ढ़ोंगी, पाखंडी बाबाओं से समाज को जागरूक होने की जरूरत!
लखनऊ: आज की विशेष प्रस्तुति में प्रस्तुत है सुनील कुमार महला, स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार के "ढ़ोंगी, पाखंडी बाबाओं से समाज को जागरूक होने की जरूरत!" शीर्षक से लेख।आज के युग में हर तरफ बाबाओं का मायाजाल है।
ढ़ोंगी, पाखंडी बाबाओं से समाज को जागरूक होने की जरूरत!
जिधर देखो उधर बाबा ही बाबा नजर आते हैं। आज हमारे देश में धर्म के नाम पर लगातार पाखंड बढ़ रहा है। यह पूरे समाज के लिए घातक है। इससे देश गलत रास्ते पर जा रहा है। सच तो यह है कि आज बाबाओं के नाम पर ढ़ोंग बहुत ज्यादा है, आज के समय में परोपकारी (दूसरों पर उपकार करने वाले) बाबा तो बहुत कम देखने को मिलते हैं।
वास्तव में, यहाँ बाबा शब्द के अलग अलग अर्थ व मतलब हो सकते हैं लेकिन हम यहाँ बात कर रहे हैं धर्म और अध्यात्म से ताल्लुक रखते वाले बाबाओं की। आज के युग में बाबाओं को धर्म व अध्यात्म से कोई मतलब या सरोकार नहीं रह गया है, ज्यादातर बाबा लोग धर्म व अध्यात्म के नाम पर पाखंड करते हैं और उनका उद्देश्य सिर्फ़ और सिर्फ़ धन या पैसा कमाना हो गया है। परहित से उन्हें कोई मतलब व सरोकार नजर नहीं आता और वे सिर्फ़ और सिर्फ़ धर्म व अध्यात्म के नाम पर अपनी रोटियां सेंकते नजर आते हैं।
वैसे यहाँ यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि बाबा शब्द का प्रयोग हमारे समाज में वृद्ध पुरूषों, दादा,पितामह के लिए भी अक्सर प्रयोग किया जाता है। लेकिन हम यहाँ 'बाबा' शब्द को साधु-संत के अर्थ के रूप में प्रयोग कर रहे हैं। अपने लिए कोई भी किसी भी प्रकार की सांसारिक इच्छा नहीं रखने वालों तथा परोपकार में अपना जीवन बिताने वालों को ही वास्तव में असली संत कहा जाता है। ढ़ोगी बाबाओं के बारे में किसी ने क्या खूब कहा है- 'वेद-पुराण की सारी आभा ले डूबे, काशी, कैलाश और काबा ले डूबे, लोग कैसे समझें, कि धर्म क्या है,धर्म को अब, ढोंगी बाबा ले डूबे।'
आज के युग में सच्चे संत,सच्चे बाबा,अध्यात्म और धर्म का ज्ञान रखने वाले बाबा कम हैं, ढ़ोंगी बाबाओं का मकड़जाल हमारे समाज में अधिक है और इनका काम हैं, आमजन के साथ धर्म और अध्यात्म के नाम पर खिलवाड़ करना, ये लोग आमजन की भावनाओं के साथ पाखंड का खेल खेलते हैं और इनका ध्यान हमेशा अर्थ या धन कमाने पर केन्द्रित रहता है।
वास्तव में, सांसारिक हित करने की इच्छा को समाप्त कर जब परहित की इच्छा प्रबल हो जाती है तो ही व्यक्ति 'संत' कहलाने का पात्र बनता है। जिनके मन में ईष्या, द्वेष, लालच, स्वार्थ, क्रोध नहीं, जो मन, वचन, कर्म से पवित्र हैं, जो शत्रु मित्र से समदर्शी है, प्रदर्शन और आडम्बर से दूर हैं, जो मर्यादाओं का पालन करते हैं, जो संतोषी और दयालु हैं, वे ही वास्तविक और असली संत हैं। आज के दौर में सच्चा संत मिलना बहुत ही दुर्लभ है।
भारत में अनेक महान ऋषि, मुनि, तपस्वी,बाबा और संत हुए हैं जिन्होंने समय-समय पर समाज को बहुत कुछ दिया है। लेकिन आज समाज को कुछ देने वाले बाबा बहुत ही कम नजर आते हैं। आज आए दिन अखबार की सुर्खियों में हमें खबरें पढ़ने को मिलती रहती हैं कि फलां फलां स्थान पर ढ़ोंगी, पाखंडी बाबा ने झाड़-फूंक के नाम पर बलात्कार किया। आज ढ़ोंगी बाबा तंत्र विधाओं के नाम पर, धर्म, अध्यात्म के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाते हैं, भय और अशिक्षा की वजह से बहुत से लोग इन ढ़ोंगी बाबाओं के जाल में फंस जाते हैं, ये अपनी जेब भरने में ही विश्वास करते हैं, सामाजिक हितों से, किसी की भलाई से इन्हें कोई सरोकार या लेना देना नहीं होता है।
