विशेष: कोरोना पेंशन शुरू हो: रघु ठाकुर
विशेष में प्रस्तुत है,
आज के 'राजनैतिक पैगम्बर'- समतामूलकसमाज की स्थापना के प्रति समर्पित - महान समाजवादी चिंतक व विचारक तथा लोकतान्त्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक- 'रघु ठाकुर' का आलेख___
"कोरोना पेंशन शुरू हो"
कोरोना काल ने बड़ी संख्या में लोगों को देश में संक्रमित किया है, और प्रतिदिन भारत सरकार की ओर से राज्यवार संक्रमण के आंकड़े तथा राज्यों की ओर से जिलावार आंकड़े मीडिया में प्रमुखता से छप रहे है। जिनमें बताया जाता है कि, कितने लोग संक्रमित हुए कितने ठीक हुए कितनों की मृत्यु हुई। सरकार के इन आंकड़ों को देखें तो अभी तक याने 6 माह में लगभग 30 लाख लोग संक्रमित या संभावित संक्रमित पाए गए हैं। जिनमें से लगभग 71 प्रति-रु39यात लोग याने 21 लाख लोग स्वस्थ्य हो गए। कुछ का इलाज चल रहा है और इस बीमारी से मरने वालों की संख्या लगभग 50 -ं 55 हज़ार के आस-ंपास है।
परन्तु अच्छा होता कि भारत सरकार यह आंकड़ा भी जारी करती कि इन 6 माहों में कितने लोग बेरोजगार हुए याने जिनके पास रोजगार थे उनमें से कितने लोगों के रोजगार छिने? कितने लोगों ने आत्महत्याएं की? कितने लोग अवसादग्रस्त हुए? और कितने लोग अपराधी बनने को लाचार हुए? आई.एल.ओ. के अनुमान तो भारत में 40 करोड़ लोग इस कोरोना के कारण बेरोजगार बन चुके हैं।
परंतु सी.आई.एम.ई.ई. नामक संस्था, जो सरकार के आर्थिक स्थितियों का अध्ययन करती है, और रपट जारी करती है, की हालिया रिपोर्ट चैकाने वाली है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इन 5 माहों में एक करोड़ नवासी लाख लोग बेरोजगार बने है क्योंकि उन्हें अपनी नौकरी गवांना पड़ी है। अकेले अप्रैल माह में 1 करोड़ 70 लाख, जुलाई में 50 लाख लोगों की नौकरियां गई है, अगस्त का आंकड़ा अभी आने वाला है। आई.एल.ओ. ने तो नौकरी व निजी धंधे दोनों की बेरोजगारी मापी है।
लाॅकडाऊन के आंशिक रूप से समाप्त होने पर जुलाई माह में मुश्किल से 30 लाख लोगों को काम या नौकरी वापिस मिली थी। सी.आई.एम.ई.ई. ने यह भी आशंका व्यक्त की है कि, जिनकी नौकरी या काम छूट गए है, उन्हें कोरोना सुरु होने के पूर्व जैसा काम वापिस मिलना कठिन है।
यह आंकलन इसलिए भी सही लगता है कि इस कोरोना काल का इस्तेमाल भारत सरकार ने निम्न तरीकों से एक नए प्रकार के आर्थिक -सांचे के इस्तेमाल के लिए किया है, जिसमें इंसान का स्थान मशीने ले रही है:-
1. नार्मल के नाम पर लगभग सभी क्षेत्रों में जैसे शिक्षा, चिकित्सा, व्यापार इत्यादि में डिजीटीलाइजेशन बढ़ रहा हैै। अकेले शिक्षा के क्षेत्र में स्कूल, काॅलेज आदि सभी संस्थाओं को बंद कर आन-लाईन शिक्षा के परिणाम स्वरूप अभी हाल में कई लाख शिक्षकों के रोजगार समाप्त हुए हैं और यह प्रक्रिया अभी और आगे जाएगी। अभी तो कुछ शिक्षक मोबाईल या लेपटाॅप पर छात्रों को पढ़ा रहे है। परन्तु शीघ्र ही यह स्थिति आने वाली है कि शिक्षकों के भाषणों के टेप चलेंगे और शिक्षकों की जरूरत बहुत कम हो जाएगी। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया के विद्वानों के भाषणों के टेप से शिक्षा होगी तथा शिक्षक व शिक्षण संस्थान दोनों ही लगभग गैर जरूरी हो जाएंगे। इसी प्रकार चिकित्सा के क्षेत्र में दूरभाष पर (टेलीमेडिसन के द्वारा) दवाओं के नाम बता दिए जाएंगे और चिकित्सकों की संख्या व जरूरत काफी कम हो जाएगी।
