'दृष्टि दान' में रंजना श्रीवास्तव का प्रभावशाली अभिनय: अनिल बेदाग़
मुंबई: मुंबई की भागदौड़ भरी जिंदगी में नाटक बहुत ही कम देख पाते हैं। हालांकि थियेटर में कलाकारों का अभिनय दिल को बहुत सकून देता है। पिछले दिनों मुंबई के पृथ्वी थियेटर में रंगमंच, सीरियल और फिल्मों के दिग्गज कलाकार अंजन श्रीवास्तव के आमंत्रण पर मुझे रविंद्र नाथ टैगोर की कहानी दृष्टी दान पर एक नाटक देखने का मौका मिला। वैसे तो ये कहानी मूल रूप से रविंद नाथ टैगोर की है लेकिन दिवंगत सागर सरहदी साहब ने इसे नाटक का स्वरूप दिया और उनके भतीजे रमेश तलवार ने इसे बनाने का निश्चय किया।
कोरोना काल में ही सागर साहब हम सबको छोड़ कर चल दिए लेकिन अपने नाटकों के माध्यम से वो आज भी मानो हम सबके बीच जीवित हैं। यह नाटक एक लड़की पर आधारित है जिसका पति डॉक्टरी की पढ़ाई पढ़ रहा है और अपनी पत्नी के आंखों पर ही अपना इलाज शुरू करता है और उसकी आंखे खराब होने लगती हैं जिसका उसका भाई विरोध करता हैं लेकिन लड़की यानी कुमु अपने पति का मान रखते हुए बंगाली डॉक्टर की दवा फेक देती है। फिर उसका पति एक अंग्रेज डॉक्टर को लेकर आता है, जो बताता है कि आंख इतना खराब हो गई है कि बिना आपरेशन के ठीक नहीं होगा। वह आपरेशन करता है, लेकिन आपरेशन सफल नहीं होता और कुमू दृष्टि हीन हो जाती है। कुछ दिन बाद कूमू का पति दूसरा विवाह करने की सोचता है लेकिन ऐन वक्त पर कुमु का भाई हेमांगी से विवाह कर न सिर्फ अपनी बहन का जीवन बचा लेता है बल्कि अपने बहनोई को सही रास्ते पर ले आता हैं।
अब आते हैं नाटक के कलाकारों के ऊपर कूमु के पति की भूमिका में है विकास रावत जिन्होंने बड़ी मासूमियत से अपना किरदार निभाया हैं। कुमू के वकील भाई की भूमिका नीरज ने की है। ये एक गंभीर किरदार था जिसके साथ उन्होंने पूरा न्याय किया है। कुमु की भूमिका प्रियाल घोरे ने निभाई है। एक अंधी लड़की की भुमिका करते हुए वो बेहद सहज थी उनका किरदार एक भावनात्मक रूप से ज्यादा मजबूत था लेकिन उनका रोना भी दिल को छू गया।
रंजना श्रीवास्तव अभिनेता अंजन श्रीवास्तव की बेटी है। उन्होंने नाटक में बेहद प्रभावशाली किरदार हेमांगी को निभाया है। उनकी भूमिका एक चुलबुली लड़की की है। उनके आते ही नाटक में एक चुलबुले पन का अहसास होने लगता है और वो नाटक के अंतिम भाग में जब ब्याह कर आती है तो बेहद सहज और दिल को छूती हैं। वैसे अंजन श्रीवास्तव ने भी एक छोटी सी भूमिका निभाई है जिसके बारे में उन्होंने कहा कि वो चाहते थे उनकी उपस्थिति से नए कलाकारों का मनोबल बढ़े।
ईप्टा के दिग्गज कलाकार मसूद अख्तर साहब भी छोटी लेकिन प्रभावशाली दिखे।
रमेश तलवार का निर्देशन कमाल का है और स्वर्गीय सागर सरहदी साहब का नाटक लेखन उच्च श्रेणी का हैं। दृष्टी दान नाटक को देख कर लगा कि ये आज भी सजीव है और आज के जमाने में कही न कही घटित हो रहा होगा।
नाटक के अंत में मसूद साहब ने स्टेज पर रिंकी भट्टाचार्य को बुलाया। ये विमल राय की बेटी और प्रसिद्ध निर्देशक और लेखक वासु भट्टाचार्य की पत्नी है। उन्होंने नाटक को बंगाल शैली में देने में अपना खूब योगदान दिया।
खैर इस वक्त रविंद्र नाथ टैगोर के जन्म शताब्दी अवसर चल रहा है।