सच तो यह है कि इनकी कथनी और करनी में रात दिन का अंतर होता है। आज हम सभी को इन बाबाओं से बचने और समाज को बचाने की जरूरत है। लोगों को समझाने की आवश्यकता है कि इन लोगों का धर्म व अध्यात्म से दूर दूर तक कोई भी वास्ता या सरोकार नहीं है और ये समाज को लूट रहे हैं, तभी वास्तव में हम एक अच्छे समाज की कल्पना कर सकते हैं। यह विडंबना ही है कि आज बाबाओं को राजनीतिक संरक्षण तक प्राप्त होता है। राजनीतिक दल अपने हितों की पूर्ति के लिए उन्हें पूर्ण संरक्षण प्रदान करते हैं।
वास्तव में राजनीतिक दल उन्हें इसलिए महत्व देते हैं क्योंकि उनके पीछे धर्म को मानने वाले लाखों लोगों की भीड़ होती है और ये भीड़ ही वोट होते हैं। समय आने पर राजनीतिक रसूख वाले लोग इन बाबाओं की सहायता से वोट प्राप्त करते हैं और सत्ता की कुर्सी हथियाकर सालों-साल मौज उड़ाते हैं।
जानकारी देना चाहूंगा कि भारतीय समाज युगों युगों से आस्थावादी और धर्मपरायण रहा है। धर्मपरायण और आस्थावादी लोग जब बिना कुछ सोचे समझे,जांचे परखे जब बाबाओं के पीछे भागते हैं, तो अक्सर धोखा खाते हैं, वे बाबाओं के पाखंड, ढ़ोंग को समझ नहीं पाते हैं। धर्म और अध्यात्म के नाम पर ये बाबा अपना उल्लू सीधा करने के लिए समाज में डर,भय भी पैदा करने का काम करते हैं। आज का समय भी कुछ ऐसा ही हो गया है कि आज के समय में आदमी के पास कुछ सोचने समझने का समय ही नहीं है। आपाधापी, दौड़-धूप भरी जिंदगी में आदमी तनाव व अवसाद में जी रहा है।
आज के युग में मनुष्य के जीवन में भौतिक सुख-सुविधाओं का महत्व बहुत ज्यादा बढ़ गया है और आध्यात्मिक चेतना शून्य हो चुकी है तो ऐसे समय में आज हर कोई अपने जीवन के दुख-दर्द, पीड़ा, रोग, व्याधि, समस्याओं, परेशानियों आदि दूर करने के लिए ऐसे बाबाओं के प्रति आकर्षित हो रहा है।
आज हमारे देश में बाबाओं के पास लगातार भीड़ बढ़ रही है। बड़ी दाढ़ी वाले बाबा मिनटों या कुछ ही क्षणों में में समस्या के छू-मंतर होने का समाधान बताते हैं, दावा करते हैं। जनता भेड़चाल होती है। सरलता व सुविधा से समस्या का समाधान ढूंढती है, इसलिए बिना कुछ सोचे समझे इन बाबाओं के पास जा रही है।
आज हर व्यक्ति परेशान और बेचैन हो चला है। ऐसी स्थिति में बिना कुछ सोचे समझे समाज के बहुत से लोग बाबाओं के पीछे भागने लगते हैं, और इन बाबाओं के पाखंड का शिकार बन जाते हैं।आज बाबाओं के पीछे भीड़ को देखकर राजनीतिक दल उन्हें अपना व्यापक समर्थन व संरक्षण प्रदान करने लगते हैं।
बहुत ही दुखद और विडंबना की बात है कि ये भारतीय सनातन धर्म को एक प्रकार से नुकसान पहुंचा रहे हैं। आज के समय में बहुत से बाबाओं पर हत्याओं से लेकर महिलाओं के यौन शोषण, अपहरण और अन्य जघन्य अपराधों के आरोप साबित हो चुके हैं। यहाँ किसी बाबा का नाम गिनाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इन बाबाओं की फेहरिस्त बहुत बड़ी व लंबी है, जिसे यहाँ गिनाना संभव नहीं है।
