रेल बचेगी तो देश बचेगा: रघु ठाकुर
भोपाल/ लखनऊ, 30 जुलाई 2020: समता मूलक समाज की स्थापना हेतु समर्पित महान समाजवादी चिंतक व विचारक तथा लोकतान्त्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक - रघु ठाकुर ने देश और देश की भारतीय रेल पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि, भारतीय रेल वैसे तो 1985 के बाद से ही भारत सरकार के निशाने पर है। 1985-86 में विश्व बैंक के उपाध्यक्ष डेविड हूपर दिल्ली आए थे और उनके आने के बाद ही भारत सरकार ने कतिपय मालगाड़ियों को निजी क्षेत्र में देना शुरू किया था ‘‘ओन योर वैगन - ओन योर कोच’’ के नाम से योजना शुरू की गई थी। यानि उद्योगपति अपने वैगनों और कोच लेकर आए तथा रेल पटरियां सरकार की इस्तेमाल करे। यह भारतीय रेलवे के निजीकरण की शुरूआत थी और शायद विश्व बैंक के कर्ज की छिपी शर्त भी थी।
रघु ठाकुर ने कहा कि, उसके बाद 2019 में लखनऊ-दिल्ली तेजस नाम से निजी यात्री रेल सेवा शुरू की गई और योजनाबद्ध तरीके से शताब्दी एक्सप्रेस को बदनाम और असफल सिद्ध किया गया। बुलेट ट्रेन योजना के लिए भारत सरकार ने जापान से कर्ज लिया और अहमदाबाद-मुंबई रूट पर बुलेट ट्रेन की योजना की शुरूआत की। यह भी एक प्रकार से रेल का निजीकरण ही था। फिर लगभग देश के 350 प्लेटफार्म को निजी उद्योगपतियों को ठेके पर दिया गया और सड़क मार्ग के रोड टैक्स के समान उन्हें मनमाने दर पर पार्किंग तथा प्लेटफार्म टिकिट आदि का शुल्क तय करने के अधिकार भी दे दिए गए। विभिन्न शाखाओं के कामों को भी, जैसे सफाई का काम, कुछ जगह पटरी बिछाने का काम आदि भी ठेकेदारों को दे दिए गए।
रघु ठाकुर ने बताया कि, इसी वर्ष मार्च माह के 25 तारीख से शुरू हुए लाॅकडाउन के बाद तो बड़े पैमाने पर रेल के निजीकरण की शुरूआत की गई। मैंने मार्च माह में ही अपने उपलब्ध साधनों के माध्यम से रेल मजदूर नेताओं, कर्मचारियों और जनता को सावधान करना शुरू किया था कि 'कोरोना तो बहाना है, निजीकरण लाना है', और देश को सावधान करने का प्रयास किया था। अब उस चेतावनी के परिणाम सामने दिखने लगे है। लाॅकडाऊन के नाम पर लगभग दो माह सम्पूर्ण रेल यातायात (केवल कुछ मालवाहक सेवाओं को छोड़कर) बंद कर दिया गया। बीच में एक बार मई में गाड़ियों को शुरू करने की घोषणा की गई परन्तु उसे पुनः स्थगित कर दिया गया और अब जो गाड़ियां भारत के रेल मंत्रालय ने 1 जून के बाद चलाई है, उनसे एक तरफ सिनीयर सिटीज़न की रियायतें खत्म कर दी गई और दूसरी तरह यह सभी गाड़ियां विशेष गाड़ी के तौर पर चलाई जा रही है तथा उसका किराया भी पिछले समय के किराये से लगभग डेढ़ से दो गुना कर दिया गया है। पैसेंजर गाड़ियों को अभी तक चालू नहीं किया गया है, परन्तु यह सूचना अखबारों में आ चुकी है कि, अब जहाँ पहले न्यूनतम किराया 13 रू. होता था वहीँ अब न्यूनतम 50 रूपये होगा। याने पैसेंजर के यात्रियों को 4-6 किलोमीटर यात्रा का भी कम से कम 50 रूपये देना होगा, और अब रेल मंत्री ने कहा है कि लगभग 150 यात्री रेल गाड़ियां निजी क्षेत्र को दी जा रही है। जहाँ एक तरफ अनेक क्षेत्रों में निजी क्षेत्र असफल हो रहा है और उन्हें बचाने के नाम पर सरकार को जनता के खजाने से लाखों करोड़ रूपये खर्च करना पड़ रहे है, वहाँ रेल मंत्रालय निजी क्षेत्र को रेल गाड़ियाँ देने की तैयारी में है।
