उपराष्ट्रपति ने हॉकी जैसे पारंपरिक भारतीय खेलों के गौरव को फिर से शीर्ष पर ले जाने का आह्वान किया
राज्य सरकारों और कॉरपोरेट संस्थाओं से भारतीय खेलों को
प्रोत्साहन देने का आग्रह किया
यह औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर आने और अपनी महान परंपरा एवं संस्कृति पर गर्व महसूस करने का समय है- उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता पर बल दिया
राष्ट्र को स्वयं से ऊपर मानने वाले प्रबुद्ध नागरिक ही सच्चे
राष्ट्र निर्माता-उपराष्ट्रपति
दिवंगत समाजसेवी श्री चमन लाल जी के सम्मान में
डाक टिकट जारी किया
एक ऐसे महान राष्ट्रवादी जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र की सेवा में समर्पित कर दिया-उपराष्ट्रपति
श्री चमन लाल ने प्रवासी भारतीयों को अपनी मातृभूमि से जोड़ा और उनमें भारतीयता की भावना का संचार किया
नयी-दिल्ली (PIB): उपराष्ट्रपति, श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज हॉकी जैसे पारंपरिक भारतीय खेलों के गौरव को पुनः हासिल करते हुए इस शीर्ष पर ले जाने का आह्वान किया। उन्होंने राज्य सरकारों और कॉरपोरेट संस्थाओं से इस दिशा में आवश्यक प्रोत्साहन के लिए मिलकर कार्य करने का आग्रह किया।
उप-राष्ट्रपति निवास में आज सामाजिक कार्यकर्ता और राष्ट्रवादी श्री चमन लाल की स्मृति में डाक टिकट जारी करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि टोक्यो ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम के हालिया प्रदर्शन ने खेलों में रुचि को फिर से जगाया है और अब हॉकी और कबड्डी जैसे पारंपरिक भारतीय खेलों को व्यापक स्तर पर बढ़ावा देना का समय आ गया है। उन्होंने कृत्रिम टर्फ सहित बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और जमीनी स्तर पर प्रशिक्षण एवं प्रशिक्षकों की उपलब्धता को भी सुनिश्चित करने का आह्वान किया। श्री नायडू ने भारतीय खेलों के प्रति केन्द्र सरकार द्वारा दिए जा रहे सक्रिय प्रोत्साहन की भी सराहना की।
दूसरों की आँख मूंदकर नकल करने की औपनिवेशिक मानसिकता को त्यागने का आह्वान करते हुए,उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपनी महान परंपरा और संस्कृति पर गर्व महसूस करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय हर क्षेत्र में प्रतिभा से संपन्न है और इस प्रतिभा के लिए बस सही प्रोत्साहन और समर्थन की आवश्यकता है।
उपराष्ट्रपति ने श्री चमन लाल को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन निःस्वार्थ भाव से देश और लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। उन्होंने श्री चमन लाल को एक महान राष्ट्रवादी और दूरदर्शी विचारक बताते हुए कहा कि उनके जीवन का दर्शन सेवा, मूल्यों और रचनात्मकता की विशेषता है। श्री नायडू ने कहा कि 1942 में पंजाब विश्वविद्यालय (लाहौर) में एमएससी में स्वर्ण पदक प्राप्त करने के बावजूद, उन्होंने सेवा का मार्ग चुना, भले ही उनका भविष्य उज्ज्वल था,परन्तु इसके साथ-साथ उन्होंने सेवा में आध्यात्मिकता का भाव बनाए रखा।
अपने व्यक्तिगत अधिकारों और सामाजिक कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि किसी के सामाजिक दायित्वों की परवाह किए बिना केवल अधिकारों पर अत्यधिक बल देने से समाज में असंतुलन पैदा हो सकता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि प्रबुद्ध और संवेदनशील नागरिक वहीं हैं जो राष्ट्र को स्वयं से पहले रखते हैं, सही मायने में वे सच्चे राष्ट्र निर्माता हैं। उन्होंने कहा कि स्वार्थी न होना और दूसरों का कल्याण करना- हर सभ्यता, हर धर्म हमें यही सिखाता है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि 'वसुधैव कुटुम्बकम' की सच्ची भावना में, श्री चमनलाल ने विदेशों में सदियों से रह रहे प्रवासी भारतीयों को उनकी मातृभूमि से सफलतापूर्वक जोड़ा और उनमें भारतीयता की भावना का संचार किया। उन्होंने दुनिया भर में फैले भारतीय लोगों का वैश्विक नेटवर्क बनाने का अथक प्रयास किया, श्री नायडू ने कहा आज सभी प्रवासी भारतीय हमारे सांस्कृतिक प्रतिनिधि हैं और भारत को उनकी सफलता से पहचान मिलती है।
आपातकाल की अवधि के दौरान श्री चमन लाल द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को याद करते हुए श्री नायडू ने कहा कि उन्होंने जेल में बंद व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों की अत्यंत जोखिम होने के बावजूद भी बहुत परिश्रम से मदद की। श्री चमन लाल के साथ अपनी व्यक्तिगत भेंटवार्ता का स्मरण करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि अपनी वयोवृद्ध आयु के बावजूद, वे नवीन विचारों से परिपूर्ण थे और सदैव नई जिम्मेदारियां लेने के लिए तैयार रहते थे।
शाश्वत भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा की सराहना करते हुए, श्री नायडू ने रेखांकित किया कि भारतीय संस्कृति ज्ञान और शिक्षण को बौद्धिक संपदा के रूप में नहीं देखती है, बल्कि इसका मानना है कि ज्ञान साझा करने से बढ़ता है। उन्होंने कहा कि हम मानते हैं कि किसी को अपना ज्ञान दूसरों के साथ साझा करके गुरु को ऋण चुकाना पड़ता है। ऋग्वेद के श्लोक का उद्धरण देते हुए - "आ नो भद्रा: क्रतवो यंतु विश्वत:", उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय संस्कृति ज्ञान की सार्वभौमिकता में विश्वास रखती है। उन्होंने कहा कि ज्ञान किसी भौगोलिक सीमा में बंधा नहीं है, यह पूरी मानवता की साझी विरासत है।
विश्व अध्ययन केन्द्र के संदर्भ में श्री चमन लाल को इसकी प्रेरणा बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कहा कि यह केन्द्र वैश्विक मंच पर भारत की उपलब्धियों को उजागर करने के लिए काम कर रहा है। उन्होंने विश्वभर में श्री चमन लाल की जन्मशती का आयोजन करने के लिए विश्व अध्ययन केन्द्र को बधाई दी। उपराष्ट्रपति भारत सरकार के संचार मंत्रालय के द्वारा श्री चमन लाल जी जैसे प्रेरक व्यक्तित्व के सम्मान में डाक टिकट जारी करने के निर्णय का भी स्वागत किया।
इस अवसर पर, केंद्रीय रेल, संचार और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना-प्रौदयोगिकी मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव, संचार राज्य मंत्री श्री देवुसिंह चौहान, कौशल विकास और उद्यमिता राज्य मंत्री श्री राजीव चंद्रशेखर, संसद सदस्य डॉ. हर्षवर्धन, डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी, डॉ. विनय सहस्रबुद्धे और श्री विनीत पांडे, सचिव (डाक) एवं अन्य गणमान्य भी शामिल हुए।
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