विशेष - COVID-19: कोरोना के बाद की दुनिया कैसी होगी: रघुठाकुर
"विशेष" में प्रस्तुत है:
ख्यातिनाम गांधीवादी - महान समाजवादी चिंतक व विचारक तथा शहीद-ए-आजम भगत सिंह एवं डॉ. लोहिया के सैद्धांतिक लक्ष्य, जो एक ऐसे 'समतामूलक समाज' की स्थापना,
जिसमें "कोई व्यक्ति किसी का शोषण न कर सके और किसी प्रकार का अप्राकृतिक अथवा अमानवीय विभेद न हो",
को पूर्ण करने हेतु समर्पित लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक व राष्ट्रीय संरक्षक- रघु ठाकुर के लेख-
कोरोना के बाद की दुनिया कैसी होगी ?-
COVID-19: कोरोना के वैश्विक संकट से समूची दुनिया में बहस शुरू हुई है और इस महामारी के विश्व पर क्या प्रभाव हो सकते हैं, इसकी भी चर्चा शुरू हो रही है।
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी भविष्य को लेकर कुछ बिंदु अपने लेख के माध्यम से रखे हैं जो 20 अप्रैल को मीडिया में भी आये हैं।
उन्होने ब्रिंग यूअर ओन च्वाइस (बीबाईओसी) तथा वर्क फ्रॉम होम (WFH) की चर्चा की है। ये सब उसी वैश्वीकरण के अंतर्गत उठाये जाने वाले कदम हैं।
जब दुनिया में वैश्वीकरण का दौर शुरू हुआ तभी से हम उसके सम्भावित खतरों के प्रति आगाह करते रहे हैं। परन्तु वैश्वीकरण को विश्व विकास की कुंजी मानने वाले लोगों की भी संख्या कम नहीं है।
तीसरी तरफ नोमचाम्स्की जैसे अंतरराष्ट्रीय मार्क्सवादी बुद्धिजीवी को आदर्श मानकर दुनिया का नव-उदारवाद के समर्थको का भी एक हिस्सा रहा है जो वैश्वीकरण का शाब्दिक विरोध तो करता है पर वैकल्पिक सभ्यता के गांधी या डॉ लोहिया के विचार को मन से नहीं स्वीकारता।
शायद मार्क्सवाद को अपने बड़े कारखानों के समर्थन के कारण वैश्वीकरण के विरोध में विश्वसनीयता हासिल नहीं हो सकी। धीरे-धीरे कॉरपोरेट्स ने इस भ्रंम का फायदा उठाकर वैश्वीकरण को सही सिद्ध करा दिया।
अब कोरोना के चलते जिस प्रकार दुनिया लगभग 3 माह से ठहर सी गई है। खेत, खलिहान, कल-कारखाने यातायात के साधन सब बंद हैं और इंसान घर की चारदीवारी के अंदर कैद हो गया है। इसके जो भयानक परिणाम आएंगे उसकी कल्पना दुनिया और देश का बौद्धिक जगत शायद अभी नहीं कर पा रहा है। अपनी स्वार्थ सिद्धांतकी के चलते या तो वे ठीक से समझ नहीं पा रहे है या फिर तथ्यों को छुपाने के लिए कृतिम तर्कों का जाल बुना जा रहा है।
उदारवाद के एक नए प्रवक्ता प्रोफेसर हरारी जो इजराइल में विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर हैं, सामने आए हैं। प्रोफेसर हरारी हिंब्रू विश्वविद्यालय में हैं।
'हिब्रू भाषा' जिसका प्रयोग ईसा मसीह ने किया था, अब काल के गाल में उसी प्रकार समा गई है, जिस प्रकार भारत में संस्कृत अब काफी हद तक हिंदी में समा गई।