रघु ठाकुर ने बताया कि, कुछ दिनों पहले ही कई विमानन कंपनियां बंद हुई हैं, जिनमें बड़े-बड़े खिलाड़ी थे और वे उन्हें डुबाकर चले गए, और अब उन्हें सरकार को चलाना पड़ रहा है। दुनिया के कितने ही देशों में यहाँ तक कि यूरोप में भी रेल सरकारी है और जब ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटेन की रेल के निजीकरण की पहल की थी तो वहाँ के रेल कर्मचारियों ने डटकर आंदोलन किया, जिसके परिणाम स्वरुप परिणामस्वरूप सरकार को झुकना पड़ा। रघु ठाकुर ने कहा कि, कोरोना काल के बहाने से सरकार रेलवे को निजी हाथों में देना चाहती है और वैसे तो इसके संकेत इस सरकार के पिछले कार्यकाल में ही मिल गए थे जब उसने रेल बजट, को जो पूर्व में अलग रूप में पेश होता था, को आम बजट में शामिल कर दिया था तथा एक प्रकार से रेल की स्वायत्ता को समाप्त करने की शुरूआत कर दी थी। ऐसा ही खेल दूर संचार क्षेत्र में शुरू हुआ था कि निजी क्षेत्र वालों ने सरकारी ढाँचे का इस्तेमाल कर धंधा शुरू किया था और अब बी.एस.एन.एल., एम.टी.एन.एल. आदि बंद होने के कगार पर है तथा जियो इनको मारकर फल-फूल रहा है।
रघु ठाकुर ने कहा कि, यात्री रेल के निजीकरण से देश का सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम बिक जाएगा और फिर किसी छोटे-मोटे सार्वजनिक क्षेत्र के पास लड़ने की क्षमता भी नहीं रहेगी। परन्तु भारत के रेल मजदूर आंदोलन की प्रतिक्रिया बहुत ही दु:खद है। पिछले अन्य वर्षाें में मेरी अनेक बार ए आई.आर.एफ. के पदाधिकारियों से बात-चीत हुई है और मैंने उन्हें रेल कर्मचारियों के भविष्य के लिए और देश के भविष्य के लिए संघर्ष हेतु सहमत करने का प्रयास किया। उन्होंने सदैव ही सकारात्मक उत्तर दिया परन्तु आचरण में अमल नहीं किया और अभी हाल में बी.बी.सी. के पूर्व संवाददाता श्री रामदत्त त्रिपाठी के द्वारा ए.आई.आर.एफ. के महासचिव श्री शिव गोपाल मिश्र से लिया गया 'साक्षात्कार' मैंने सुना है, और उससे मैं आश्चर्यचकित भी हूॅ और पीड़ादायक भी। श्री मिश्र ने जो उत्तर दिए, उन्हें मैं क्रमबद्ध ढंग से निचे दर्ज कर रहा हूॅ:
1. उन्होंने (श्री शिव गोपाल मिश्र, महासचिव- ए.आई.आर.एफ.) कहा कि, निजी क्षेत्र की रेल गाड़ियां पहले भी चलती रही है जैसे पैलेस आन व्हील, महाराजा आदि।
2. निजी क्षेत्र सफल नहीं होगा। जिस प्रकार लखनऊ, दिल्ली तेजस असफल हो रही है और छोड़ कर भागने की तैयारी में है।
3. कर्मचारियों की भर्ती के सवाल पर उन्होंने कहा कि, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का बयान छपा है, कि अभी आर्थिक संकट है, और इसके दूर होने के बाद भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
4. कर्मचारियों की छंटनी पर उन्होंने कहा कि कोई छंटनी नहीं हो रही है।
5. कर्मचारियों के वेतन, भत्ते आदि वृद्धि पर रोक के बारे में कहा कि वह श्री राजनाथ सिंह रक्षा मंत्री से मिले थे और उन्होंने आश्वस्त किया है कि कोरोना संकट के बाद प्रधानमंत्री जी से मिलेंगे।
6. उन्होंने का कहा कि हमारी केन्द्रीय कमेटी ने तय किया है कि यदि भर्ती नहीं होगी तो संगठन आंदोलन करेगा। अब श्री मिश्र जी (श्री शिव गोपाल मिश्र, महासचिव- ए.आई.आर.एफ.) के कथनों को तथ्य की कसौटी पर देखें तो कुछ दिन पहले एन.आर.एम.यू., जो ए.आई.आर.एफ. की शाखा है, के सदस्यों ने छोटी-छोटी संख्या में रेलवे स्टेशनों पर प्रदर्शन किए हैं, और माँग की है कि छंटनी बंद की जाए, वेतन भत्ता दिया जाए आदि-आदि। एक तरफ राष्ट्रीय महासचिव कह रहे है कि कोई छंटनी नहीं हो रही है, और उनकी ही ईकाईयां केन्द्रीय परिपत्र के आधार पर प्रतिकात्मक प्रदर्शन आदि का नाटक कर रही हैं। मैंने एक-दो स्टेशनों के फोटो स्वतः देखे हैं, जहाँ 10-15 कर्मचारी प्रदर्शन कर रहे है, और मुश्किल से 10 - 20 मिनिट के प्रदर्शन और ज्ञापन के बाद विदा हो जाते है। यहाँ तक कि शाखा के पदाधिकारियों की संख्या से भी कम लोग जमा हो रहे है। अब अगर छंटनी नहीं हो रही है तो फिर यह नाटक क्यों हो रहा है? मतलब साफ है कि एक तरफ फेडरेशन का केन्द्रीय नेतृत्व सरकार को प्रमाण पत्र दे रहा है, और दूसरी तरफ छुट-पुट दिखावे के प्रदर्शन करके कर्मचारियों को गुमराह कर रहा है।
