31 मई - वर्ल्ड नो टोबेको-डे विशेष: हमें भोजन चाहिए, तंबाकू नहीं!
पटियाला (पंजाब): पंजाब के युवा साहित्यकार और स्वतंत्र लेखक- सुनील कुमार महला ने "31 मई - वर्ल्ड नो टोबेको-डे" के अवसर पर अपनी विशेष प्रस्तुति में बताते हैं कि, प्रत्येक वर्ष 31 मई को संपूर्ण विश्व में प्रत्येक वर्ष "विश्व तंबाकू निषेध दिवस,(वर्ल्ड नो टोबैको डे)" मनाया जाता है। वास्तव में, इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य तंबाकू सेवन के व्यापक प्रसार और नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों की ओर ध्यान देना है।
श्री महला कहते हैं कि, इस विशेष अवसर पर मैं जानकारी देना चाहूंगा कि, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) के सदस्य राज्यों ने 1987 में विश्व तंबाकू निषेध दिवस की शुरूआत की थी और इसे अप्रैल, 1988 को 'विश्व धूम्रपान निषेध दिवस' के रूप में लागू किया गया था, जिसे बाद में 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
वर्ष 2008 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तंबाकू से संबंधित किसी भी विज्ञापन या प्रचार पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। वास्तव में इसका मकसद था कि, विज्ञापन देख युवा धूम्रपान करने के लिए आकर्षित न हों। आज भी टीवी, सिनेमा पर कोई भी फिल्म, कार्यक्रम से पहले आमजन को जागरूक करने के लिए विज्ञापन आते हैं कि, तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
यहां जानकारी देना चाहूंगा कि, वर्ष 2019 में विश्व तंबाकू निषेध दिवस का थीम "तंबाकू और फेफड़ो का स्वास्थ्य" तथा वर्ष 2020 की थीम "युवाओं को उद्योग के हेरफेर से बचाना और उन्हें तंबाकू और निकोटीन के उपयोग से रोकना " था। वर्ष 2021 की थीम "कमिट टू क्विट" तथा वर्ष 2022 की थीम "पर्यावरण की रक्षा करें" थी।
विश्व तंबाकू निषेध दिवस 2023 की इस वर्ष की थीम है "हमें भोजन चाहिए, तंबाकू नहीं।" यह विडंबना ही है कि आज हमारे देश के विभिन्न रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंडों के बाहर, विभिन्न स्कूलों, कोचिंग संस्थानों के नजदीक, अस्पतालों, सार्वजनिक स्थानों के बहुत नजदीक, फुटपाथों, सड़क के किनारों, ओवरब्रिज के नीचे स्थाई व अस्थाई रूप से बनी दुकानों, लकड़ी,लोहे के खोखों, रेहड़ियों, साइक्लोन तक आदि पर तंबाकू व इससे बने उत्पादों को बेचने वाले लोग, दुकानदार आसानी से मिल जाते हैं। बहुत से दुकानदार तो 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को भी तंबाकू या इससे बने उत्पाद उपलब्ध करवा देते हैं।आज तंबाकू व इससे बने पदार्थों/उत्पादों का सेवन करना आज की युवा पीढ़ी का जैसे एक फैशन, एक लत बन गया है।
तंबाकू व इससे बने उत्पादों का सेवन सबसे ज्यादा युवा वर्ग के लोग ही करते हैं, क्यों कि तंबाकू के ख़तरों से वे अनजान होते हैं और तंबाकू या इससे बने उत्पादों, पदार्थों के सेवन में उन्हें आनंद की अनुभूति होती है, लेकिन तंबाकू सेवन आनंद नहीं, सीधी मौत को बुलावा है।
कुछ लोग तो तंबाकू को तनाव, अवसाद दूर करने का साधन तक मानते हैं लेकिन तंबाकू खाने से कभी भी तनाव दूर नहीं होता है बल्कि तंबाकू के सेवन से तनाव, थकान, भूख न लगना, सांस लेने में परेशानी, खांसी, अनिद्रा, खांसते समय मुंह से खून आना व गले व कान से जुडी स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें हो सकतीं हैं।