आज हमारे समाज में धर्म के नाम पर पाखंड और प्रदर्शन की प्रवृत्तियां लगातार बढ़ती चली जा रही हैं। धर्म और अध्यात्म की आड़ में लोगों को गुमराह कर आम लोगों को लूटने का कारोबार खूब चल रहा है,फल-फूल रहा है। कितनी बड़ी बात है कि धर्म के ये धंधेबाज धर्मभीरु लोगों की भावनाओं का फायदा उठाते हैं, यहाँ तक कि ये धंधेबाज बहुत बार स्वयं को भगवान, देवी-देवता एवं अवतार घोषित कर लोगों को सरेआम मूर्ख बनाते हैं।
आज के समय में इन ढोंगी बाबाओं ने दलाली, ठेकेदारी और सफेदपोश लोगों के कालेधन को सफेद करके ही अपना आर्थिक साम्राज्य हजारों करोड़ तक फैला लिया है। धर्म के पुजारी हमेशा ईश्वर से डरने की बात करते हैं। लेकिन ईश्वर से प्रेम,दया, करूणा के प्रतीक है, उससे डरने का कोई प्रयोजन ही नहीं है। वास्तव में, ईश्वर शब्द का अर्थ है ऐसी शक्ति जो ऐश्वर्यवान है, भारतीय ऋषि जिसे ‘ब्रह्म’ कहते हैं और वह ईश्वर न जनमता है, न मरता है। वह मन-बुद्धि से परे का विषय है।
वास्तव में, ईश्वर को जानने पर ही हम ईश्वर के नाम पर हो रहे पाखंड से बच सकते हैं। यह विडंबना ही है कि आज के समय में, एक ओर जहाँ बहुत से राजनीतिक दल अपने वोट बैंक की खातिर इन बाबाओं को संरक्षण देकर इन्हें ताकतवर बना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इन बाबाओं के देश और समाज विरोधी कारनामों का लगातार भंडाफोड़ हो रहा है। राजनीतिक संरक्षण के चलते इन ढ़ोंगी बाबाओं पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है और ये बच निकलते हैं। ऐसे बाबाओं के खिलाफ कार्रवाई तभी की जाती है जब राजनीतिक दलों को भी इनसे खतरा सताने लगता है।
वास्तव में, धर्म की आड़ में ये स्वयंभू धार्मिक प्रचारक देश की एकता और अखंडता को बार-बार चुनौती दे रहे हैं। आज ढ़ोंगी व पाखंडी बाबाओं के कारण लोगों का धर्म व अध्यात्म से विश्वास उठता चला जा रहा है। वास्तव में, धर्म से विश्वास उठने का अर्थ है कर्म से भी विश्वास उठना। और जब लोगों का कर्म से विश्वास उठ जाएगा, तो इससे अनैतिकता, अव्यवहारिकता, अकर्मण्यता, कठोरता आदि को ही बढ़ावा मिलेगा।
आज लोगों को सही मार्ग दिखाने वालों की संतों, बाबाओं की संख्या बहुत ही कम है। आज हमें तर्क व ज्ञान से अंधविश्वास की जड़े काटने की जरूरत है। शिक्षा का अधिकाधिक प्रचार प्रसार करने की जरूरत है। कितनी हैरानी की बात है कि आज के समय में भी जब हम विज्ञान और तकनीक और आधुनिक चिकित्सा के युग में जी रहे हैं तब समाज में कुकुरमुत्ते की तरह पनपे अनेक बाबा कहीं भभूति, कहीं स्पर्श मात्र से तो कहीं मंत्र से शुद्ध किया हुआ पानी पिलाने से समस्याओं और रोगों को ठीक करने की गारंटी देते नजर आते हैं।
आज कोई भी यह सोचने समझने के लिए तैयार नहीं है कि भारत में जब इतने महात्मा, बाबा और योगीजन बीमारियों से मुक्त करने का दावा कर रहे हैं तो बड़े-बड़े अस्पतालों, डॉक्टरों और इन पर होने वाले भारी भरकम खर्च की क्या जरूरत है? सच तो यह है कि आज समाज को इन ढ़ोंगी, पाखंडी बाबाओं से जागरूक होने की जरूरत है।
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)
सुनील कुमार महला, स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार
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