30 मई 2023 - हिंदी पत्रकारिता दिवस: नई चुनौतियों के घेरे में आज की पत्रकारिता: सुनील कुमार 'महला'
पटियाला (पंजाब): पंजाब के युवा साहित्यकार और स्वतंत्र लेखक- सुनील कुमार 'महला' ने "30 मई - हिंदी पत्रकारिता दिवस" के अवसर पर अपनी विशेष प्रस्तुति में बताते हैं कि, आज जब यह आर्टिकल लिख रहा हूँ, तब तीस मई का दिन है। तीस मई अर्थात् हिंदी पत्रकारिता दिवस। यहां जानकारी देना चाहूंगा कि वास्तव में लोकमंगल की भावना ने ही पत्रकारिता को जन्म दिया है और पत्रकारिता लोकतन्त्र का अविभाज्य अंग है। यहां सबसे पहले बात करते हैं पत्रकारिता की, कि 'पत्रकारिता' है क्या ?
'पत्रकारिता' शब्द अंग्रेजी के ‘जर्नलिज्म’ का हिन्दी रूपांतरण है और ‘जर्नलिज्म’ शब्द ‘जर्नल’ से निर्मित है, जिसका अर्थ होता है ‘दैनिकी’, ‘दैनंदिनी’, ‘रोजनामा’ अर्थात जिसमें दैनिक कार्यों का विवरण हो।
वास्तव में, आज जर्नल शब्द ‘मैगजीन’, ‘समाचार पत्र‘, ‘दैनिक अखबार’ का द्योतक हो गया है। ‘जर्नलिज्म’ यानी पत्रकारिता का अर्थ समाचार पत्र, पत्रिका से जुड़ा व्यवसाय, समाचार संकलन, लेखन, संपादन, प्रस्तुतीकरण, वितरण आदि।
सर्वप्रथम हिंदी पत्रकारिता से जुड़े समस्त पत्रकार बंधुओं, एजेंसियों, संपादकों, विज्ञापकों, लेखकों, साहित्यकारों सभी को इस लेखक की तरफ से बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।
जैसा कि आप सभी यह बात जानते ही हैं कि, पत्रकारिता लोकतन्त्र का चौथा स्तंभ है। पत्रकारिता का उद्देश्य ही लोगों को कुछ नया, कुछ दिलचस्प और उपयोगी बताना है जो वे नहीं जानते। यहाँ यह बात बताना बहुत जरूरी है कि, आज गली गली मोहल्ले मोहल्ले पत्रकार पैदा हो रहे हैं, जिन्हें पत्रकारिता का "क" का भी ज्ञान नहीं है, वे भी पत्रकार बन रहे हैं। बहुत बार पुलिस द्वारा फर्जी पत्रकार पकड़े जाते हैं। बहुत से लोग अपने निजी वाहनों पर प्रैस शब्द का गलत इस्तेमाल करते हैं। इससे पत्रकारिता व पत्रकारों की साख को बट्टा लग रहा है। ऐसे भी पत्रकार हैं जो सूचना व खबर में अंतर नहीं कर पाते। खबर व सूचना में अंतर होता है। सूचना, खबर नहीं होती। खबर वह है जिसे कोई व्यक्ति समाज से छिपाने का प्रयास कर रहा हो।
पत्रकारिता की भाषा में ही खबर की परिभाषा को हम कुछ यूं समझ सकते हैं। कुत्ता आदमी को काट ले तो वह खबर का हिस्सा नहीं है लेकिन यदि आदमी कुत्ते को काट ले तो वह खबर का हिस्सा है। कुल मिलाकर बात यह है कि, जिस पर यकायक कोई विश्वास नहीं करें, वही खबर है। कुत्ते द्वारा आदमी को काटना एक स्वाभाविक व प्राकृतिक प्रक्रिया है, जबकि आदमी द्वारा कुत्ते को काटना, देखने को नहीं मिलती। इसीलिए यह खबर है। सच तो यह है कि पत्रकारिता सोये हुए को जगाने का काम करती हैं। जिन तथ्यों को समाज से छिपाने का कार्य किया जा रहा हो, उनको समाज के समक्ष लाने का काम पत्रकारिता, पत्रकार ही करतें हैं। यह पत्रकारिता ही होती हैं जो न केवल समाज को आइना दिखाने का कार्य करती है बल्कि समाज को एक नई दिशा एवं दशा भी प्रदान करने का भी कार्य करती है।
निष्पक्ष व निर्भीक पत्रकारिता ही लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करती है, लेकिन प्राचीन काल की तुलना में पत्रकारिता के मूल्यों में अनेक कमियां देखने को मिली है। आज पेड (PAID) पत्रकारिता जन्म ले चुकी हैं। सच्ची पत्रकारिता से समाज को नवीन दिशा मिलती हैं और समाज के साथ देश भी आगे बढ़ता है।