वास्तव मे,तंबाकू सेवन हमारे देश, हमारे समाज का एक ऐसा स्याह पहलू है जो आधुनिक समय में हमारी युवा पीढ़ी को लगातार खोखला करता जा रहा है। तंबाकू की इस गिरफ्त में आज के समय में केवल युवा वर्ग ही नहीं, अपितु हर उम्र, लिंग, धर्म-जाति के लोग फंस चुके हैं। तंबाकू मौत को सीधा बुलावा तो है ही, इससे घर-परिवार ही बर्बाद नहीं होते हैं, बल्कि देश की सभ्यता और संस्कृति भी नष्ट हो जाती है। तंबाकू सेवन से धन व स्वास्थ्य की बर्बादी तो होती ही है।
एक रिसर्च में यह भी बात सामने आई है कि, भारत में हर 10वां व्यक्ति किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करता है। तंबाकू के ज्यादा सेवन करने से फेफड़ों व मुंह के कैंसर के साथ ही लीवर,कोलन, ब्रेस्ट कैंसर तथा हृदय रोगी, डायबिटीज तथा इरेक्टाइल डिस्फंक्शन होने का सबसे ज्यादा खतरा रहता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि तंबाकू में क्रोमियम, आर्सेनिक, बंजोपाइरींस, निकोटीन, नाइट्रोसामाइंस जैसे तत्व बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होते हैं। तंबाकू के सेवन से रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ जाती है साथ ही उच्च रक्तचाप की समस्या भी खड़ी हो जाती है। जानकारी देना चाहूंगा कि तम्बाकू से दुनियाभर में हर साल 80 लाख से अधिक लोगों की मौत हो रही है। इनमें 70 लाख मौत सीधे तौर पर तम्बाकू लेने वालों की हो रही हैं और दुनिया छोड़ने वाले करीब 12 लाख ऐसे लोग हैं जो धूम्रपान करने वालों के आसपास होने के कारण प्रभावित हुए हैं। यदि कोई व्यक्ति हमारे आसपास भी धुम्रपान करता है तो उसका हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। आज भी रेलवे कोचों, बसों में लोगों को तंबाकू पदार्थों का सेवन करते आसानी से देखा जा सकता है। लोग रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंडों व विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर धुम्रपान करते हैं, गुटखा, खैनी,पानी मसाला खाकर पीक थूकते हैं।
पीक थूकने से आज सार्वजनिक स्थानों में अस्वच्छता फैल गई है, हमारी अनेक बिल्डिंग्स, इमारतें पीक से खराब हो चुकी हैं। पब्लिक टायलेट्स, बाथरूम आदि का आज क्या हाल है,यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। आज सरकारी दफ्तरों में पान, गुटका, बीड़ी-सिगरेट का सेवन करने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है, लेकिन अधिकांश दफ्तरों में इस आदेश की अनदेखी की जाती है। पान की पीक से सरकारी दफ्तरों की दीवारें आज बदरंग हो रही हैं। खुलेआम दफ्तरों में तंबाकू का सेवन किया जा रहा है। आज कई ऐतिहासिक इमारतों, सार्वजनिक स्थानों की दीवारों पर भी गुटखे के निशान देखने को मिल जाते हैं। यह जहां असभ्यता की निशानी है, वहीं इससे हमारे देश की धरोहरों को भी नुकसान पहुंच रहा है।
