विशेष: सौरभ तुम बेकार!
विशेष में प्रस्तुत है,
वर्तमान परिस्थितियों पर रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार- प्रियंका सौरभ की कविता:
'सौरभ तुम बेकार'
सौरभ तुम बेकार,
वक्त पड़े तो फूल हम, दीखते समझदार |
कह दी सच्ची बात तो, सौरभ तुम बेकार ||
बस अपनी ही हांकता, करता लम्बी बात |
सौरभ ऐसा आदमी, देता सबको घात ||
जिसने सच को त्यागकर, पाला झूठ हराम |
वो रिश्तों की फसल को, कर बैठा नीलाम ||
दुश्मन की चालें चले, रहकर तेरे साथ |
सौरभ तेरी हार में, होता उनका हाथ ||
मन में कांटे है भरे, होंठों पर मुस्कान |
दोहरे सत्य जी रहें, ये कैसे इंसान ||
सौरभ मन गाता रहा, जिनके पावन गीत |
अंत वही निकले सभी, वो दुश्मन के मीत ||
वक्त कराएं है सदा, सब रिश्तों का बोध |
पर्दा उठता झूठ का, होता सच पर शोध ||
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