स्वतंत्रता दिवस और रामराज्य: रघु ठाकुर
भोपाल (म प्र), 16 अगस्त 2020: 74वें स्वाधीनता दिवस के अवसर परआज के राजनैतिक पैगम्बर- समतामूलकसमाज की स्थापना के प्रति समर्पित - महान समाजवादी चिंतक व विचारक तथा लोकतान्त्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक- रघु ठाकुर ने अपनी विशेष प्रस्तुति में कहा कि, 15 अगस्त 1947 को देश में खंडित आजादी अंग्रेजों के द्वारा हस्तांतरित की गई थी। हाँलाकि 9अगस्त1942 को गाँधी के आव्हान पर जिस आजादी के आंदोलन की शुरूआत हुई थी, वह खंडित आजादी के लिए नहीं था।
रघु ठाकुर ने कहा कि, इस आंदोलन में देश के किसानों, मजदूरों, युवकों, छात्रों, व्यापारियों, पत्रकारों सभी के सपनों के रंग शामिल थे और सबको यह उम्मीद थी कि, आजाद भारत बापू के सपनों का भारत होगा, जिसमें रामराज्य होगा। याने ऐसा शासन जिसमें न कोई दुखी होगा, न कोई पीड़ित होगा, न अपराध होंगे, न कोई छोटा या बड़ा होगा।
रघु ठाकुर ने बताया कि, रामराज्य का वर्णन करते हुए तुलसीदास ने रामायण में लिखा था ‘‘दैहिक दैविक भौतिक तापा, रामराज्य काहू नहीं व्यापा’’ याने रामराज्य एक ऐसा राज्य होगा जिसमें शारीरिक, दैविक और भौतिक किसी किस्म की कोई पीड़ा नहीं होगी। परन्तु आजादी के 73 वर्ष में जब हम भारत की आजादी और देश के हालातों की ओर देखते हैं तो बापू का रामराज्य कहीं नज़र नहीं आता।
रघु ठाकुर ने बताया कि, देश में प्रतिवर्ष लगभग 2-3 लाख लोग दुर्घटनाओं में मर जाते हैं, लगभग 70-80 लाख बच्चे 5 वर्ष की उम्र होते-होते कुपोषित होकर मर जाते है। माताओं के पेट में न पौष्टिक भोजन है, न संतान के। वह दोनों बेहाल हैं। लाखो लोग प्रतिवर्ष टी.बी. जैसी बीमारियों से मर जाते है। प्रतिवर्ष देश में सूखा और बाद की विपत्ति आती है। इस वर्ष भी अभी तक बाढ़ से लगभग 40 लाख लोग बेघर और तबाह हो चुके है। बिहार, आसाम, उ.प्र., आदि क्षेत्रों के बड़े इलाके जलमग्न हैं। क्या यह सब दैविक दैहिक और भौतिक तापा नहीं है?
रघु ठाकुर ने कहा कि, प्रधानमंत्री जी ने कई सौ करोड़ से बनने वाले राम मंदिर का शिलान्यास तो कर दिया परन्तु रामराज्य की कल्पना की एक ईट भी कहीं नज़र नहीं आती। हाल ही में बाढ़ के प्रश्न की चर्चा करते हुए उन्होंने (प्रधानमंत्री जी) मुख्यमंत्रियों से बात की। बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार बोले कि, नेपाल अपने समझौते का क्रियान्वयन नहीं कर रहा है। यह कोई नया तर्क नहीं है बल्कि एक अर्थ में यह एक पुराना जुमला है। मैं जानता हूॅ, कि नेपाल से आने वाला पानी बाढ़ का कारण है, परन्तु आजादी के 73 वर्षाें में इस पानी को बाँधकर सूखे खेतों की ओर ले जाने का प्रयास देश की केन्द्र या राज्य की सरकारों ने क्यों नहीं किया?
क्या नेपाल ने देश के मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री के हाथ बाँध दिए है?
क्या वह अपने देश की जनता के हित में काम नहीं कर सकते?
