वैश्विक महामारी का आधार है संक्रामक बीमारी: डॉ. शंकर सुवन सिंह
वैश्विक महामारी बनाम संक्रामक बीमारी
संक्रामक रोग, रोग जो किसी ना किसी रोगजनित कारको (रोगाणुओं) जैसे प्रोटोज़ोआ, कवक, जीवाणु, वायरस इत्यादि के कारण होते है। संक्रामक रोगों में एक शरीर से अन्य शरीर में फैलने की क्षमता होती है। प्लेग, टायफायड,टाइफस,चेचक, इन्फ्लुएन्जा इत्यादि संक्रामक रोगों के उदाहरण हैं।
टाइफस (सन्निपात) नामक बीमारी का पहला प्रभाव 1489 ई. में यूरोप के स्पेन में देखने को मिला था। इसे जेल बुखार या जहाज बुखार के नाम से भी जाना जाता है। ये बीमारी जेलों और जहाज़ों में बहुत बुरी तरह से फैलती था। टाइफस नामक बीमारी मक्खियों से उत्पन्न बैक्टीरियल इन्फेक्शन से होती है। ये जीवाणु जनित बीमारी है। 1542 ई. में फ्रांस और इटली की लड़ाई में 30,000 सैनिकों की मृत्यु भी टाइफस नामक बीमारी से हुई थी।
बूबोनिक प्लेग और टाइफस ज्वर ने सन 1618 - 1648 ई. में 8 मिलियन जर्मन लोगों के प्राण ले लिए थे। इस बीमारी ने 1812 ई. में रूस में नेपोलियन की गांदरे आर्मी के विनाश में भी एक प्रमुख भूमिका अदा की थी। प्रथम विश्व युद्ध (1914 - 1918) में टाइफस (सन्निपात) महामारी से सर्बिया में 150,000 से ज्यादा लोग मरे थे। रूस में 1918 - 1922 ई. तक सन्निपात महामारी से लगभग 25 मिलियन लोग संक्रमित हुए थे और 3 मिलियन लोगों की मौत हुई थी।
इन्फ्लुएंजा (श्लैष्मिक ज्वर) एक वायरल संक्रमण है। यह मानव के श्वसन तंत्र - नाक, गले और फेफड़ों पैर हमला करता है। इन्फ्लुएंजा को आमतौर पर "फ्लू" कहा जाता है। लेकिन यह पेट के फ्लू वायरस के समान नहीं है जो दस्त और उल्टी के कारण बनता है। कोविड-19 और फ्लू दोनों ही वायरल इंफेक्शन है। ये एक इंसान से दूसरे इंसान में फ़ैल सकते हैं। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के अनुसार दोनों कोविड-19 और फ्लू फैलने वाले वायरस हैं। फ्लू की बात करें तो यह एक बहती नाक से शुरू होता है। इसके बाद खांसी और बुखार होता है। कोरोना वायरस से संक्रमित बहुत कम लोगों ने खांसी के साथ एक बहती हुई नाक होने की सूचना दी है। इसमें सांस की बीमारी से लेकर मतली, सांस लेने में तकलीफ, गले में खरास, बुखार जैसे लक्षण और फिर निमोनिया हो जाता है। चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सा के जनक के नाम से विख्यात यूनानी चिकित्सक "हिप्पोक्रेट्स" ने सबसे पहले 412 ई. में इन्फ्लुएंजा का वर्णन किया था।
प्रथम इन्फ्लुएंजा विश्व महामारी को 1580 ई. में दर्ज किया गया था। तब से हर वर्ष 10 से 30 वर्ष के भीतर इन्फ्लुएंजा विश्व महामारियों का प्रकोप होता रहा है। कोविड-19 वायरस से पहले भी कई वायरस दस्तक दे चुके हैं, जैसे चेचक (वेरियोला), एशियाई फ्लू, एस्पेनिश फ्लू, हांगकांग फ्लू, मार्स वायरस, सार्स वायरस, इबोला वायरस, निपाह वायरस, जीका वायरस और स्वाइन फ्लू।
चेचक एक विषाणु जनित रोग है। चेचक बीमारी का सबसे पहला सबूत मिस्र के फिरौन रामसेस वी से आता है। फिरौन की मृत्यु 1157 ई.पू . हुई थी। फिरौन के ममीफाइड अवशेष में उनकी त्वचा पर टेल - टेल पॉक्स मार्क दिखते हैं। यह बीमारी बाद में एशिया, अफ्रीका, और यूरोप में व्यापार मार्ग पर फ़ैल गई, अंततः अमेरिका तक पंहुच गई। यूरोपीय उपनिवेश के दौरान अनुमानित 10 प्रतिशत स्वदेशी दुर्घटनाएं सैन्य विजय के बजाए बीमारी के कारण हुई।
1950 ई. के दशक में 50 मिलियन मामले इस बीमारी से आते रहे। चेचक बीमारी दो प्रकार के वायरस से मिलकर बनी है। वेरियोला प्रमुख वायरस और वेरियोला नाबालिग वायरस। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (WHO) ने सफल टीकापरीक्षण के बाद 1971 ई. में वेरियोला नाबालिग वायरस और 2011 ई. में वेरियोला प्रमुख वायरस का खात्मा कर दिया था। इस प्रकार चेचक बीमारी एकमात्र मानव संक्रामक रोग है जो सम्पूर्ण रूप से समाप्त हो चुकी है।
सार्स वायरस अन्य किस्म का कोरोना वायरस है। दक्षिण चीन के गुआंगडोंग प्रांत में पहली बार इस वायरस पहचान हुई। सार्स वायरस 2003 ई. में पूरी दुनिया में फ़ैल गया। इसकी वजह से 26 देशों में 774 लोग मरे थे। सार्स वायरस को फैलने में बिल्लियों को दोषी ठहराया गया था। जीका वायरस 2007 ई. में फेडरेटेड स्टेट्स ऑफ़ माइक्रोनेशिया में इस बीमारी की पहली सूचना मिली थी। मच्छरों को जीका वायरस का कारण बताया गया था।