महात्मा गांधी जी के अनुसार, 'पत्रकारिता के तीन उद्देश्य हैं- पहला जनता की इच्छाओं, विचारों को समझना और उन्हें व्यक्त करना है। दूसरा उद्देश्य जनता में वांछनीय भावनाएं जागृत करना और तीसरा उद्देश्य सार्वजनिक दोषों को नष्ट करना है।
खैर, जो भी हो पत्रकारिता दिवस के क्या मायने हैं, हिंदी का पहला अखबार कौन सा था, इसके बारे में यहाँ थोड़ी बात करते हैं। 'उदन्त मार्तण्ड' को पहला हिंदी भाषी अखबार होने का दर्जा प्राप्त है, जो एक साल भी नहीं छप सका। वैसे, भारतवर्ष में आधुनिक ढंग की पत्रकारिता का जन्म अठारहवीं शताब्दी के चतुर्थ चरण में कलकत्ता, बंबई और मद्रास में हुआ। 1780 ई. में प्रकाशित हिके का “कलकत्ता गज़ट” कदाचित् इस ओर पहला प्रयास या प्रयत्न था। समय के साथ पत्रकारिता कई बदलावों से गुज़री है, आज सोशल नेटवर्किंग साइट्स का जमाना है और जैसे-जैसे सोशल मीडिया का प्रचलन बढ़ रहा है, पत्रकारिता एक और नया रूप लेती जा रही है।
यहां यदि हम इतिहास पर नजर ड़ालें तो हम यह पायेंगे कि स्वतंत्रता के पूर्व की पत्रकारिता का मुख्य और अहम उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति ही था। स्वतंत्रता के लिए चले विभिन्न आंदोलनों और स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता ने अहम, महत्वपूर्ण और सार्थक भूमिका निभाई है। उस दौर में पत्रकारिता ने पूरे देश को एकता और अखंडता के सूत्र में बांधने के साथ-साथ पूरे समाज को स्वाधीनता प्राप्ति के लक्ष्य और उद्देश्य से जोड़े रखा। आजादी से पहले, पत्रकारिता के समक्ष जन-जन में स्वातंत्र्य चेतना का संचार करना प्रमुख लक्ष्य था, जिसे तत्कालीन अख़बारों ने शिद्दत से निभाया। उस समय पत्रकारिता एक 'मिशन' थी लेकिन समय के साथ- साथ मिशन "प्रोफेशन" में तब्दील हो गया। जैसे जैसे सामाजिक -राजनीतिक परिदृश्य में परिवर्तन आते गये,पत्रकारिता भी उससे प्रभावित होती गयी।
यहां यह उल्लेखनीय है कि गांधी जी ने ‘सत्याग्रह’, ‘यंग इंडिया’, ‘नवजीवन’ आदि पत्रों का प्रकाशन कर देश को जगाने व मानसिक तौर पर तैयार करने का काम किया। सामाजिक जागरूकता के उद्देश्य से उन्होंने ‘हरिजन’, ‘हरिजन सेवक’ और ‘हरिजन बंधु’ नाम के भी पत्र निकाले। यदि हम यहां आज की पत्रकारिता की बात करें तो आज इंटरनेट के युग और सूचना के अधिकार ने पत्रकारिता को बहु-आयामी और अनंत बना दिया है। आज हम कोई भी जानकारी पलक झपकते ही प्राप्त कर सकते हैं।
पत्रकारिता वर्तमान समय में पहले से अधिक सशक्त, स्वतंत्र और प्रभावकारी बन गई है। अभिव्यक्ति की आजादी और पत्रकारिता की पहुंच का उपयोग सामाजिक सरोकारों और समाज के भले के लिए हो रहा है लेकिन कभी-कभार इसका दुरुपयोग भी होने लगा है।
पत्रकारिता आज लगातार अपना स्वरूप बदलती चली जा रही है। बहरहाल, अखबार हमारी जिंदगी के अहम अंग हैं, क्योंकि अखबारों के माध्यम से हमें देश दुनिया के समाचार, सूचनाएं, खेल व व्यापार जगत से संबंधित अनेक बातें पता चलती हैं।
आजकल समाचार पत्रों के माध्यम से हमें खाना खजाना, ज्योतिष, फिल्मी दुनिया के साथ मनोरंजन की अभूतपूर्व सामग्री भी प्राप्त होने लगी है। आज की दुनिया में विभिन्न प्रकार के समाचार पत्र मौजूद हैं। यथा साहित्य,व्यापार जगत, शिक्षा जगत, भाषा विशेष इत्यादि इत्यादि।
