CBI में भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा: CBI निदेशक का गोपनीय जवाब लीक होने और सिन्हा के आरोप प्रकाशित होने से न्यायालय नाराज
नई-दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई निदेशक आलोक कुमार वर्मा के खिलाफ सीवीसी की रिपोर्ट में प्रतिकूल टिप्पणियों पर वर्मा का जवाब मीडिया में लीक होने और जांच ब्यूरो के उपमहानिरीक्षक मनीष कुमार सिन्हा द्वारा एक अलग याचिका में लगाये गये आरोपों के प्रकाशन पर मंगलवार को कड़ी नाराजगी व्यक्त की।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसने वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरिमन के अनुरोध पर मामले की पुन: सुनवाई की, ने स्पष्ट किया कि न्यायालय किसी भी पक्षकार को नहीं सुनेगा और स्वंय को उसके द्वारा उठाये गये मुद्दों तक सीमित रखेगा। इस मामले में नरिमन जांच ब्यूरो के निदेशक आलोक वर्मा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
इस पीठ में प्रधान न्यायाधीश के साथ न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ शामिल हैं। वर्मा का गोपनीय जवाब लीक होने से बेहद नाराज पीठ ने कहा कि वह जांच एजेन्सी की गरिमा बनाये रखने के लिये सीबीआई निदेशक के जवाब को गोपनीय रखना चाहती थी।
न्यायालय आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के अधिकारों से वंचित करने और उन्हें अवकाश पर भेजने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
पीठ ने इस मामले की सुनवाई 29 नवंबर के लिये स्थगित करते हुये विभिन्न शीर्ष प्राधिकारियों के खिलाफ सिन्हा द्वारा लगाये गये आरोपों वाली याचिका पर आधारित मीडिया की तमाम खबरों को लेकर अपना गुस्सा जाहिर किया।
पीठ ने कहा, "कल, हमने उल्लेख करने की (नागपुर तबादले के खिलाफ सिन्हा की याचिका शीघ्र सुनवाई के लिये सूचीबद्ध करने) अनुमति देने से इंकार कर दिया था और हमने कहा था कि इसमें सर्वोच्च गोपनीयता बनाये रखने की जरूरत है।"
प्रधान न्यायाधीश ने मीडिया में प्रकाशित सिन्हा के निराधार आरोपों का जिक्र करते हुये कहा, "लेकिन यहां एक वादी है जिसने हमारे सामने इसका उल्लेख किया और फिर बाहर जाकर याचिका की प्रति सभी को वितरित की।"
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "इस संस्था के सम्मान को बनाये रखने के हमारे प्रयासों से ये लोग इत्तेफाक नहीं रखते। वे सभी को यह दे रहे हैं।"
सिन्हा ने सोमवार को जांच ब्यूरो के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ जांच में कथित हस्तक्षेप का प्रयास करने के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, केन्द्रीय मंत्री हरिभाई पार्थीभाई चौधरी और सीवीसी के वी चौधरी के नाम भी घसीट लिये थे।
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने मीडिया में आलोक वर्मा की गोपनीय रिपोर्ट प्रकाशित होने पर नाराजगी व्यक्त करते हुये सुनवाई 29 नवंबर के लिये स्थगित कर दी थी।
चंद मिनट बाद ही; आलोक वर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरिमन और अधिवक्ता गोपाल नारायणन ने प्रधान न्यायाधीश के समक्ष दोबारा इस मामले का उल्लेख किया और इस पर आज ही सुनवाई का अनुरोध किया।