हालांकि भारत में अभी भी कुछ लोग संस्कृत के काल में लौटना चाहते हैं। पर अभी मेरा उद्देश्य भाषा के इन प्रश्नों पर जाना नहीं है, बल्कि कोरोना के आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, तकनीकी पक्ष, सम्भावित परिणामों व सम्भावित दुनिया के स्वरूप पर विचार करना है।
श्री हरारी ने एक लेख लिखा है जो दुनिया में कई जगह छपा है तथा पढ़ा व पढ़ाया जा रहा है, क्योंकि आज भी नवबौद्धिकों का बड़ा हिस्सा जुगाली बौद्धिक है।
प्रोफेसर हरारी कॉर्पोरेट सभ्यता के आंशिक विरोधी ही नजर आते हैं, क्योंकि वे मूल पर चोट नहीं करते। यह भी एक रणनीति है कि मूल का समर्थन करो तथा छुटपुट एकाध बाजू थोड़ा चोट कर यश पाओ।
वैश्वीकरण के आरम्भ में इसी प्रकार वैश्वीकरण का मानवीय चेहरा होना चाहिए, का प्रचार किया गया था। स्वाभाविक है कि उनकी बातों को दुनिया में ज्यादा स्थान मिलेगा और हम लोगों की बातें शायद इतिहास में दर्ज होकर रह जाएंगी।
उन्होंने कोरोना के बाद राज्य के सर्विलांस को नागरिक की निजता में दखल का औजार माना है और दुनिया के संपन्न और उच्च व मध्यवर्गीय तबके के निजी जीवन में राज्य की दखल और नागरिकों की अंडर स्किन निगरानी के मुद्दे पर केंद्रित किया है।
निगरानी के दुनिया में दो हिस्से कहे जाते हैं। एक- 'ओवर द स्किन' , तथा दूसरा- 'अंडर द स्किन'। याने चमड़ी के ऊपर और चमड़ी के नीचे।
उनका कहना है कि, बीमारी की निगरानी के नाम पर इंसान के शरीर और मस्तिष्क के भीतर घटित होने वाली तथा इंसान के आसपास घटित होने वाली सारी सूचनाएं राजतंत्र के पास पहुंच जाएंगी।
मैं समझता हूं कि चमड़ी के नीचे घटित होने वाली विचार सोच आदि को छोड़ दें तो, व्यक्ति की अन्य सारी सूचनाएं अभी भी राज्य के पास हैं।
देश में करोड़ों 'आधार-कार्ड' धारक हैं और शायद बहुत जल्दी हर व्यक्ति के पास आधार या पैन नंबर हो जाएंगे। जब आधार की चर्चा शुरू हुई थी तब पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के कार्यकाल में तब भी दुनिया के जुगाली बौद्धिक वर्ग ने उसके खिलाफ नागरिक के निजता के अधिकार को लेकर मीडिया से लेकर कोर्ट तक बहस चलाई थी।
उस समय भाजपा प्रतिपक्ष थी व राजनीतिक लाभ के लिए उनके प्रचार तंत्र व संघ ने भी इस मुहिम को पीछे से सहारा दिया था और अब केंद्र में श्री मोदी की सरकार के आने के बाद वे सब अपने शिक्षण के अनुसार मौन होकर पालन कर रहे हैं।
कोरोना का संकट और जो उसके हल बताए जा रहे हैं, उनसे यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि, इस संकट का आगामी कुछ वर्षों तक कोई स्थायी हल नहीं निकलेगा, सिवाय इसके कि व्यक्ति को दुनिया देश, समाज और घर-परिवार, सभी से अलग कर एक स्व-केंद्रित/ स्वार्थ केंद्रित व्यक्ति बना दिया जाए।