सच तो यह है कि समाचार पत्रों का एक अपना अलग ही संसार है और आज आपको हरेक तरह के समाचार पत्र देखने को मिल जायेंगे। साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, छमाही, वार्षिक व दैनिक समाचार पत्र। हर सुबह खबरों से भरा हुआ अखबार हमारे दरवाजे पर आ धमकता है। चाय की चुस्कियों के साथ हम अखबारों को खोलते हैं, देश दुनिया की हालात को समझते हैं और फिर मोड़कर उसे पुराने अखबारों के ढेर में पहुंचा देते हैं।
पहलेे ही आप सभी को यह जानकारी दे चुका हूँ कि, 30 मई के दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। साल 1826 में इसी तारीख को हिंदी भाषा में 'उदन्त मार्तण्ड' के नाम से पहला समाचार पत्र निकाला गया था। आज भारत में हिंदी के समाचार-पत्र सबसे अधिक पढ़े जा रहे हैं। प्रसार संख्या की दृष्टि से शीर्ष पर हिंदी के समाचार-पत्र ही हैं। किंतु, आज हिंदी पत्रकारिता में वह बात नहीं रह गई, जो उदंत मार्तंड में थी। संघर्ष और साहस की कमी कहीं न कहीं दिखाई देती है। दरअसल, उदंत मार्तंड के घोषित उद्देश्य 'हिंदुस्थानियों के हित के हेत' का अभाव आज की हिंदी पत्रकारिता में दिखाई दे रहा है। हालाँकि, यह भाव पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है, लेकिन बाजार के बोझ तले दब गया है।
इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी से यह पता चलता है कि पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे कलकत्ता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था। इसके प्रकाशक और संपादक भी वे खुद थे। इस तरह हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले पंडित जुगल किशोर शुक्ल का हिंदी पत्रकारिता की जगत में विशेष सम्मान है। कानपुर के रहने वाले जुगल किशोर शुक्ल वकील भी थे, लेकिन उस समय औपनिवेशिक अंग्रेजी हुकूमत में उन्होंने कलकत्ता को अपनी कर्मस्थली बनाया। गुलाम भारत में हिंदुस्तानियों के हक की आवाज को उठाना चुनौती बन गई थी। हिंदुस्तानियों के हक की आवाज को बुलंद करने के लिए उन्होंने कलकत्ता के बड़ा बाजार इलाके में अमर तल्ला लेन, कोलूटोला से साप्ताहिक 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन शुरू किया। यह साप्ताहिक अखबार हर हफ्ते मंगलवार को पाठकों तक पहुंचता था।
परतंत्र भारत की राजधानी कलकत्ता में अंग्रेजी शासकों की भाषा अंग्रेजी के बाद बांग्ला और उर्दू का प्रभाव था। इसलिए उस समय अंग्रेजी, बांग्ला और फारसी में कई समाचार पत्र निकलते थे। हिंदी भाषा का एक भी समाचार पत्र मौजूद नहीं था। हां, यह जरूर है कि 1818-19 में कलकत्ता स्कूल बुक के बांग्ला समाचार पत्र ‘समाचार दर्पण’ में कुछ हिस्से हिंदी में भी होते थे।
जानकारी मिलती है कि उदन्त मार्तंड केे पहले अंक की 500 प्रतियां छपी थी। हालांकि 'उदन्त मार्तण्ड' एक साहसिक प्रयोग था, लेकिन पैसों के अभाव में यह एक साल भी नहीं प्रकाशित हो पाया। इस साप्ताहिक समाचार पत्र के पहले अंक की 500 प्रतियां छपी। हिंदी भाषी पाठकों की कमी की वजह से उसे ज्यादा पाठक नहीं मिल सके। दूसरी बात की हिंदी भाषी राज्यों से दूर होने के कारण उन्हें समाचार पत्र डाक द्वारा भेजना पड़ता था। डाक दरें महंगी थी, जिसकी वजह से इसे हिंदी भाषी राज्यों में भेजना भी आर्थिक रूप से महंगा सौदा हो गया था। पंडित जुगल किशोर ने सरकार से डाक दरों में रियायत के लिए अनुरोध किया, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसपर ध्यान नहीं दिया। अलबत्ता, किसी भी सरकारी विभाग ने 'उदन्त मार्तण्ड' की एक भी प्रति खरीदने पर भी रजामंदी नहीं दी। पैसों की तंगी की वजह से 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन बहुत दिनों तक नहीं हो सका और आखिरकार चार दिसम्बर 1826 को इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया।