2. कोरोना काल में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्रों के निजीकरण और निजी क्षेत्र के विदेशी पूँजीकरण का योजनाबद्ध अभियान सुरु किया है। निजीकरण रोजगार या कर्मचारियों की संख्या को बहुत कम करेगा क्योंकि उसके लिये तो इंसान के नाम पर मशीन लगाकर मुनाफा बढ़ाना है। एफ.डी.आई. से भी रोजगारों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा क्योंकि एफ.डी.आई. भी मशीनों या सामान के रूप में ही आती है। कुल मिलाकर निजीकरण और विदेशी पूँजीकरण से पहले चरण में लगभग 50 प्रतिशत श्रम -शक्ति की संख्या घट जाएगी और उनका काम मशीनें करेंगी।
यह क्रम क्रम- क्रमश बढ़ता ही जाएगा।
3. वर्क फ्राम होम और होम डिलेवरी के गंभीर परिणाम भी सामने आएंगे। वर्क फ्राम होम के नाम पर कर्मचारियों को पहले काम के लिये घर भेजा जा रहा है। इससे मालिकों का दफ्तर खर्च, यात्रा भत्ता आदि सब बच जाएगा। फिर धीरे-धीरे इन्हें कम आउटपुट या अक्षमता के नाम पर क्रमशः हटाते जाएंगे। वर्क फाॅर्म होम आज भले ही कर्मचारियों को अच्छा लग रहा है कि कहीं जाने की जरूरत नहीं है। घर से काम करेंगे, परन्तु यह नहीं भूलना चाहिए कि, यह वर्क फाॅर्म होम बहुत शीघ्र ही किक बैक टू होम या गो बैक टू होम सिद्ध होने वाला है। होम डिलेवरी वाली जिन विदेशी पूँजी निवेशकर्ता कंपनियों को सरकार ने अनुमति दी है, उससे करोड़ों छोटे दुकानदारों के व्यवसाय पर असर पड़ेगा।
बड़ी-ंबड़ी कंपनियां देशी उद्योगपतियों के कोलोब्रेशन से देश में आ चुकी है, और वे सस्ता माल बेचेगी क्योंकि थोक खरीद के आधार पर उन्हें माल सस्ता पड़ेगा। जो मोबाईल फोन आज 15 - 20 हज़ार में बाज़ार में मिलता है वह इन्ही विदेशी कंपनियां 8 -10 हज़ार रूपये का या और इससे भी कम में बेचेंगी। क्योंकि वे निर्माता कंपनियों से एक मुश्तकरोड़ों की संख्या में खरीद करेंगी। यह घटना न केवल मशीनों के क्षेत्र में बल्कि कृषि उत्पादन और अन्य उपभोक्ता सामाग्री के उत्पादनों पर भी प्रभाव डालेगी तथा विदेशी कंपनियां अपना एकाधिकार जमायेगा। करोड़ों फुटकर व्यापारियों के ऊपर इसका प्रभाव पड़ने वाला है। और भले ही सरकार इसे विकास का पैमाना बतायें, माल की शुद्धता, गुणवत्ता का प्रचार करें। उपभोक्ता भी सस्ता व अधिक गुणवत्ता का सामान इन बहुराष्ट्रीय दैत्याकार कंपनियों से खरीदना अपने हित में सम-हजयेगा।
4. बाजार की आवश्यकता सीमित होगी। पहले चरण में महानगर और काॅस्मोपाॅलिटन सिटी में, फिर बड़े नगरों में और फिर क्रमशः तहसील और गाँव तक यह श्रंखला फैलेगी। काम काजी महिलाओं और परिवारों के लिए होम डिलेवरी आसान होगी।
क्योंकि फोन पर सीधा माल घर पहुंच जाएगा। न बाजार जाने की समस्या, न पार्किंग न, लूटपाट न, जेब कटने की समस्या तथा समय व परिश्रम की बचत।
5. हमारे देश में लगभग एक करोड़ के आसपास घरेलू काम वाली बाईयाँ व पुरुष कर्मी हैं, जो घरों में साफ सफाई से लेकर खाना बनाने का काम करते है, उनका काफी काम पहले ही बंद हो चुका है क्योंकि, कोरोना के भय से लोगों ने उन्हें काम पर बुलाना बंद कर दिया है तथा लाॅकडाऊन काल ने लाचारी में लोगों में बाईयों के काम को मशीन या हाथ से स्वतः सुरु किया तथा अब वह उनका अभ्यास बन चुका है। अब कपड़े धोना, बर्तन धोना, खाना पकाना, ये सभी छोटे- मोटे हाथ के काम, झाड़ू लगाना बाईयों के स्थान पर मशीने काम करने लगेंगी और रोबोट भी दुनिया के संपन्न देशों में प्रवेश कर चुका है। अमेरिका के शहरों में रोबोट घरों से लेकर होटलों और दफ्तरों में सुरक्षा कर्मियों के स्थान पर प्रवेश कर चुका है तथा क्रमशः चिकित्सा के क्षेत्र में भी प्रवेश कर रहा है। यहाँ तक कि हार्ट के ऑपरेशन और अन्य ऑपरेशन रोबोट