यह भी कहा जा रहा है कि, अभी तक कोरोना की कोई दवाई विकसित नहीं हो सकी है, जो स्थाई मलेरिया की दवा या उसका कुछ संशोधित स्वरूप ही उपयोग में आता रहेगा तथा कोरोना एक सतत चलने वाली बीमारी होगी और कुछ-कुछ दिन के अंतराल से लॉक डाउन और कोरोंटोरायन व आईसोलेशन के दौर चलते रहेंगे।
समय समय के अंतराल से इन प्रयोगों के बाद आदमी स्वभाव से ही घरों में कैद रहने का अभ्यस्त हो जाएगा।
मैं देख रहा हूँ कि, भारत में 22 मार्च से 24 मार्च के बीच तीन दिवसीय कर्फ्यू में व्यक्ति मानसिक तौर पर जितना परेशान था उसके बाद के 25 मार्च से 14 अप्रैल तक 21 दिवसीय लॉक डाउन में अपनी दैनिक जरूरतों राशन रोजगार दवा शिक्षा आदि को तो परेशान हुआ परंतु मानसिक तौर पर उतना परेशान नहीं रहा, बल्कि धीरे-धीरे लोगों ने अपने जीवन के भय के स्वार्थ में यहां तक की छोटी-छोटी बातों को लेकर फसाद कराने वाली जमातो/ धार्मिक मूहों/ राजनीतिक दलों / पत्रकारों/ कारखानेदारों/ किसानों यानी लगभग समूचे देश ने नियति मान कर स्वीकार कर लिया, और 15 मार्च से 3 मई के चरण में तो स्वतः अपने आप को चहारदीवारी में कैद कर लिया है तथा जब दो-तीन दिन के बाद दिल्ली, सूरत, मुंबई आदि से आर्थिक और भूख से परेशान लाचार लाखों मजदूर घरों की ओर भागने को विवश हुए तो देश के मध्यम वर्ग ने उनकी पीड़ा को समझने के बजाय उन्हें ही लांच्छित किया कि यह लोग देश को महामारी फैलाकर मरवाना चाहते हैं
इतना ही नहीं कुछ समय बाद मीडिया के प्रचार ने ऐसी भयावह स्थिति पैदा कर दी कि, यह मजदूर जिनमें से कुछ लोग तो सौ, हजार - बारह सौ किलोमीटर पैदल चलकर जब अपने गांव घर पहुंचे तो बजाए उनके पैर के छालों और उनकी आंख के आंसू पोंछने के चल कर आई ह ई नारी के दर्द और उसके भूखे बच्चों के बिलखने में मानवीय पीड़ा और व्यवस्था के नियोजन की कमजोरी को देखने के लोगों ने उन्हें ही गांव के बाहर रोक दिया तथा बांस की लकड़ी बांधकर सीमा बंदी कर दी। गांव के बच्चों को भी गांव में नहीं घुसने दिया। कुछ लोगों ने फोन कर पुलिस को बुलाया और उन के हवाले किया।
मेरा यह कहना नहीं है कि, उनकी जांच ना हो।
परन्तु, इतना तो गांव घर के लोग कर सकते थे कि, गांव के बाहर किसी घर सरकारी भवन आदि में उनके रुकने, खाने-पीने का इंतजाम कर देते। घर की ओर कितनी उम्मीद से वे भूखमरी से बचने के लिए भागे थे, परंतु परिवार ने ही उन्हें बहिष्कृत व त्याग कर दिया।
शिवपुरी जिले के शर्मा जी के मकान का फोटो अखबारों में छपा है, जिसमें उन्होंने मकान बिकाऊ की तख्ती लगाई है। क्योंकि दुबई से आने के बाद वे संक्रमित पाए गए थे। उनका इलाज दिल्ली में हो गया था और वे स्वस्थ हो गए थे। स्वास्थ्य प्रमाण-पत्र देकर उन्हें घर जाने दिया गया।फिर भी मोहल्ले वाले उन्हें नहीं रहना देना चाहते। ऐसी अनेकों घटनाएं हैं जो चित्रों सहित अखबारों में आ रही हैं।
