राष्ट्रीय बालिका-दिवस पर विशेष कविता: नजर झुकाये बेटियाँ!!!
विशेष में 'राष्ट्रीय बालिका-दिवस' के अवसर पर प्रस्तुत है,
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार- प्रियंका सौरभ द्वारा रचित कविता____
'नजर झुकाये बेटियाँ'
नजर झुकाये बेटियाँ
कभी बने है छाँव तो, कभी बने हैं धूप !
सौरभ जीती बेटियाँ, जाने कितने रूप !!
जीती है सब बेटियाँ, कुछ ऐसे अनुबंध !
दर्दों में निभते जहां, प्यार भरे संबंध !!
रही बढाती मायके, बाबुल का सम्मान !
रखती हरदम बेटियाँ, लाज शर्म का ध्यान !!
दुनिया सारी छोड़कर, दे साजन का साथ !
बनती दुल्हन बेटियाँ, पहने कंगन हाथ !!
छोड़े बच्चों के लिए, अपने सब किरदार !
माँ बनती है बेटियाँ, देती प्यार दुलार !!
माँ ,बहना, पत्नी बने, भूली मस्ती मौज !
गिरकर सम्भले बेटियाँ, सौरभ आये रोज !!
कदम-कदम पर चाहिए, हमको इनका प्यार !
मांग रही क्यों बेटियाँ, आज दया उपहार !!
✍ प्रियंका सौरभ
swatantrabharatnews.com