स्थायी विकास के लिए नदी घाटियों और जलाशयों में तलछट के एकीकृत प्रबंधन पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन
जलाशयों और उनके उपयोगी अस्तित्व पर प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए तलछटीकरण की गति का आकलन करने की आवश्यकता: जल संसाधन विभाग सचिव
नई दिल्ली (PIB): जल शक्ति मंत्रालय के तहत केंद्रीय जल आयोग ने आज नई दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 'स्थायी विकास के लिए नदी घाटियों और जलाशयों में तलछट के एकीकृत प्रबंधन' पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यक्रम का उद्घाटन जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग (डीओडब्ल्यूआर) में सचिव श्री पंकज कुमार ने केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष श्री कुशविंदर वोहरा तथा जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग (डीओडब्ल्यूआर) में विशेष सचिव सुश्री देबाश्री मुखर्जी की उपस्थिति में किया। इस कार्यशाला में विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों, शैक्षणिक संस्थानों तथा बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (डीआरआईपी) की कार्यान्वयन एजेंसियों के 200 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस बात पर काफी हद तक सहमति बनी है कि जलाशय में गाद इकठ्ठा होने को नियंत्रित करने के उपायों के साथ लघु एवं दीर्घकालिक कार्य योजना तैयार करने की आवश्यकता है, जिसे कई चरणों में लागू किया जा सकता है।
जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग (डीओडब्ल्यूआर) में सचिव श्री पंकज कुमार ने सभा को संबोधित किया। उन्होंने जलाशयों और उनके उपयोगी अस्तित्व पर प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए तलछटीकरण की दरों का आकलन करने की आवश्यकता पर जोर दिया। सचिव ने कहा कि कार्यशाला में विचार-विमर्श के माध्यम से जलाशयों तथा नदियों में तलछटीकरण के प्रबंधन के लिए एक कार्रवाई विकसित करने हेतु राज्यों का मार्गदर्शन होना चाहिए। केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष श्री कुशविंदर वोहरा ने उन विशिष्ट मुद्दों को सामने रखा, जो देश में जल संसाधन वाले बुनियादी ढांचे के लिए तलछट जामन उत्पन्न करते हैं। विशेष सचिव सुश्री देबाश्री मुखर्जी ने कहा कि जलाशय में तलछट की स्थिति को नदी घाटी के तलछट अवस्था को समझने के लिए उपकरण के रूप में रूपांतरित किया जा सकता है।
इस कार्यशाला का उद्देश्य नदियों, जलाशयों व जल निकायों में तलछट प्रबंधन के लिए टिकाऊ कार्य योजना तैयार करने हेतु हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करना था। कार्यक्रम के दौरान, विषय विशेषज्ञों द्वारा विषयों की विस्तृत श्रृंखला पर प्रस्तुतियां दी गईं जैसे कि जलाशय प्रबंधन पर राष्ट्रीय ढांचा, तलछट मूल्यांकन अध्ययन, नदी संरचनात्मक स्वास्थ्य मूल्यांकन के उद्देश्य से भू-आकृति विज्ञान उपकरणों का अनुप्रयोग, राष्ट्रीय जलमार्गों के लिए अवसादन प्रबंधन, तलछट भार के बेसिन स्केल मूल्यांकन हेतु मॉडलिंग उपकरण आदि। राजस्थान, केरल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और ओडिशा जैसे राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने इस विषय पर प्रस्तुति के माध्यम से अपने अनुभव साझा किए। केंद्रीय विभागों, एजेंसियों तथा शैक्षणिक संस्थानों जैसे केंद्रीय जल आयोग, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, आईआईटी कानपुर, आईआईटी रुड़की, सीडब्ल्यूपीआरएस, एनएचपीसी, डीवीसी, एमओईएफएंडसीसी और एनआरएससी ने अपनी विशेषज्ञता पर प्रस्तुतियां दीं।