पीठ ने जब दुबारा मामले की सुनवाई शुरू की तो नरिमन ने कहा कि शीर्ष अदालत ने 16 नवंबर को वर्मा से कहा था कि सीवीसी के निष्कर्षो पर जवाब देने का आदेश दिया था और न्यूज पोर्टल में प्रकाशित लेख 17 नवंबर का है।
नरिमन ने स्पष्ट किया कि इस लेख में प्रारंभिक जांच की कार्यवाही के दौरान सीवीसी को दिया गया वर्मा का जवाब शामिल है।
हालांकि, पीठ ने इसके बाद सरकार के शीर्ष प्राधिकारियों के खिलाफ सिन्हा की याचिका में लगाये गये आरोपों के आधार पर प्रकाशित कुछ अन्य लेखों का जिक्र किया।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "यह कल का लेख है। हम जानना चाहते हैं कि क्या चल रहा है?- न्यायालय लोगों के लिये अपनी मनमर्जी की अभिव्यक्ति का मंच नहीं है, यह ऐसा स्थान है जहां लोग अपने न्यायिक अधिकारों के बारे में निर्णय के लिये आते हैं। यह कोई मंच नहीं है और हम इसे दुरूस्त करेंगे।"
शीर्ष अदालत ने सुनवाई दुबारा 29 नवंबर के लिये स्थगित कर दी और केन्द्रीय सतर्कता आयोग सहित किसी भी पक्षकार को सुनने से इंकार कर दिया।
केन्द्रीय सतर्कता आयोग की गोपनीय रिपोर्ट पर आलोक वर्मा का जवाब मीडिया में लीक होने पर बेहद नाराज प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने कहा, "आपमें से कोई भी सुनवाई का पात्र नहीं है।"
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने पहली बार सुनवाई स्थगित करते हुये कहा, "हमेें नहीं लगता कि आपमें से कोई भी सुनवाई की पात्रता रखता है।"
वर्मा का गोपनीय जवाब मीडिया में लीक होने की घटना पर पीठ ने न्यूज पोर्टल के नाम का जिक्र किये बगैर ही मीडिया रिपोर्ट की एक प्रति नरिमन को सौंप दी। इस पोर्टल ने सीबीआई के निदेशक के जवाब पर कथित रूप से एक खबर चलाई थी।
पीठ ने अपनी नाराजगी छिपाये बगैर ही कहा, "नरिमन सिर्फ आपके लिये और आलोक वर्मा के अधिवक्ता के रूप में नहीं, हमने आपको यह अवसर दिया है क्योंकि आप इस संस्था के सर्वाधिक और वरिष्ठ सदस्यों में से एक हैं। कृपया हमारी मदद कीजिये।"
नरिमन ने मीडिया रिपोर्ट के अवलोकन के बाद कहा कि यह पूरी तरह से "अनधिकृत" है और वह इससे "आहत और हतप्रभ" है।
प्रधान न्यायाधीश ने तब नरिमन से कहा कि शंकरनारायणन (वह भी आलोक वर्मा के वकील हैं) ने सोमवार को न्यायालय के समक्ष इस मामले का उल्लेख किया था तथा सीबीआई निदेशक की ओर से जवाब दाखिल करने के लिये और समय देने का अनुरोध किया था।
नरिमन ने पीठ से कहा, "किसी ने भी उनसे (नारायणन) से ऐसा करने के लिये नहीं कहा था। यह पूरी तरह अनधिकृत था। मुझे कभी सूचित नहीं किया गया। किसी ने भी उनसे इस मामले का उल्लेख करने के लिये नहीं कहा था। मैं इससे बहुत आहत हूं।"
नरिमन ने कहा कि उन्होंने और उनके जूनियर ने वर्मा का जवाब तैयार करने के लिये देर रात तक काम किया था।
मीडिया की खबर का जिक्र करते हुये नरिमन ने कहा कि न्यूज पोर्टल और उसके संबंधित पत्रकारों को न्यायालय को तलब करना चाहिए।
उन्होंने कहा, "यह कैसे आ सकता है, यह तो लीक है। यह जिस तरह से किया गया है उससे मैं भी आहत हूं।"
इसके बाद प्रधान न्यायायाधीश ने सुनवाई 29 नवंबर के लिये स्थगित करते हुये कहा कि पीठ इसके लिये कोई कारण नहीं लिखना चाहती। सुनवाई के अंतिम क्षणों में पीठ ने टिप्पणी की, "हमें नहीं लगता कि आपमें से कोई भी किसी प्रकार की सुनवाई की पात्रता रखता है।"
(साभार- भाषा)
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