राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर द्वारा आयोजित ऑनलाइन कार्यकारी विकास कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया
शर्करा कारखानों को ‘आत्मनिर्भर’ बनाने के लिए जैव-ऊर्जा और अन्य मूल्यवर्धित उत्पादों के एक केंद्र के रूप में परिवर्तित करें, जिसमें विशिष्ट शक्कर भी शामिल है: सचिव, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग
नई-दिल्ली (PIB): राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर, उत्तर प्रदेश द्वारा ऑनलाइन आयोजित पांच दिवसीय 'कार्यकारी विकास कार्यक्रम' का उद्घाटन आज खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के सचिव, श्री सुधांशु पांडे द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में भारतीय और विदेशी चीनी उद्योग के लगभग 100 वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे। अपने उद्घाटन भाषण में सचिव, डीओएफपीडी ने कहा कि वैश्विक शर्करा परिदृश्य के संदर्भ में ऐसे चीनी कारखानों का विकास किया जाना चाहिए जो चीनी के साथ-साथ ईथनोल के उत्पादन मे बाजार के मांग की आपूर्ति और आर्थिक लाभ दोनों मे सामंजस्य स्थापित कर सकें। उन्होंने इसके साथ-साथ, चीनी कारखानों को “आत्मनिर्भर” बनाने के उद्देश्य से कारखानों को जैव-ऊर्जा तथा अन्य मूल्यवर्धित उत्पादों के लिए विशिष्ट शर्करा के उत्पादन केंद्र के रूप मे विकसित करने पर भी बल दिया। संस्थान की सराहना करते हुए उन्होंने कामकाजी श्रमिकों के ज्ञान को समृद्ध करने के लिए इस प्रकार के और ज्यादा ऑनलाइन कार्यक्रमों को आयोजित करने पर भी बल दिया जिससे आर्थिक और पर्यावरण की दृष्टिकोण से दीर्धकालिक चीनी उद्योग को सुनिश्चित किया जा सके।
श्री सुबोध कुमार सिंह, संयुक्त सचिव (चीनी और प्रशासन), भारत सरकार ने भी इस कार्यक्रम को संबोधित किया और चीनी कारखानों से पेट्रोल में इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (ईथनोल ब्लेंडिंग) को ध्यान मे रखते हुए ईथनोल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए गन्ने के रस, सीरप और बी हैवी शीरा जैसे सह-उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम के अनुसार जहां हमे 10% ईथनोल सम्मिश्रण करने की आवश्यकता है हम उसके स्थान पर केवल 5% ही ईथनोल का सम्मिश्रण कर पा रहे हैं, इसके उत्पादन से चीनी कारखानों को अपनी वित्तीय स्थिति सुधारने में सहायता प्राप्त हो सकती है। उन्होंने कहा कि यह देश के लिए स्वच्छ और हरित ईंधन देने, ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त करने और कच्चे तेल का आयात करने के लिए आवश्यक विदेशी मुद्रा के संरक्षण के लिए व्यापक हित में शामिल है।
राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर के निदेशक, प्रो नरेंद्र मोहन ने "रणनीतिक योजना और संसाधनों का अनुकूलन" पर अपने व्याख्यान में सुझाव दिया कि चीनी अधिशेष और कोविड-19 के प्रभाव को देखते हुए, अधिकारियों को “पुनरावलोकन, पुनर्नियोजन एवं पुनः संयोजन” के मंत्र का पालन करने की आवश्यकता पर बल दिया जिससे कि वर्तमान परिदृश्य में सर्वश्रेष्ठ व्यापार मॉडल तैयार किया जा सके। “फार्म से उपभोक्ता तक” सुरक्षित खाद्य-पदार्थ की आपूर्ति और "एन-ओ-एन" यानी प्राकृतिक, कार्बनिक और पोषकता से भरपूर मिठास का उत्पादन चीनी उद्योग को अपने एजेंडा में शामिल करना चाहिए।
क्वींसलैंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी, आस्ट्रेलिया के प्रोफेसर रॉस ब्रॉडफुट ने "रणनीतिक योजना और संसाधनों का अनुकूलन" पर अपने विचार रखते हुए कहा कि चीनी उत्पादन मे शामिल देशों को नियमित रूप से परिवर्तित होते वाणिज्यिक मॉडल एवं तकनीकी विकास को आत्मसात करने की आवश्यकता है। हालांकि उन्होंने कहा कि चीनी से प्राप्त आय पर निर्भरता को कम करने के लिए विविधीकरण करना बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि दक्षता मापदंडों को बेंचमार्क करना और एसओपी का निर्माण करना बहुत ही महत्वपूर्ण है जिससे कि उत्पादन की लागत में कमी लाई जा सके।
आईआईटी-रुड़की के प्रोफेसर डॉ. विनय शर्मा ने अपना व्याख्यान “सहयोगात्मक नेतृत्व और नेतृत्व के विकास” विषय पर दिया। उन्होंने कहा कि उच्च उत्पादकता एवं अनुकूल वाणिज्यिक माहौल के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक कार्मिक अपने उत्तरदायित्व का समुचित निर्वहन करें।
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