विशेष: सोता हूँ माँ चैन से, जब होती हो पास !!
हम 'मदर्स डे' की औपचारिकता अवश्य निभाते हैं, मगर वास्तविकता इससे बहुत दूर है। जब तक माँ के हाथ पैरों में जान है और गांठ में पैसे हैं, हम माँ को प्यार करते हैं, मगर जैसे ही ये दोनों चीजे माँ से दूर चली जाती है, हमारे प्यार का पैमाना भी बदल जाता है; विशेषकर माँ के वृद्धावस्था के दिनों में। उस समय हम अपने बीबी-बच्चों में घुल-मिल जाते है और माँ को बेसहारा छोड़ देते हैं: डॉ. सत्यवान 'सौरभ'
भिवानी (हरियाणा): डॉ. सत्यवान 'सौरभ' आज की विशेष प्रस्तुति में 'मां' शब्द का विश्लेषण करते हुए बताया है कि, 'मां' शब्द का विश्लेषण शायद कोई कभी नहीं कर पायेगा, यह दो शब्द इतना विशालता अपने अंदर समेटे हुए है, जिसका व्याख्या करना संभव नहीं है। बच्चा पैदा लेने के बाद सबसे पहले जो शब्द बोलता है वह है माँ। माँ वो है जो हमें जीना सिखाती है, दुनिया में वो पहला इन्सान जिसे हम मात्र स्पर्श से जान जाते है वो होती है माँ’। 9 महीने तक अपने पेट में रखने के बाद, इतनी परेशानियों के बाद वो हमें जन्म देती है। वो होती है ‘माँ’ छोटे हो या बड़े माँ को हर वक्त अपने बच्चे की चिंता होती है।