दिनकर की कविता: वरदान माँगूँगा नहीं......
लखनऊ: आज के विशेष में छात्रा - सृष्टि श्रीवास्तव द्वारा प्रेषित "सोशल मीडिया पर प्रस्तुत 'दिनकर' द्वारा रचित प्रेरणादायक कविता को प्रस्तुत किया जा रहा है।
महाकवि 'दिनकर' की प्रेरणादायक कविता:
यह हार एक विराम है,
जीवन महासंग्राम है;
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।
क्या हार में क्या जीत में,
किंचित नहीं भयभीत मैं;
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।
वरदान माँगूँगा नहीं ।।
चाहे हृदय को ताप दो,
चाहे मुझे अभिशाप दो;
कुछ भी करो कर्तव्य पथ से, किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।
-:दिनकर:-
Posted By:
सृष्टि श्रीवास्तव
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