विशेष: धर्म के नाम पर शोर का 'अधर्म'?
'विशेष' में प्रस्तुत है,
हर्षित अवस्थी द्वारा प्रस्तुत आलेख___
धर्म के नाम पर शोर का 'अधर्म':
बेशक हम एक आजाद देश के आजाद नागरिक हैं, इस आजादी के अंतर्गत हमारे संविधान ने हमें जहां तमाम ऐसे मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं, जिनसे हमें अपनी संपूर्ण स्वतंत्रता का एहसास हो सके, वही इस आजादी के नाम पर तमाम बातें ऐसी भी देखी और सुनी जाती हैं, जो हमें वह हमारे समाज को बहुत अधिक नुकसान और पीड़ा पहुंचाती है।
बेशक भारतीय संविधान हमें इस बात की इजाजत देता है कि, हम अपने धार्मिक रीति-रिवाजों एवं क्रियाकलापों को पूरी स्वतंत्रता के साथ अपना सके व मना सकें, परंतु इसका अर्थ यह हरगिज़ नहीं है कि, 'धर्म' के नाम पर किए जाने वाले हमारे किसी क्रियाकलाप का आयोजन से अन्य लोगों को तकलीफ हो या उन्हें शारीरिक या मानसिक कष्ट का सामना करना पड़े।
परंतु हमारे देश में दुर्भाग्यवश धर्म के नाम पर इसी प्रकार की तमाम गतिविधियां आयोजित होती हुई देखी जा सकती हैं। इन्हें देख कर लगता है 'धर्म' शांति का नहीं बल्कि शोर-शराबे और हुल्लड़ का पर्याय बन गया है। उदाहरण स्वरुप देश में रहने वाला क्या हिंदू समुदाय, क्या मुस्लिम तो क्या सभी समुदाय के पूजा स्थलों अर्थात मंदिर मस्जिदों गुरुद्वारों में लाउडस्पीकर का प्रयोग लगभग एक सामान्य सी बात हो गई है, जहां देखिए मस्जिद में अजान की तेज आवाज में लाउडस्पीकर पर दिन में 5 बार सुनाई देती, मंदिरों में सुबह-सवेरे से शुरू हुआ कीर्तन भजन का सिलसिला देर रात तक चलता रहता है। इसी प्रकार गुरुद्वारों में भी गुरुवाणी के कीर्तन की आवाजें प्रातः 4:00 बजे से ही सुनाई पड़ने लग जाती हैं। सही मायने में लाउडस्पीकर अथवा ध्वनि विस्तारक यंत्र का प्रयोग तो आवश्यकता पड़ने पर व्यापारिक अथवा प्रशासनिक दृष्टिकोण से किया जाना किसी हद तक न्याय संगत मालूम होता है या फिर कहीं बड़े आयोजनों और रैलियों में या फिर मेले वगैरह में सूचना के तत्काल विस्तार के लिए अथवा भीड़ पर नियंत्रण करने हेतु किन्ही सार्वजनिक स्थलों पर या फिर जनता को अथवा किसी व्यक्ति विशेष को किसी दिशा निर्देश व सूचना जारी करने हेतु उनके प्रयोग किए जाते हैं। रेलवे स्टेशन बस स्टैंड स्थानों पर भारी भीड़-भाड़ वाली जगहों पर के उपयोग को इसकी जरूरत नहीं ठहराया जा सकता दिन में चार या पांच बार सारा दिन सुबह 4:00 बजे उठकर धर्म स्थानों पर तेज आवाज में लाउडस्पीकर पर अपनी धर्म कथा भजन अजान शब्द आदि सुनाने का आखिर क्या उचित है?-
'धर्म' ना कोई उद्योग है, ना कोई ऐसा उत्पाद का विज्ञापन लोगों तक पहुंचाने के लिए लाउडस्पीकर का प्रयोग किया जाए धर्म किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत आस्था का विषय है जो बिना लाउडस्पीकर के प्रयोग के लोगों को धर्म से जुड़े रखता है।
जो इससे जुड़े रहना चाहते हैं या कोई निर्धारित समय पर मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे जाना चाहता है तो उसे कोई रोक सकता है, ना ही उसकी इस निकी धार्मिक इच्छा में कोई बाधा साबित हो सकती है।
इसी प्रकार धर्म स्थानों पर जाने से ज्यादा जरूरी है, उसे धर्म स्थानों से उठने वाली लाउडस्पीकर है कि, आखिर धर्म क्या है?-
धर्म स्थानों पर धर्म के नाम पर होने वाले स्पीकर के नुकसान का सवाल है, तो निश्चित रूप से नुकसान है जो किसी एक व्यक्ति को नहीं बल्कि पूरे देश को प्रभावित करते हैं। उदाहरण बुजुर्ग लोग कहां नहीं होते हैं। इंसान की जरूरत होती है, तमाम बुजुर्गों को तो सारी रात नींद नहीं आती है तथा इनकी आंखें सुबह के वक्त खुलने लगती है। ऐसे में यदि उस बुजुर्ग बिकनी में किसी धर्म स्थान से उठने वाली अनैच्छिक आवाज के फल स्वरुप उड़ जाए तो वह असहाय बुजुर्ग अपनी फरियाद लेकर कहां जाए। क्या एक बुजुर्ग बीमार वाला चार व्यक्ति की नींदे हराम करना तथा उनके कानों में जबरन अपने धार्मिक उपदेश प्रवचन भजन अथवा अजान की वाणी तू सुना कोई मान्यवर धार्मिक कार्य कलाप माना जा सकता है?-