स्वाइन फ्लू (H1N1 वायरस) पूरी दुनिया में सन 2009 ई. में फ़ैल गया था। स्वाइन फ्लू संक्रमित मनुष्य के संपर्क में आने से फैलता है। H1N1 वायरस की वजह से 2 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी।
मार्स वायरस 2012 ई. में सऊदी अरब में फैला था। ऐसा मानना था की यह बीमारी ऊंटों से फैली थी। इस बीमारी के चपेट में कई लोग आए थे।
इबोला वायरस को रक्तस्रावी बुखार के रूप में भी जाना जाता है। यह जंगली जानवरों से इंसानों में फैलता है। 2014 - 2016 ई. में पश्चिम अफ्रीका इबोला वायरस की चपेट में आया। इस वायरस से दुनिया भर में 11 हजार लोगों की मौत हुई।
निपाह वायरस चमगादड़ के कारण 2018 ई. में भारत के केरल प्रांत में फैला था। यह वायरस फल खाने वाले चमगादड़ो की वजह से फैलता था। केरल में इस बीमारी से 17 लोगों की मौत हुई थी।
अभी फिलहाल कोरोना का संक्रमण दुनियाभर में तेजी से फ़ैल रहा है। कोरोना वायरस (सीओवी) का संबंध वायरस के ऐसे परिवार से है जिसके संक्रमण से जुकाम से लेकर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या होती है । कोरोना वायरस का संक्रमण दिसंबर में चीन के वुहान शहर में शुरू हुआ था। इससे पहले कोरोना वायरस का संक्रमण पहले कभी नहीं देखा गया है। डब्लूएचओ के मुताबिक बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ इसके लक्षण हैं।
कोरोना 'लैटिन' शब्द है जिसका तात्पर्य होता है मुकुट (क्राउन)। कोरोना वायरस की सतह पर भी मुकुट की तरह बालों (स्पाइक्स) की सीरीज बनी होती है। यहीं से इसे कोरोना नाम मिला है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना वायरस को महामारी घोषित कर दिया है। कोरोना वायरस बहुत सूक्ष्म लेकिन प्रभावी वायरस है। कोरोना वायरस मानव के बाल की तुलना में 900 गुना छोटा होता है। अब तक इस वायरस को फैलने से रोकने वाला कोई टीका नहीं बना है। चीन, अमेरिका और इजराइल वैक्सीन बनाने की दिशा में अब इंसानों पर परीक्षण कर रहे हैं।
दुनियाभर में 50 से ज्यादा मेडिकल इंस्टीट्यूट और कंपनियां कोविड-19 का वैक्सीन बनाने में दिन-रात जुटी हैं।
यू एस बायोमेडिकल एडवांस रिसर्च एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी इसके लिए प्राइवेट कंपनियों के वैज्ञानिकों को साथ लेकर आगे बढ़ रही है।
फ्रेंच कम्पनी सनोफी पाश्चर और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी कंपनियां इस प्रोजेक्ट में साथ काम कर रही हैं।
अमेरिका के बोस्टन की बेस्ट बायोटेक कंपनी मोडेर्ना ने 16 मार्च को साहसिक कदम उठाते हुए इंसानों पर भी वैक्सीन का परीक्षण शुरू कर दिया है।
जानवरों को छोड़ पहली बार सीधे इंसानों पर परीक्षण का जोखिम उठाया है, अमेरिका ने।
पहला कोरोना वायरस वैक्सीन, अमेरिका के सियेटल की रहने वाली 43 वर्षीय स्वस्थ महिला जेनिफर को लगाया गया।
दो बच्चों की माँ जेनिफर ने कहा। मेरे लिए यह एक शानदार अवसर था।
पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) के वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के स्ट्रेन को अलग करने में सफलता प्राप्त कर ली है। यही वजह है कि, भारत ने कोविड-19 वायरस की जांच के लिए टेस्ट किट ईजाद कर ली है।
कोरोना से बचने का तरीका है- भीड़ से बचना, घर पर रहना और सोशल डिस्टैन्सिंग। यही एक मात्रा इलाज है, जब तक की वैक्सीन की खोज न हो जाए।
कोविड-19 वायरस भारतीय जलवायु का नहीं है।
कोविड-19 वायरस चीन जलवायु का है, अर्थात कोरोना वायरस चीन में पैदा हुआ - चीन में फैला।
यदि भारत सरकार प्री एक्टिव मोड (पहले से सक्रिय) में होती तो कोविड-19 वायरस को भारत में फैलने से रोका जा सकता था।
कहने का तात्पर्य यह है कि विश्व, महामारियों का शिकार होता रहा है जिसे हम वैश्विक महामारी कहते हैं द्य इन महामारियों से सबक लेना चाहिए और सभी देशों को प्रिवेंटिव एक्शन (निवारक कार्य) लेना चाहिए जिससे बीमारी न फैले द्य संक्रामक बीमारी को श्फैलने से रोकना ही "सबसे बड़ा और कारगर इलाज है"।
लेखक डॉ. शंकर सुवन सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर एंड प्रॉक्टर सैम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज नैनी, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) हैं।
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