विशेष: भीतर-भीतर जंग !
विशेष में प्रस्तुत है-
दिल्ली यूनिवर्सिटी के डॉo सत्यवान सौरभ, रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट द्वारा रचित
"कविता":
उबल रहे रिश्ते सभी, भरी मनों में भांप !
ईंटें जीवन की हिली, सांस रही हैं कांप !!
बँटवारे को देखकर, बापू बैठा मौन !
दौलत सारी बांट दी, रखे उसे अब कौन !!
नए दौर में देखिये, नयी चली ये छाप !
बेटा करता फैसले, चुप बैठा है बाप !!
पानी सबका मर गया, रही शर्म ना साथ !
बहू राज घर- घर करें, सास मले बस हाथ !!
कुत्ते बिस्कुट खा रहे, बिल्ली सोती पास !
मात-पिता दोनों कहीं ,करें आश्रम वास !!
चढ़े उम्र की सीढियाँ, हारे बूढ़े पाँव !
आज बुढ़ापे में कहीं, ठौर मिली ना छाँव !!
कैसा युग है आ खड़ा, हुए देख हैरान !
बेटा माँ की लाश को, नहीं रहा पहचान !!
कोख किराये की हुई, नहीं पिता का नाम !
प्यार बिका बाजार में, बिल्कुल सस्ते दाम !!
भाई-भाई से करें, भीतर-भीतर जंग !
अपने बैरी हो गए, बैठे गैरों संग !!
रिश्तों नातों का भला, रहा कहाँ अब ख्याल !
मात-पिता को भी दिया, बँटवारे में डाल !!
कैसे सच्चे यार वो, जान सके ना पीर !
वक्त पड़े पर छोड़ते, चलवाते हैं तीर !!
(डॉo सत्यवान सौरभ)
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