
लाइव लॉ: कोई कर्मचारी पात्र होने के बाद मर जाता है तो नियमितीकरण का अधिकार उसकी मृत्यु के बाद भी बना रहता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
नई दिल्ली (लाइव लॉ): पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई कर्मचारी नियमितीकरण के लिए पात्र होने के बाद मर जाता है तो यह लाभ उसके कानूनी उत्तराधिकारियों के माध्यम से निहित माना जाना चाहिए और बना रहेगा।
हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि "न्याय, भले ही विलंबित हो, न केवल वैधानिक रूप से बल्कि सैद्धांतिक रूप से भी, जो टूटा है उसे ठीक करता हुआ दिखना चाहिए," कहा कि सेवा के नियमितीकरण का अधिकार एक बार अर्जित हो जाने पर कर्मचारी की मृत्यु पर समाप्त नहीं होता।
जस्टिस संदीप मौदगिल ने कहा,
"कोर्ट प्रक्रियागत कठोरता के कारण न्याय की संरचना को नष्ट नहीं होने दे सकता। नियमितीकरण का अधिकार अर्जित होने पर व्यक्ति के साथ रहता है। उनकी अनुपस्थिति में उनके कानूनी प्रतिनिधियों के माध्यम से बना रहता है। एक आदर्श नियोक्ता के रूप में राज्य न केवल अनुबंध के पत्र को बल्कि निष्पक्षता, समानता और करुणा की भावना को भी बनाए रखने के लिए बाध्य है।"
कोर्ट ने आगे कहा कि, वह मृतक याचिकाकर्ता के कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा झेली जा रही कठिनाइयों को समझता है, जिन्हें लंबी मुकदमेबाजी और याचिकाकर्ता की असामयिक मृत्यु के कारण लंबे समय से लंबित अधिकार का पीछा करना पड़ रहा है।
कोर्ट ने कहा,
"यह उचित और न्यायसंगत है कि याचिकाकर्ता के पक्ष में निहित अधिकार को अब उसके उत्तराधिकारियों के पक्ष में स्वीकार और सम्मानित किया जाए।"
मृतक 1978 में हरियाणा सरकार के अधीन दैनिक वेतनभोगी के रूप में चौकीदार के रूप में कार्यरत था और 1994 तक काम करता रहा। अपनी सेवा के दौरान, उसे अवैध रूप से बर्खास्त कर दिया गया था। हालांकि, श्रम न्यायालय ने उसे बहाल करने का निर्देश दिया।
राज्य प्राधिकारियों ने नियमितीकरण की मांग करने वाले याचिकाकर्ता का दावा खारिज कर दिया। इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और इसके लंबित रहने के दौरान, कर्मचारी की मृत्यु हो गई।
प्रस्तुतियां सुनने के बाद कोर्ट ने राज्य के इस तर्क को खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता की मृत्यु हो चुकी है। अब वह अस्तित्व में नहीं है, इसलिए उसे नियमित नहीं किया जा सकता।
जस्टिस मौदगिल ने कहा कि यह तर्क कि नियमितीकरण के मामले पर इस स्तर पर विचार नहीं किया जा सकता। इस कारण से मान्य नहीं होगा कि राज्य पहले ही याचिकाकर्ता के दावे पर निर्णय ले चुका है और उसे खारिज कर चुका है।
आगे कहा गया,
“उक्त अस्वीकृति को याचिकाकर्ता ने वर्तमान रिट याचिका में तुरंत चुनौती दी, जो उसके जीवनकाल में ही दायर की गई। इसलिए वाद का कारण पहले ही स्पष्ट हो चुका है। याचिकाकर्ता का राहत पाने का अधिकार उसकी मृत्यु के बाद भी बना रहता है। यदि वर्तमान रिट याचिका स्वीकार कर ली जाती है और उठाए गए तर्कों को उसके पक्ष में बल मिलता है तो परिणामी राहत अनिवार्य रूप से उस तिथि से संबंधित होगी, जिस तिथि से याचिकाकर्ता कानूनी रूप से नियमितीकरण का हकदार था।”
पीठ ने कहा कि उस समय वह सक्रिय रूप से एक दिहाड़ी मजदूर के रूप में सेवा कर रहा था और नियमितीकरण के अपने उचित दावे को आगे बढ़ा रहा था, विशेष रूप से इस आधार पर कि उसके जूनियर जगत सिंह, धर्म सिंह, ज़िले सिंह और राजू को 15 जून 2014 से नियमित किया गया। हरियाणा राज्य द्वारा 1996 में बनाई गई नियमितीकरण नीति के तहत 01.01.1996 को।
नियमितीकरण अनुग्रह का कार्य नहीं, बल्कि अधिकार का विषय
कोर्ट ने कहा कि, यह मामला एक गंभीर अनुस्मारक है कि कानून प्रक्रिया की औपचारिकताओं में लिपटा होने के बावजूद, अपने मानवीय उद्देश्य से कभी विमुख नहीं होना चाहिए। याचिकाकर्ता हमारे सामने दान की तलाश में नहीं, बल्कि उस न्याय की तलाश में उपस्थित हुई, जो उसे अपने पति के जीवनकाल में मिलना चाहिए था।
अदालत ने आगे कहा,
"वह न केवल अपने दिवंगत पति द्वारा की गई सेवा के लिए बल्कि उस सम्मान के लिए भी मान्यता चाहती है, जिसका हकदार हमारी संवैधानिक व्यवस्था के तहत प्रत्येक कर्मचारी है।"
जज ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कर्मचारी ने कई वर्षों तक निरंतर, समर्पित सेवा की थी। वह उस सीमा को पार कर गया, जहां अस्थायीता अपना अर्थ खो देती है। साथ ही नियमितीकरण अनुग्रह का कार्य नहीं, बल्कि अधिकार का विषय बन जाता है।
उपरोक्त के आलोक में कोर्ट ने माना कि, मृतक कर्मचारी को उस तिथि से नियमित माना जाएगा, जिस दिन वह ऐसे लाभ के लिए पात्र हुआ था।
तदनुसार, सभी परिणामी मौद्रिक और अन्य अधिकार कानूनी उत्तराधिकारियों को सौंप दिए जाएंगे, जो आज न केवल वित्तीय बकाया के दावेदार के रूप में खड़े हैं, बल्कि निवारण की मांग करने वाले नैतिक गलत के प्रतिनिधि के रूप में भी खड़े हैं।
Title: RAM KUMAR v. STATE OF HARYANA AND ORS.
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(समाचार & फोटो साभार- लाइव लॉ)
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