
लहर थी कि सुनामी समझ मे न आया अभी तक, क्या इसी को डिजिटल प्रचार कहते है: गंगा मणि दीक्षित?-
विशेष में प्रस्तुत है, स्वतंत्र विचारधारा के पत्रकार गंगा मणि दीक्षित की रिपोर्ट:
*झूठो ने कहा है झूठो से कि, सच बोलो और सरकारी ऐलान हुआ है कि, सच बोलो, घर के अंदर झूठो की एक मंडी है, लेकिन सरकारी ऐलान हुआ है कि, सच बोलो*
बात 2014 की करे तो एक सुनामी भारत मे आई थी, और मोदी लहर में कब बदल गई आम जनमानस आज तक बह रहा है, 2जी, जीजा जी, के साथ-साथ देश की लहर 2021 तक पहुच गई लेकिन जनमानस जहाँ पहले था वही आज खड़ा है, हाँ बदली है तो एक सीरत कांग्रेस रसातल में गई और बीजेपी रसातल से बाहर आकर कमल खिला दी, राहत इंदौरी की कविता से शुरुवात की गई लेख अनसुलझे को सुलझा और सुलझे को उलझा जरूर देगी।
*शुरुवात करते है, 2 जी घोटाले से* इस घोटाले की मार्केटिंग इस कदर की गई यह घोटाला एक सुनामी में बदल गया, 2010 से मार्केटिंग की गई घोटाले की नतीजा दिसम्बर 2017 में आया सभी 14 लोग और 3 कंपनियों के आरोपी बरी हो गए, लेकिन सियासी हलचल ने एक पक्ष को सम्पूर्ण बहुमत दे दिया, मार्केटिंग में सही कहा गया है कि *गंजे को जो कंघी बेच दे सबसे बढ़िया सेल्स मैन वही है।*
दूसरा मार्केटिंग किया गया *जीजा जी* का लेकिन हाल वही हुआ जीजा जी का भी जो ऊपर 17 लोगो के ऊपर लगे आरोप का हुआ।
आगे की लाइन में *अन्ना आंदोलन* आता है, इनको शायद कोई नही भूल सकता , साथ ही साथ ब्लैक मनी भी रह-रह के याद आती है, अंततः मामला फिसड्डी साबित हुआ।
आखिरकार जीत तो जीत ही होती है, चाहे अखाड़े में पहलवान लड़े या राजनेता, पेट्रोल डीजल, तमाम तरह की महंगाई आज सर पे खड़ी है लेकिन हम भारतीय को एक टिप्स की जरूरत है जिसे डिजिटल तरीके से आप पेस करे और हम अपना ले, यूपी चुनाव नजदीक है, सरकार ने मान लिया है कि 23-24 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में 15 करोड़ ग़रीब हैं। ग़रीबी पिछली और मौजूदा सरकारों की आर्थिक नीतियों की विरासत होती है। और दोनों की आर्थिक नीतियाँ एक ही हैं। सात साल में ग़रीबी बढ़ी है या घटी है। यूपी में कितना शानदार विकास हुआ होगा 23 -24 करोड़ आबादी वाले प्रदेश में अब भी 15 करोड़ लोग ग़रीब हैं। ये सरकार ही मानती है। कोई कह सकता है कि चुनाव के लिए यूपी में होली तक मुफ़्त अनाज दिया जाएगा लेकिन ग़रीबी इतनी है कि अनाज के साथ साथ *कडुवा तेल* भी देना होगा। जिसकी महंगाई से जनता परेशान है। इसी तेल का दाम बढ़ने लगा तब हरियाणा सरकार ने राशन से हटा दिया मगर यूपी में चुनाव है तो दिया जा रहा है। अगर आपको लगता है कि विकास नहीं हुआ है तो आप उन मूर्तियों, स्मारकों की तरफ़ देखिए जिन्हें विकास के बदले बनाया जा रहा है। जिसे देखकर आप विकास मान लेते हैं। और हर ख़ेमे की राजनीतिक बहस देखिए, उसमें आर्थिक नाइंसाफ़ी पर कोई बहस नहीं है। जाति और धर्म की पहचान बताने वाले आपको अनगिनत मौलवी, महंत, और पादरी मिल जाएंगे, हर दूसरा आदमी इस आर्थिक नीति से विस्थापित हो रहा है लेकिन बहस हो रही है जाति और धर्म की। धर्म के नाम पर गिरेबान पकड़कर गिरोहवाद करने वाले आज की महंगाई नजर नही आती है।
सब कुछ, कुछ हद तक डिजिटल की दुनिया मे ऐसा करना अब सम्भव हो गया है जो पहले असम्भव था, विचारधारा और विचार बदलने की जरूरत है, आइए दो महापुरुषों को याद करते हुए उनके बारे में पढ़ते है, और जानते है।
*वादा करो, जवाहर का साथ नहीं छोड़ोगे- सरदार पटेल*
Earlier that day Patel said to Gadgil: “ I am not going to live. Make me a promise.” When Gadgil said yes, the Sardar took his friend’s hand in his hand and continued: “Whatever your differences with Panditji, do not leave him.”