एक रिपोर्ट में सामने आया है कि, भारत में गुटखा खाने के शौकीन लोग 1.564 मिलियन टन गुटखा थूक देते हैं। इससे हम यह सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत में गुटखे की कितनी ज्यादा खपत है । लोग साल भर में इतना गुटखा थूक देते हैं कि उससे कई स्विमिंग पूल भर सकते हैं। ओलिंपियन पूल में 2.5 मिलियन लीटर पानी आता है। ऐसे में कई स्विमिंग पूल भारत के लोग गुटखा थूककर भर सकते हैं।इंडिया इन पिक्सल के एक ग्राफिक के अनुसार, हर साल उत्तरप्रदेश के लोग गुटखा थूककर 46.37 पूल भर सकते हैं। उसके बाद बिहार का नंबर है, जहां के लोग एक साल में 2.5 मिलियन वाले 31.33 पूल भर सकते हैं। एक अन्य चौंकाने वाले तथ्य के अनुसार, जो कि एक प्रतिष्ठित दैनिक में छपा था, राजस्थानी पच्चीस हजार करोड़ रुपए का गुटखा गटक जाते हैं और रोजाना 240 लोगों की मौत होती है। तंबाकू की लत में जयपुर को सबसे आगे बताया गया है। इतना ही नहीं, दुनिया में धुआंरहित तम्बाकू के सेवन से होने वाली मौत की संख्या तेजी से बढ़ी है। पिछले कुछ सालों में ही में मौत का आंकड़ा तीन गुना बढ़ा है। एक रिसर्च के मुताबिक, दुनियाभर में धुआंरहित तम्बाकू के प्रयोग से होने वाली बीमारियों के 70 फीसदी रोगी भारत में हैं।एक सर्वे कहता है, 27 फीसदी टीनएजर्स ई-सिगरेट पीते हैं। उनका मानना है कि ये स्मोकिंग नहीं सिर्फ फ्लेवर है और सेहत के लिए खतरनाक नहीं। इस पर चिकित्सकों का यह कहना है, यह एक गलतफहमी है, वैपिंग भी सिगरेट पीने जितना खतरनाक है। जानकारी मिलती है कि ई-सिगरेट में खासतौर पर एक लिक्विड होता है, जिसमें अक्सर निकोटिन के साथ दूसरे फ्लेवर भी होते हैं। इसकी लत लग जाती है और इससे फेफड़े डैमेज होते हैं। इन दिनों यह कई फ्लेवर में आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं ऐसे में बच्चों में इसकी लत लगना सिगरेट से भी ज्यादा आसान है। ई-सिगरेट की आदत पड़ने के बाद सिगरेट और तम्बाकू की लत पड़ना काफी आसान हो जाता है, ऐसा कई शोधों में भी सामने आया है। वॉयस आफ टोबेको विक्टिमस ने डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों से पता चलता है कि एक सिगरेट जिदगी के 11 मिनट छीन लेती है। तंबाकू व धूम्रपान उत्पादों के सेवन से हमारे देश में प्रतिघंटा 114 लोग जान गंवा रहे हैं। वहीं दुनिया में प्रति छह सेकेंड में एक मौत हो रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट ग्लोबल टोबेको एपिडेमिक पर अगर नजर डालें तो यह पता चलता है कि, महिलाओं में भी तंबाकू के सेवन का आंकड़ा निरंतर बढ़ता जा रहा है और इनमें किशोर व किशोरियां भी शामिल हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि सन 2050 तक 2-2 अरब लोग तंबाकू या तंबाकू उत्पादों का सेवन कर रहे होंगे। वर्ष 2019 में संपूर्ण विश्व ने कोरोना जैसी खतरनाक महामारी झेली और वर्तमान में भी अनेक देशों में कोरोना के अनेक मामले सामने आ रहे हैं।
इसी क्रम में, हमारे देश के स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि, तंबाकू का उपयोग करने वाले लोगों में कोरोना संक्रमण का खतरा सामान्य व्यक्तियों के मुकाबले करीब 50 फीसदी अधिक होता है।
तम्बाकू के उपयोग से व्यक्ति का श्वसन तंत्र और फेफड़ें कमजोर पड़ जाते हैं और कोरोना वायरस का पहला अटैक मानव शरीर में इन्हीं अंगों पर होता है।