रघु ठाकुर ने कहा कि, पैलेश आन व्हील जैसी गाड़ी, यह राजा-महाराजाओं के निजी कोचों से बनी थी और यह एक महत्वहीन गाड़ी है, इससे पूरे वर्ष में 1000-2000 लोग ही यात्रा करते है, और वह भी अमीर किस्म के लोग। होना तो यह चाहिए था कि, रेल मजदूरों के नेता इन्हें भी बंद करने की माँग करते बजाय उन्हें उदाहरण बनाने के। रेल, देश के उन 4 करोड़ आम यात्रियों का सबसे बड़ा सहारा है, जो मध्य वर्ग के गरीब लोग है तथा यह उनके सस्ते यातायात का माध्यम है। कितना दु:खद है कि, रेल मंत्री भले ही न समझें, यह अलग बात है, परन्तु रेल मजदूरों के नेता को भी यह पता नहीं है कि लाखों कर्मचारी मंथली पास लेकर अपनी नौकरी पर आते-जाते हैं, देश भर में करोड़ों के आस-पास गरीब मजदूर, महिलायें प्रतिदिन मजदूरी पर अपने प्रदेश की उपज तेंदू पत्ता, सूखी जलाऊ लकड़ी, सब्जी आदि बेचने को रेल से यात्रा करते है, लाखों गरीब बेरोज़गार स्टेशनों आदि, रेल गाड़ियों में अपना समान बेचकर पेट भरते हैं, रेल न केवल आम और गरीब के लिए किसान मजदूर के लिए महिला छात्रो और कर्मचारियों के लिए सस्ता यातायात का साधन रहा है, बल्कि देश भर के चालीस-पचास लाख बेरोजगारों का पेट भी पालती है। रेल मजदूरों के नेता इतने सरल है कि उन्होंने प्रधानमंत्री जी के कथन पर कि कोरोना संकट के बाद भर्ती होगी पर विश्वाश कर लिया। श्री शिव गोपाल मिश्र तो हम लोगों के 1974 के रेल आंदोलन के साथी रहे हैं, उन्हें याद होगा कि 1974 में रेलवे में 22 लाख पक्के कच्चे कर्मचारी थे और अब उनके ही दस्तावेज़ों में वह यह स्वीकारते है कि बामुश्किल 12-13 लाख कर्मचारी बचे है, याने 8-9 लाख कर्मचारी कम हो चुके है, जबकि रेल का यात्रागत विस्तार लगभग 3 गुना बढ़ चुका है। याने प्लेटफार्म बढ़कर 10 हज़ार के आस-पास, यात्री संख्या बढ़कर 1 करोड़ से 4 करोड़, रेल पटरियों की लम्बाई लगभग तीन गुना हो चुकी है, तथा कर्मचारी एक तिहाई कम हो चुके है, फिर क्या उन्हें यह याद नहीं है कि, पिछले लगभग एक दशक से प्रतिवर्ष और विशेष तौर पर आम चुनाव के पहले रेल मंत्री कई लाख रिक्त पदों की भर्ती की घोषणा करते हैं, फार्म मंगाये जाते हैं, बेरोजगारों से पैसा वसूला जाता है लाखों नौजवान गाड़ियों में जानवरों जैसे लदकर पहुंचते हैं, कई बार दुर्घटनावश मरते भी हैं, सड़कों पर पड़े रहते हैं, भर्तियां चुनाव के बाद रूक जाती है। मैं देश के सभी रेल मजदूरों के संगठनों से चाहे वह किसी भी दल से सम्बन्धित हों या जाति आधारित हों या वर्गीय काम पर आधारित हों, से अपील करूॅगा कि, अगर अब भी नहीं जागे - मैदान में नहीं उतरे तो आपका नामों-निशान मिट जाएगा और रेल मजदूरों का आंदोलन, जिसे लोक नायक जय प्रकाश, वी.वी. गिरी और जाॅर्ज फर्नांडिस ने जमीन पर उतारा था, वह लुप्त हो जाएगा। आपकी आने वाली पीढ़ियां आपको धिक्कारेंगी। देश की जनता से भी मैं अपील करूॅगा कि अगर रेल मजदूर आंदोलन शुरू करते है तो वह उनका साथ दें। रेल बचेगी तो देश बचेगा।
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