दिल से इस प्रसंग को पढ़िए। 6 दिसंबर को पटेल बीमारी के कारण दिल्ली छोड़ कर अहमदाबाद जा रहे हैं। भारतीय वायु सेना के डकोटा विमान में बैठने से पहले अपने मित्र गाडगिल से कहते हैं “ मैं नहीं जीऊंगा। मुझसे एक वादा करो। “ जब गाडगिल कहते हैं हां, तब सरदार अपने मित्र का हाथ अपने हाथ में लेते हैं और कहते है “ तुम्हारे पंडित जी जो भी मतभेद रहे हैं, उनका साथ मत छोड़ना।”
यह प्रसंग पढ़ते समय कोई भी भरभरा कर रो दे। दोनों नेताओं के बीच खुल कर असहमति के साथ सहमति का ऐसा रिश्ता इतिहास में दूसरा नहीं होगा। लेकिन मोदी ब्रिगेड ने नेहरू को बदनाम करने के लिए सरदार जैसे आज़ादी के आदर्श सिपाही का इस्तमाल किया। इससे शर्मनाक क्या हो सकता है।
पटेल के दिल में अगर नेहरू के लिए प्यार न होता तो अपने मित्र से नहीं कहते कि तुम पंडितजी को मत छोड़ना।
राजमोहन गांधी ने सरदार पटेल की जीवनी लिखी है। पेज नंबर 532 पर दर्ज है। आज़ादी के समय के नेता अपनी ही कमियों को लेकर खुले दिल से लड़ते थे। आप भी इन्हें मत पूजिए। इनके फ़ैसलों की ख़ूब आलोचना और समीक्षा कीजिए लेकिन इनके नाम पर घटिया राजनीति को हवा मत दीजिए।
*2014 का चुनाव बहुत मायने में याद किया जाता है, आइए कुछ झलक देखते है*
*सर्वाधिक मतदान (66.4%)*
*सबसे अधिक ख़र्चीला*
*अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव की तर्ज पर लड़ा गया। भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को प्रधान मंत्री का प्रत्याशी घोषित किया था।*
*सर्वाधिक महिलाएँ विजयी (61)*
*उत्तर भारत के क्षेत्रीय दलों (सपा, बसपा, जदयू, आरजेडी आदि) की अभूतपूर्व पराजय। बसपा को एक भी सीट नहीं।*
*1952 को छोडकर सबसे कम मुसलमान सांसद (22)। उत्तर प्रदेश सहित 27 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में से एक भी मुस्लिम उम्मीदवार लोकसभा नहीं पहुंच सका।1962 के बाद से हुए आम चुनावों के बाद से यह संख्या सबसे कम है हालांकि 1952 के पहले आम चुनाव में केवल 11 मुसलमान ही जीते थे।*