी गई कि, यह आवेदन निर्धारित समय के पूर्व नहीं किया गया। चुनाव आयोग ने डाक घर विभाग की स्पीड पोस्ट की रसीद को भी संज्ञान में नहीं लिया और अपने अधीनस्थों की गलती को ढकने का काम किया। इसको लेकर बिहार राज्य पार्टी की ईकाई की पहल पर श्री बी.एन. सिंह ने पटना हाई कोर्ट में एक याचिका पेश की। यह याचिका कोई सामान्य याचिका नहीं थी बल्कि एक राजनैतिक दल के विधि संगत लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा की याचिका थी। परन्तु आज लगभग 20 दिन होने के बाद भी कई बार तुरंत सुनवाई का आवेदन लगने के बाद भी उनकी याचिका पर सुनवाई नहीं हुई। क्या यह लोकतंत्र की सीधी-सीधी संवैधानिक अधिकार सम्पन्न के द्वारा की जा रही हत्या नहीं है?-
श्री बी.एन. सिंह जो पटना हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील हैं और जाने-माने समाज सेवी है। जिन्होंने स्व. कर्पूरी ठाकुर के साथ काम किया है। उन्होंने फोन पर बताया कि, पटना उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश महोदय कोरोना के भय से कई माह से घर से नहीं निकल रहे है, और उनके घर पर जाकर याचिका देने के बाद भी नहीं सुन रहे है न खारिज कर रहे है। क्या यह न्याययिक विलम्ब याचिकाकर्ता के संवैधानिक अधिकारों के हनन का माध्यम नहीं बनेगा? और क्या इस प्रकार का हनन न्यायपालिका की कर्तव्यहीनता का कारण नहीं हेागा?-
क्या ऐसी घटनाओं से आम लोगों का लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं के प्रति अविश्वास पैदा नहीं होगा? और क्या लोग लोकतांत्रिक प्रणाली के संवैधानिक और वैधानिक मार्ग से न्याय नहीं मिलने से निराश होकर हिंसा की ओर नहीं बढ़ेंगे?-
यह देश का दुर्भाग्य है कि उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे लोग अपनी कर्तव्यहीनता और महामारी से भयभीत होकर अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह भी नहीं कर रहे।
मैं न्याय पालिका और चुनाव आयोग के संवैधानिक स्थान व पद का सम्मान करते हुए यह प्रश्न जन संचार के माध्यम से उनसे पूँछना चाहूॅगा कि, क्या उनमें देश के एक सामान्य सिपाही के बराबर भी देशभक्ति, संविधान और कानून के प्रति निष्ठा है। जो गरीब ऊपर के आदेश पर 18-18 घंटे काम करता है तनाव ग्रस्त होकर कई बार आत्महत्या कर लेता है, बीमार होकर मौत का शिकार हो जाता है, और इसके बाद भी अपनी छुट्टी की माँग करता रहता है। चूंकि वह छोटा कर्मचारी है, अतः जन आलोचनाओं का ज्यादा शिकार भी होता है।
मुझे विश्वास है कि, उच्च न्याय पालिका मेरे प्रश्नों का उत्तर देगी और अपने लोकतांत्रिक दायित्वों का निर्वहन करेगी क्योंकि लोकतंत्र में जनता ही सर्वाेपरि होती है।
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