इस विषय पर विचार-विमर्श तलछट प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय ढांचा (एनएफएसएम) और बांध सुरक्षा अधिनियम -2021 तथा जलाशयों में तलछटीकरण पर प्रमुख प्रस्तुतियों द्वारा शुरू किया गया था। तलछट प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय ढांचे को जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग द्वारा 2023 में अधिसूचित किया गया है। यह नदी और जलाशय में एक साथ तलछट के प्रबंधन के लिए व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है, जिसमें तलछटीकरण या अवसादन के वैधानिक पहलू, इसके पर्यावरणीय प्रभाव और विभिन्न अंतराल शामिल हैं। बांध सुरक्षा अधिनियम 2021 किसी भी कारण से प्रभावित होने वाली बांध सुरक्षा का ख्याल रखने वाला एक ऐतिहासिक कानून है। इस विषय पर चर्चा भी की गई कि अब बांध सुरक्षा अधिनियम को एक वास्तविकता के रूप में लाया गया है। जलाशय अवसादन (गहराई, आकृति, तल व धारा के सर्वेक्षण सहित) को गंभीरता से समझने की जरूरत है, ताकि बांधों और इसके जलाशयों के सुरक्षित संचालन तथा अपेक्षित लाभों को सुनिश्चित किया जा सके। यह दोहराया गया कि मानकीकृत प्रोटोकॉल द्वारा निगरानी एवं माप, तलछट हॉटस्पॉट की पहचान, एकीकृत जलाशय स्तर तलछट प्रवाह के लिए प्रतिमान और अवसादन की दरों का आकलन तथा तलछट प्रबंधन योजना को अपनाना देश में खोई हुई भंडारण क्षमता के सुधार के लिए अनिवार्य रूप से आवश्यक है।
विभिन्न तलछट प्रबंधन तकनीक जैसे जल-विभाजक प्रबंधन, जलाशय प्रबंधन, जलग्रहण क्षेत्र से तलछट के प्रवेश को रोकने के लिए जलग्रहण क्षेत्र का प्रबंधन, मौजूदा जलाशयों में तलछट को संभालने के लिए विभिन्न तकनीकें, जैसे पानी निकालने का फाटक, ड्रॉडाउन फ्लशिंग और बड़े आकार के गहरे आउटलेट प्रदान करने की आवश्यकता के अनुसार अपनाया जाना चाहिए। एक नदी घाटी में जलप्रपात की परियोजनाओं के लिए समन्वित और समकालिक जलाशय संचालन तथा तलछट प्रबंधन दृष्टिकोण आवश्यक है।
राजस्थान और केरल ने भी अपने जलाशयों से गाद निकालने के लिए अपने यहां अपनाए जा रहे राजस्व आधारित मॉडल प्रस्तुत किए। इससे पहले किए गए व्यापक पूर्व-निर्जलीकरण अध्ययनों पर भी कार्यशाला में चर्चा की गई और उनकी सराहना की गई। हितधारकों द्वारा जलाशयों की गाद निकालने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया विकसित करने की आवश्यकता बताई गई है।
आईआईटी कानपुर और आईआईटी रुड़की के शैक्षणिक संस्थानों ने गहराई, आकृति, तल व धारा के सर्वेक्षण सहित अवसादन की गति, मात्रा और जलाशय क्षमता के आकलन के लिए उपयोग की जाने वाली नई एवं आधुनिक तकनीकों के बारे में चर्चा की; इनमें उपग्रह सुदूर संवेदन; बैथिमेट्री और रिमोट सेंसिंग दोनों का उपयोग करते हुए हाइब्रिड विधि; तथा डिफरेंशियल ग्लोबल पोजिशन सिस्टम (डीजीपीएस) शामिल हैं। तलछट की मात्रा के परिमाणीकरण के लिए भू-आकृति विज्ञान मापदंडों के उपयोग के अलावा नदियों की आकृति विज्ञान पर तलछट के प्रभाव को प्रस्तुत किया गया और चर्चा की गई। तलछट निकर्षण और नदी की आकारिकी को समझने के लिए तथा नदी की आगे की प्रतिक्रिया को जानने के लिए आवश्यक बुनियादी एवं व्यावहारिक अनुसंधान पर बहुत जोर दिया गया था। तलछट मूल्यांकन और प्रबंधन के लिए जीआईएस तकनीकों को एकीकृत करने वाली विस्तृत व्यापक जांच एवं मॉडलिंग (2डी न्यूमेरिकल के साथ-साथ 3डी भौतिक) आवश्यक हैं।
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