पिछले साल एक प्रतिष्ठित दैनिक में छपे एक आर्टिकल का अध्ययन करने से पता चलता है कि 'स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, भारत में 27 करोड़ से ज्यादा लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। देश में हर साल 10.5 लाख मौतें तंबाकू पदार्थों के सेवन से होती हैं। 90 प्रतिशत फेफड़े का कैंसर, 50 प्रतिशत ब्रोन्काइटस एवं 25 प्रतिशत घातक हृदय रोगों का कारण धूम्रपान है। तंबाकू का सेवन सामाजिक, आर्थिक दुष्परिणामों के साथ पर्यावरण के लिए भी खतरा बन चुका है।
विश्व में हर साल तंबाकू उगाने के लिए लगभग 3.5 मिलियन हैक्टेयर भूमि नष्ट हो जाती है। 84 मेगा टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के बराबर ग्रीनहाऊस गैस इसकी देन है। यही नहीं, इसके उत्पादों से हर साल 10 हजार टन कचरा निकलता है। अनुमान है कि सिगरेट के टुकड़ों और बट से हर साल करीब 76.6 करोड़ किलोग्राम हानिकारक कचरा पैदा हो रहा है।'
श्री महल ने बताया कि, भारत में पान मसाले का कारोबार करीब 42,000 करोड़ रुपए का है, जिसके 2027 में 53,000 करोड़ रुपए के पार जाने की उम्मीद है।
आज तंबाकू उत्पादों पर चेतावनी के साथ खतरनाक चित्र भी छपे होते हैं लेकिन विडंबना है कि लोगों को इन चित्रों व चेतावनियों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है और लोग सबकुछ जानने के बावजूद तंबाकू जैसे जहर का प्रयोग करते हैं। तंबाकू मीठा जहर है जो आदमी को कहीं का भी नहीं छोड़ता है। आज तंबाकू के जहर को अभी से क्विट कहने की जरूरत है। इसके लिए सबसे पहले हमें यह मन में ठानना होगा कि हमें धूम्रपान व तंबाकू को हर हाल में छोड़ना है। इसके लिए हमें धूम्रपान वाली जगह से दूर रहना होगा। हम विभिन्न चिकित्सीय विधियों व नशामुक्ति केंद्रों का सहारा भी इसके लिए ले सकते हैं। नशा छोड़ने के लिए च्यूइंगम, स्प्रे या इनहेलर का भी सहारा लिया जा सकता हैं। हमें यह चाहिए कि हम अपने आहार/भोजन में एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर विभिन्न चीजों, पदार्थों को शामिल करें। तंबाकू छोड़ने के लिए ज्यादा से ज्यादा व्यस्त रहने की कोशिश करनी चाहिए, क्यों कि खाली दिमाग को शैतान का घर कहा जाता है। तंबाकू उत्पादों से निजात पाने के लिए हम रोज सुबह, शाम और रात को सोने से पहले ध्यान कर सकते हैं।तम्बाकू खाने की प्रबल इच्छा होने पर अदरक को मुंह में रखा जा सकता है और धीरे-धीरे उसे चूसने पर तम्बाकू खाने या धूम्रपान करने की इच्छा पर विराम लग सकता है। इसके लिए अदरक के छोटे-छोटे टुकड़े करके उसमें नींबू का रस और नमक मिलाकर धूप में सुखाकर इनका सेवन करना चाहिए। दरअसल, अदरक में सल्फर होता है जो इस लत को कम करने में मदद करते हैं। तंबाकू छोड़ने के लिए इच्छा शक्ति का दृढ़ होना आवश्यक है। हमें अच्छी संगत रखनी चाहिए, क्यों कि बुरी संगत हमें तंबाकू के नशे की ओर प्रवृत्त कर सकती है। तंबाकू उत्पादों का सेवन करने से पहले हमें अपने परिवार, अपने समाज, अपने देश के बारे में सोचना चाहिए कि हमारा जीवन स्वयं को, परिवार को नशे में बर्बाद करने के लिए नहीं हुआ है बल्कि हमारे जीवन का कुछ न कुछ विशेष उद्देश्य है। ईश्वर ने हमें जीवन जीने के लिए दिया है न कि बर्बाद करने के लिए!
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है: सुनील कुमार महला)
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