बच्चों को भ्रामक प्रचार और फेक न्यूज़ को पहचानना सिखाएं: उपराष्ट्रपति
- बच्चों में पढ़ने की आदत में कमी पर चिंता जताई।
- उपराष्ट्रपति ने विद्यार्थियों से कोविड के कारण शिक्षा सत्र में आए व्यवधान से चिंतित न होने को कहा।
- जीवन की ऊंच नीच का सामना करने के लिए युवा मानसिक और भावनात्मक रूप से स्वयं को दृढ़ करें।
- शिक्षा का उद्देश्य मानव में अच्छे मूल्य पैदा करना है।
- एकाग्रता बढ़ाने और शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए युवा योगाभ्यास करें।
- युवाओं से उनके रुचि के चुने हुए क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करने को कहा।
- आपसे कम भाग्यशाली लोगों की स्थिति को हमेशा ध्यान में रखें।
नई-दिल्ली, 27 जुलाई 2020 (PIB): उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने मीडिया और विशेष कर वर्तमान न्यूज़ मीडिया में व्याप्त भ्रामक प्रचार और फेक न्यूज़ से बच्चों को अवगत कराने पर बल देते हुए कहा कि बच्चों को ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे वे ऐसी खबरों को पहचान सके।
आज टाइम्स स्कॉलर्स इवेंट के अवसर पर 200 से अधिक मेधावी युवा प्रतिनिधियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने उनसे जानकारी का विश्लेषण करने तथा सत्य को स्वीकार करने और असत्य अफवाहों को हटा देने की योग्यता विकसित करने का आग्रह किया। यह इवेंट टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा विद्यार्थियों में पढ़ने विशेषकर अखबार पढ़ने के प्रति रुचि विकसित करने के उद्देश्य से,आयोजित किया गया था।
उन्होंने कहा एक सुशिक्षित विद्यार्थी जीवन की चुनौतियों का सामना करने में बेहतर सक्षम होता है।
भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को उदृत करते हुए उपराष्ट्रपति ने विद्यार्थियों से " ऊंचे लक्ष्य स्थापित करने और ऊंचे स्वप्न देखने" को कहा। उन्होंने कहा कि ऊंचे लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आत्म अनुशासन, कठिन परिश्रम,एकाग्र संकल्प तथा हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखने जैसे गुण आवश्यक है।
कोवीड के कारण शिक्षा सत्र में आए व्यवधान की चर्चा करते हुए उपराष्ट्रपति ने युवा विद्यार्थियों से चिंतित न होने को कहा क्योंकि ये परिस्थितियां उनके वश में हैं ही नहीं।
उन्होंने विद्यार्थियों से जीवन की ऊंच नीच में भी मानसिक और भावनात्मक रूप से दृढ़ रहने को कहा।
उपराष्ट्रपति ने विद्यार्थियों से एकाग्रता बढ़ाने,शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए तथा तनाव और अवसाद से मुक्त रहने के लिए योगाभ्यास करने की सलाह दी।
उन्होंने कहा योग महामारी की अवधि में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और परामर्श दिया कि योग को बचपन से ही स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि योग युवाओं में एकाग्रता और अनुशासन बढ़ाता है।
वर्तमान में हर क्षेत्र में बढ़ती प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा की चर्चा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि विद्यार्थियों को आत्म विश्वास होना चाहिए तथा उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए हर बाधा को पार करने का जज्बा होना चाहिए। उन्होंने आगाह किया कि सफलता के लिए कोई छोटा रास्ता नहीं होता।
उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य मात्र डिग्री प्राप्त करना या रोज़गार ही नहीं है बल्कि शिक्षा आत्म आलोक और आत्म विश्वास के लिए है। शिक्षा सिर्फ आवश्यक जानकारी ही नहीं प्रदान करती बल्कि हमें एक अच्छा इंसान बनाती है।
भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली में नैतिक मूल्यों पर विशेष बल दिए जाने की चर्चा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि करुणा, निष्ठा, इमानदारी, कृतज्ञता, क्षमा तथा बड़ों के प्रति आदर भाव जैसे मानवीय गुणों का विकास भी शिक्षा का आवश्यक उद्देश्य है।
युवाओं को भारत के स्वर्णिम अतीत का प्रतिनिधि बताते हुए उपराष्ट्रपति ने उनसे कहा कि उन्हें अपनी समृद्ध ऐतिहासिक धरोहर पर गर्व होना ही चाहिए और विश्व में भारत के सर्वोच्च सांस्कृतिक मूल्यों और सभ्यतागत आदर्शों का प्रतिनिधि बनना चाहिए।
उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि वे उनकी अपनी रुचि के किसी भी चुने हुए क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करने का भरसक प्रयास करें और उत्कृष्टता के नए सीमांत खोजें,उन्हें प्राप्त करें,कभी भी यथा स्थिति से संतुष्ट न हों, ऊंचे से ऊंचे मानदंड स्थापित करें और उसे प्राप्त करें ।
उपराष्ट्रपति ने युवा विद्यार्थियों से अपेक्षा की कि वे वर्तमान विश्व के सामने गरीबी,असमानता,हिंसा, पर्यावरण परिवर्तन जैसी समस्याओं का अध्ययन कर उन्हें समझें और नए समाधान ढूंढें।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा दिए गए मंत्र की चर्चा करते हुए उपराष्ट्रपति ने युवा विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे अपने से कम भाग्यशाली लोगों की स्थिति के बारे में हमेशा ध्यान रखें।
उन्होंने आह्वाहन किया कि सर्वोदय और अंत्योदय हमारे मार्गदर्शक संस्कार बनें।
इस अवसर पर श्री नायडू ने भारत की युवा शक्ति को देश का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन बताया और विश्वास व्यक्त किया कि युवा देश को प्रगति की नई ऊंचाइयों पर ले जा सकेंगे।
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