देश में एक दो नहीं सैकड़ों हजारों स्थानों से धर्म के नाम पर होने वाले शोर शराबी के विरोध में शिकायतें होती देखी जा सकती हैं, प्रशासन भी धार्मिक मामला अथवा धार्मिक स्थलों से जुड़ा विषय होने के कारण ना तो इसे गंभीर मामले में कभी कोई दखल देता नजर आता है ना ही इन पर लगाता है।
हमारे देश की भावी पीढ़ी जिस पर हम सब देश का कर्णधार होने या देश का गौरव अथवा भविष्य होने का दम भरते हैं, वह भी सीधे तौर पर इस तथाकथित धार्मिक शोर-शराबे साबित होती नजर आ रही है। सभी मां बाप अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं।माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल जाने वाले बच्चों को उसके घर पर भी शिक्षण संस्थान से मिलने वाले हैं, तो कभी परीक्षा के दिनों में दिन रात मेहनत कर अपनी पढ़ाई पूरी करनी होती है। परीक्षा के दिनों में बच्चों की पढ़ाई का तो समय ही निर्धारित नहीं होता देर रात तक बच्चों की परीक्षा तैयारी का एक हिस्सा होता है।
परंतु अफसोस इस बात का है कि, अपनी जिंदगी को धर्म के नाम पर निर्धारित कर चुके यह तथाकथित धर्माधिकारी अथवा धर्म के ठेकेदार उन बच्चों के भविष्य के बारे में तो जरा भी चिंता नहीं करते जिनके कंधों पर देश का भविष्य टिका हुआ है।
जिन बच्चों को इन तथाकथित धर्म के प्रचार को द्वारा निर्धारित सीमा से ऊपर उठकर ना केवल अपने व अपने परिवार के भविष्य के लिए बल्कि समाज व देश की भलाई के लिए भी कुछ करना होता है। स्पष्ट है कि भले ही धर्म किसी उत्पाद का नाम ना हो ना ही या कोई बेचने वाली प्रस्तुति परंतु उसके बावजूद इन धर्म स्थानों पर काबिज लोग लाउडस्पीकर पर उसी प्रकार से शराब जैसे कि वे अपने उत्पाद बेच रहे हैं।
वास्तव में सच्चाई यही है कि धर्म स्थानों पर बैठे लोगों ने धर्म को भी बना रखा है यह समझते हैं कि हमारे इस प्रकार के धर्म के नाम पर किए जाने वाले शोध संस्थान की ओर लोगों का धर्म स्थान की और आकर्षक उस स्थान पर बैठे अधिकारियों के अधिकारी अपने स्वार्थ के चलते जाते हैं कि उनके बच्चों की पढ़ाई खराब हो सकती है और पढ़ाई खराब होने के चलते उस बच्चे का भविष्य चौपट हो सकता है और देश के एक बच्चे के भविष्य का बिगड़ना हमारे देश के भविष्य बिगड़ने से कम करके नहीं आंका जा सकता।
इसी प्रकार हमारा हमारे समाज का तथा सभी धर्मों का नैतिक ,धार्मिक कर्तव्य है कि अपने बड़े बुजुर्गों के बीमारो असहायों को जिस हद तक हो सके उसे चैन सुकून प्रदान करें। यदि हो सके तो हम उसे शांति दे उनको आराम करने में अपना योगदान दें या नहीं कर सकते तो कम से कम हमे यह अधिकार तो हरगिज नहीं कि हम किसी बीमार व्यक्ति या पढ़ने वाले छात्र के सिर पर धर्म के नाम पर किया जाने वाला शोर जैसा नंगा नाच ना करें। इसे धर्म नहीं बल्कि धार्मिक गतिविधि तो जरूर कहा जा सकता।
वैसे भी यदि हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखे तो सुबह शाम का वक्त प्रदूषण मुक्त होता है तथा तमाम लोगों के सैर सपाटे का चहल कदमी का वक्त होता है ऐसे समय में जबकि प्रकृत अथवा ईश्वर भी स्वयं अपनी ओर से अपने बंदों को शांतिपूर्ण व पूर्ण सुकून वातावरण प्रदान करता है, फिर आखिर उसी के नाम पर निश्चित रूप से शोर-शराबा करने का मकसद तथा औचित्य क्या है?-
धर्म स्थानों पर बैठे लोगों को तथा इन धर्म स्थलों से जुड़े लोगों को स्वयं यह बात गंभीरता से सोचना चाहिए क्योंकि बच्चे और बुजुर्ग लगभग प्रत्येक घर की शोभा है, तथा सभी को शांति चैन सुकून आराम की सख्त जरूरत है। धर्मगुरु समाजसेवियों तथा प्रशासन के संयुक्त सवार दो पूर्ण प्रयासों से इस समस्या से निजात दिलानी चाहिए!
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