आज के दौर में पत्रकारिता बदल पूरी तरह बदल चुकी है। पत्रकारिता में अनेक बदलाव देखने और सुनने को मिलते हैं। अखबारों की संख्या में भी बहुत ज्यादा इजाफा हुआ है लेकिन उदंत मार्तंंड को हिंंदी भाषा के पहले समाचार पत्र के रूप में हमेेशा याद रखा जायेगा। यह समाचार पत्रोंं के हिंदी युग की एक नायाब शुरूआत थी। आज पत्रकारिता में बहुत ज्यादा आर्थिक निवेश हुआ है और अब यह उद्योग जगत में तब्दील हो चुका है।
आजकल तो ग्रामीण क्षेत्रों से भी अखबार निकलने लगे हैं और हिंदी अखबारों के पाठकों की भी संख्या बढ़ी है, इसकी वजह से अखबारों की मांग में तेजी आई है।
अंंत मेें ,इतना ही कहूंगा पत्रकारिता का उद्देश्य लाभ कमाना मात्र नहीं होना चाहिए, बल्कि सेवा करना होना चाहिए। पत्रकारिता में हमेशा सच्चाई का पुट हो, वह निडर व निष्पक्ष हो तभी वास्तव में पत्रकारिता, पत्रकारिता कहलाती हैं। वास्तव में, लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब पत्रकारिता सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका का पालन करेगी। पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी की भूमिका निर्वाह करे।
आज के समय में पत्रकारिता का महत्व यह है कि पत्रकारिता जनता को सूचित करने का काम करती है, यह सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह ठहराने और एक कार्यशील लोकतंत्र को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सच्चाई को उजागर करने के साथ साथ ही विविध आवाजों को एक सशक्त मंच प्रदान करता है। पत्रकारिता निष्पक्ष होनी चाहिए।आज सोशल मीडिया के बढ़ते चलन से के समक्ष विश्वसनीयता का संकट खड़ा हो गया है। इसको लेकर पत्रकारों को सजग रहना होगा। आज के जमाने में पत्रकारिता के समक्ष सबसे बड़ी खतरे की घंटी स्मार्टफोन(एंड्रॉयड फोन) है जिसके जरिये एकतरफा खबरें तेजी से फैलाई जा रही हैं जो अमूमन सत्यता से कोसों दूर होती है।
वास्तव में यह एक कटु सत्य है कि आज सोशल मीडिया ने प्रमाणिकता की संकल्पना की धज्जियां उड़ा दी है। पत्रकारिता हमेशा सच की खोज की बात करती है, लेकिन आज सोशल मीडिया को शायद सच से कुछ लेना देना नहीं है। आज फेसबुक और ट्विटर(सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर) पर जो खबर लिखी जाती है वह अंतिम सत्य नहीं होती जबकि ऊपर पहले ही यह बात बता चुका हूं कि पत्रकारिता का काम सत्य को खोजना है। आज सोशल माध्यमों में भाषा भी बदल रही है। सत्य एक रूप में स्थापित न हो इसके लिए पत्रकारिता को अपने नए मानक तय करने होंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं, आलेख का उद्देश्य किसी की मानहानि करना नहीं है और न ही किसी की भावनाओं को आहत करना।)
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है: सुनील कुमार महला)
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