परेवा काल की कलम.त्याग परम्परा आज भी है असरदार: ✍अनिल कुमार श्रीवास्तव
नोएडा: दीपोत्सव में लक्ष्मी.गणेश पूजा के बाद कायस्थ समाज के कलम रखने की परंपरा आज भी असरदार साबित हो रही है।
परेवा काल मे कलम के त्याग से आज भी देश के तमाम सरकारी व गैर सरकारी संस्थान प्रभावित रहते हैं।
सृष्टि की रचना के साथ कायस्थ समाज का कलम से गहरा नाता रह है।
एक प्राचीन किवदन्ती के अनुसार आसुरी शक्तियों का नाश करके अच्छाई व सच्चाई की विजय पताका फहराते हुए 14 वर्ष के वनवास के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम अपने राजमहल पहुंचे तो उनके अनुज भरत की अगुवाई में भव्य राजतिलक किया गया।
कार्यक्रम में देवताओं को भी बुलाया गया जिसमें निमंत्रण की जिम्मेदारी गुरु वशिष्ठ की थी।
गुरु वशिष्ठ ने यह काम अपने शिष्यों को सौंपा।
कार्यक्रम की शुरुआत में भगवान राम सभी देवताओं का आशीर्वाद लेने बढ़े तो देखा सम्पूर्ण जगत का लेखा जोखा रखने वाले जगत न्यायाधीश भगवान चित्रगुप्त नही दिख रहे।
पता करने पर पता चला शिष्यों की भूल से भगवान चित्रगुप्त का निमंत्रण छूट गया है।
उधर भगवान चित्रगुप्त इसे अपमान समझकर बेहद नाराज हो गए और परेवा काल शुरू होने से पहले अपनी कलम रख दी।
मन ही मन बात को समझते हुए भगवान राम ने माता सीता के साथ विवाहोपरांत प्रथम आराध्य भगवान श्री चित्रगुप्त को मनाने व आशीर्वाद का फैसला लिया और गुरु वशिष्ठ के साथ भगवान चित्रगुप्त के पास गए।
सारी बात बताते हुए श्री राम ने क्षमा याचना के साथ कलम उठाने की विनती की।
भगवान राम और गुरु वशिष्ठ की आग्रह पर द्रवित हो भगवान श्री चित्रगुप्त ने यम द्वितीया के दिन कलम व दवात की पूजा कर उसे उठाने का निश्चय किया।
अपनी लेखनीए बुद्धि के बल पर समाज मे अलग पहचान रखने वाले कायस्थ समाज मे यह वार्षिक कलम विराम का सिलसिला पारम्परिक रूप से अनवरत चला आ रहा है।
पहले यह समाज सरकारी संस्थानों में खासतौर पर राजस्व में अधिक था।
अधुनिकता के इस दौर में निजी संस्थानों व स्वरोजगार के क्षेत्र में है।
दीपावली में लक्ष्मी गणेश पूजा के बाद लगभग सभी चित्रांश पारम्परिक रूप से अपनी कलम भगवान श्री चित्रगुप्त के चरणों मे समर्पित कर देते हैं।
जो यमद्वितीया की तिथि में शुभ मुहूर्त में भगवान श्री चित्रगुप्त स्तुतिए पूजा.अर्चनाए कथाए आरती के बाद ऊँ श्री चित्रगुप्ताय नमः, ॐ श्री गणेशायः नमः आदि उच्चारणों के साथ प्रयोग में लाते हैं।
पहले दीपावली की एक दिन की सरकारी छुट्टी होती थी। फिर दो हुई अभी जल्दी में कुछ जगहों पर यमद्वितीया के दिन भी है।
लेकिन बहुत से निजी संस्थानों में आज भी महज एक दिन की छुट्टी है।
इसके बावजूद इस कलमबन्दी के असर से लगभग छुट्टी जैसी रहती है।
परेवा काल से लेकर यमद्वितीया के शुभ मुहूर्त तक संस्थान तो चल रहे होते हैं लेकिन कलमकारों की लेखनी के बिना वो बेजान से होते हैं।
भगवान श्री चित्रगुप्त की पूजा के साथ कलमकार जब दोगुने उत्साह के साथ लेखनी का श्री गणेश करते हैं तो चिकित्सा, न्याय, राजस्व, शिक्षा, मीडिया, राजनीति, समाज व अन्य सभी संस्थानों क्षेत्रो में गजब की चमक आ जाती है।
(अनिल कुमार श्रीवास्तव, स्वतंत्र पत्रकार)
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