रघु ठाकुर ने बताया कि, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा कि, तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए, परन्तु किस तकनीक से बाढ़ रूकेगी इसका खुलासा उन्होंने नहीं किया। इसका कारण नेपाल है, परन्तु भारत के शासकों के लिए बचाऊ की बकरी है। सभी दलों की सरकारें या सभी दलों के लोग इन 73 वर्षाें में कही न कहीं सरकारों के कम या ज्यादा हिस्सेदार रहे हैं, परन्तु एक मात्र डाॅ. लोहिया को छोड़कर किसी ने भी इन सवालों को गंभीरता से नहीं उठाया है, सूखा और बाढ़ राहत देश के भ्रष्ट नेताओं की विलासता और राजनीति का बड़ा माध्यम है, इसलिए वे राहत चाहते है, मुक्ति नहीं। राहत प्रतिवर्ष बढ़ेगी क्योंकि प्रतिवर्ष विपत्ति आएगी परन्तु अगर मुक्ति मिल गई तो राहत के नाम से पैसा कैसे आएगा। इन 73 वर्षाें में केन्द्र और राज्यों को मिलाकर लगभग 40 लाख करोड़ रूपया राहत पर खर्च हो चुका है और विपत्ति जहाँ की तहाँ है।
रघु ठाकुर ने कहा कि, कोरोना की महामारी वैश्विक महामारी है और दुनिया इसकी वैक्सीन खोजेगी। परन्तु भारत के प्रधानमंत्री जैसा वैज्ञानिक और चिकित्सक कौन हो सकता है, जिन्होंने कोरोना महामारी का वैक्सीन लाॅकडाऊन में ही खोजने और निजीकरण तथा विदेशी पूँजीनिवेश की वैक्सीन से वे देश को कोरोना मुक्त कर रहे हैं। देश के सभी सरकारी क्षेत्र, रेलवे, बीमा, बैंक, स्टील क्षेत्र, आई.टी., खनन, रक्षा आदि सभी सरकारी क्षेत्रों के उद्यमों को वे निजीकरण की वैक्सीन लगा रहे हैं और देशी-विदेशी उद्योगपतियों के हाथों मामूली कीमत पर इन्हें बेच रहे है। पिछले 4-5 माह में लाॅकडाऊन के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था चैपट हो चुकी है। राजस्व संग्रह चाहे वह जी.एस.टी. हो या ब्रिकीकर, आयकर हो या स्थानीय कर, सभी की वसूली नगण्य है। क्येांकि जब व्यापार ही ठप्प हो गया है तो कर कहाँ से आएगा। विगत् चार दिनों से ट्रांसपोर्टर हड़ताल पर है। क्योंकि सरकार बगैर वाहन चलाए उनसे टैक्स लेना चाहती है। राज्यों के कर्मचारियों का वेतन कर्ज लेकर बँट रहा है और वर्क फार्म होम के नाम पर सरकारी और निजी कर्मचारियों को बेरोजगारी में ढकेला जा रहा है।
रघु ठाकुर ने बताया कि, संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रपट के अनुसार लगभग 1 करोड़ लोग इस लाॅकडाउन की बीमारी से नए बेरोजगार बन गये है याने वह जो बेरोजगार थे जिन्हें रोजगार मिला ही नहीं था। जबकि देश में पहले से ही 10-12 करोड़ लोग बेरोजगार बने हुए है, इसके साथ-साथ लगभग एक करोड़ नये लोग अब काम बंदी की वजह से बेरोजगार हो गए है। हाथ से काम मिलने वाले तमाम छोटे-छोटे धन्धे के लोग बेरोजगार हो चुके है। काम धन्धे बंद है और देश की आबादी का एक अच्छा खासा हिस्सा नए गैर सरकारी कर्ज में डूब गया है। इसके परिणामस्वरूप बड़ी आबादी अवसाद ग्रस्त हो रही है और आत्महत्या का मार्ग चुन रही है। अगर हालात नहीं बदले तो शायद इस वर्ष में 20 लाख लोग आत्महत्यायें करेंगे। हाल ही में दिया जा रहा कर्जा किसी काम धन्धे को नहीं बल्कि पेट भरने को है।
रघु ठाकुर ने कहा कि, प्रधानमंत्री जी नारा दे रहे हैं - 'आत्मनिर्भर भारत' का, परन्तु रास्ता बता रहे हैं एफ.डी.आई. (FDI) का, याने परनिर्भरता का। कोरोना के नाम पर न केवल देश में बल्कि समूची दुनिया में एक सांस्कृतिक और तकनीकी महाप्रलय आया है। अमेरिका जैसे देश में 42 प्रतिशत लोग तकनीकी हमले के शिकार हो चुके है और लगभग 20 लाख कामगारों की जगह पर मशीनें या रोबोट आ गए है। यहां तक कि दुनिया के बड़े पैसे वाले बिल गेट्स ने भी रोबोट्स के खतरे को बहुत गंभीर खतरा बताया है। जो इंसान को बेदखल करेगा और दुनिया की बड़ी आबादी को भुखमरी की गोद में धकेल देगा। अमेरिका या यूरोप के देश जो तकनीक के मालिक है वे इस झटके को थोड़ा बहुत सहन कर पाए थे, परन्तु एशिया अफ्रीका याने रंगीन दुनिया के देशों की बड़ी आबादी के लिए यह विश्वयुद्ध से भी खतरनाक नर संहार होगा। आज अगर बापू जिंदा होते तो, इस महामारी के लिए शायद दुनिया के सम्पन्न लोगों, उनके लालच व विषमता को गुनहगार बताते। तकनीक से हमारा केाई बैर नहीं है, परन्तु तकनीक के साम्राज्यवाद से हमें लड़ना होगा और इसके लिए एक नई जन क्रांति की आवश्यकता है।
रघु ठाकुर ने अंत में सबका आह्वाहन करते हुए कहा कि, आइए 15 अगस्त को हम अपनी पाई हुई आजादी को बचाने के लिए इस क्रांति के सिपाही बने। हम साहस से बोले व बोली की रक्षा करें और बोलने के जन्म सिद्ध अधिकार को किसी भी कीमत पर समाप्त न होने दें। रामराज्य और रावणराज्य का यही फर्क है कि राम के राज्य में गरीब भी राम के खिलाफ बोल सकता था और रावण राज्य में रावण का भाई व पत्नी भी राजा के खिलाफ नहीं बोल सकती थी। राम राज्य और रावण राज्य के फर्क की कसौटी अगर कोई है तो वह निर्भीक बोलने की आजादी।
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