करने लगे हैं। दुनिया के बड़े पैसे वाले जो पहले एक नंबर के थे और अब शायद दूसरे, तीसरे नम्बर पर हैं। बिल गेट्स ने कुछ दिनों पहले सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि, रोबोट इंसान को बेरोजगार बनायेगा और एक बड़ा खतरा साबित होगा। अमेरिका या यूरोप के देशों के लिए मशीन खतरा है, रोबोट खतरा है, उनके रोजगारों को छीनने वाला है, जबकि उनकी आबादी तुलनात्मक रूप से बहुत कम है। और इसलिए उनके यहाँ यह मशीन जितना बेरोजगारी पैदा कर रही है, उससे तुलनात्मक रूप से यह रंगीन दुनिया के देशों में बहुत ज्यादा बेरोजागारी पैदा करेगी। भारत एशिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों पर तो इसका प्रभाव मारक होगा।
6. इस मशीनीकरण का प्रभाव मीडिया पर भी पड़ेगा और मीडिया कर्मी की संख्या बड़ी मात्रा में कम हो जाएगी। पत्रकारिता मानव और मानवीय संवेदनाओं से कट जाएगी। राजनीति भी इससे प्रभावित होने वाली है और वहाँ भी सभा- संवाद- संपर्क से लेकर मतदान तक सब कुछ मशीन के माध्यम से होगा। व्यक्तिगत संपर्क समाप्त होगा। संवेदनाओं की धारा सूख जायेगी।
7. शिक्षा का स्वरूप ही बदल जाएगा और शिक्षा तथा उसके पाठ्यक्रम आदि केवल व्यापार केन्द्र बन जाएंगे। अभी तो जिनके रोजगार छिने हैं, वे प्रारंभिक रूप में कारखाना बंदी, काम बंदी, शिक्षण संस्थान बंदी और चिकित्सा संस्थान बंदी से छिने है।
परन्तु जब मशीन ही मानव का विकल्प बन जाएगी तब जो बेरोजगारी पैदा होगी उसकी कल्पना करना भी कठिन है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने आंकलन में कहा है कि वर्ष 2020 के अंत तक दुनिया में लगभग 12 करोड़ लोग बेरोजगार होंगे और 1 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार होंगे।
भारत में भी जो अप्रवासी मजदूर घरों को लौटे है उनकी संख्या लगभग 8 करोड़ के आस-पास। इनका छोटा सा हिस्सा भी अभी तक काम पर वापिस नहीं लौट पाया है। उनके पास जो कुछ जमा पूँजी थी वह खत्म हो चुकी है। अब वे कर्ज ले रहे है तथा कर्ज पर जिंदा है, और अब उनके समक्ष पेट भरने और जिंदा रहने के लिए अपराध ही सहारा है। ग्रामीण क्षेत्रों में और दूरस्थ क्षेत्र में कोरोना जनित बेरोजगारी के कारण अपराध बढ़ाना शुरू हो गए है। म.प्र. पुलिस के गुप्तचर विभाग ने जानकारी दी है कि पिछले दिनों ९० नए गिरोह (डकैती के गिरोह) तैयार हुए है, जिनमें 2000 से अधिक लोग शामिल हुए है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में लूटपाट की घटनायें बढ़ी हैं। यह केवल म.प्र. का आंकड़ा है, अगर सारे देश में यही स्थिति बनेगी तो एक मोटे अनुमान के मुताबिक सारे देश में अभी तक लगभग 2 हज़ार गिरोह तैयार हो चुके है और जिनमें लगभग पचास हज़ार लोग नए डाकू के रूप में भर्ती हो गये हैं। एक तरफ देश का यह नया दस्युकरण या अपराधीकरण सुरु हो गया है और दूसरी तरफ बेरोजगारी और अकेलेपन के अवसाद से आत्महत्यायों के प्रकरण बढ़ रहे हैं।
एक अनुमान के अनुसार इस वर्ष के अंत तक देश में लगभग 20 लाख लोग आत्महत्यायें कर सकते है। याने कोरोना देश को डकैतों और आत्महत्याओं के देश में बदल देगा।
हम लोगों ने सरकार से माँग की थी कि ‘‘कोरोना पेंशन सुरु की जाए तथा कोरोना प्रभावितों को पेंशन दी जाए, जब तक कि कोई विकल्प या रोजगार नहीं मिल जाता है। परन्तु सरकार मौन है और आम जन भी भयभीत या फिर स्वकेन्द्रित होकर मूक दर्शक बना बैठा है।
आवश्यकता यह है कि जनता संघर्षशील बने और सरकारे संवेदनशील।
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