यह एक ऐसे बदलते समाज का चित्र है जिसमें अमानवीयता अपने चरम पर पहुंच चुकी है।
भारतीय दर्शन- 'बसुधेव कुटुंबकम' से सिकुड़कर राजनेताओ के कुटुंबकम पर पहले ही आ चुका था और अब इस कोरोना के भय ने व्यक्ति को ही अपना पूरा संसार बना दिया है। माता-पिता, पति, पत्नी, दादा, दादी, बेटा - बच्चे सभी रिश्ते कोरोना के भय की आग में ध्वस्त हो गए हैं।
बस, मैं और मेरी जान। यही विश्व का नया दर्शन बन गया है। यह सभ्यता, धर्म, मानवता, राजनीति सभी की मौत की घंटी है। यानी कोरोना का एक प्रभाव होगा कि मानव 'अमानव' बन जाएगा।
दूसरे इस कोरोना के माध्यम से जिस प्रकार व्यक्ति परहेज शुरू हुआ है, वह अंततः दुनिया को चरम तकनीकी करण व मशीनीकरण पर ले जाएगा और जो दुनिया का नया दृश्य उभर रहा है, उसमें ऐसा संभव हो सकता है।
1. सारे विश्वविद्यालय विद्यालय बंद हो जाएंगे और मोबाइल लैपटॉप आदि के माध्यम से मशीन से शिक्षा दी जाएगी। लाखों शिक्षक बेरोजगारी के शिकार हो जाएंगे। जब छात्र इकट्ठे नहीं होंगे तो छात्र संघ और छात्र राजनीति जो कभी-कभी बदलाव का कारण बनी है या बन सकती है अपने आप समाप्त हो जाएगी।
2. कारखानों में आधुनिकतम स्व संचालित मशीनें लगेंगी। मजदूर हटा दिए जाएंगे। कृषि में मशीनीकरण का बड़ा दौर शुरू होगा तथा बीज बोना, पानी, खाद, दवा, देखभाल, कटाई तथा थ्रेसिंग खरीद केंद्रों और गोदामों तक अनाज पहुंचाना, यह सारा काम मशीन और रोबोट से होगा। देश के 30 करोड़ खेतिहर मजदूर बेरोजगार होंगे।
यू एन ओ के एक आंकलन के अनुसार इस महामारी के परिणाम स्वरूप दुनिया में 1 करोड़ लोग भूख से मर जायेगें और लगभग 12 करोड़ भविष्य में प्रभावित होगें।
3. घरों में काम करने वाले रोबोट काम करेंगे। लाखों बाइयां बेकार हो जाएंगी। सुरक्षा आदि का काम रोबोट करेगा और सुरक्षाकर्मी बेरोजगार हो जाएंगे।
4. सारा क्रय विक्रय लेनदेन ऑनलाइन मशीन से होगा। करोड़ों फुटकर व्यापारियों की दुकानें बंद हो जाएंगी। अमेजॉन, फ्लिपकार्ट जैसी महाकाय कंपनियां फोन पर मशीन पर ऑर्डर लेकर होम डिलीवरी करेंगे। माल सस्ता और साफ मिलेगा इसलिये आम उपभोक्ता भले ही इंसान जिंदा ना रहे परन्तु खरीदेगा।
शायद इस खबर को लोगों ने और खुदरा व्यापारियों ने भी नहीं पढ़ा होगा कि, अमेजन के मालिक बेजोस की संपत्ति 1 दिन में 48500 करोड़ रुपए बढ़ गई और लाकडाउन के बाद उनकी कम्पनी ने 1लाख84 हजार करोड़ रूपये का मुनाफा कमाया।क्योंकि फुटकर सामान बिक्री इतनी ज्यादा हो गई जिससे उनके शेयर के दाम दुगने के आसपास हो गए। यह संपत्ति की वृद्धि कहीं ना कहीं किसी ना किसी फुटकर व्यापारी की लाश पर ही हुई है। वह चाहे भारत का हो या किसी अन्य देश का।
इतना ही नहीं, जब सारा अमेरिका कोरोना से बेहाल है, लॉकडाउन में न्यूयॉर्क में आपातकाल है, परंतु अमेजॉन अपनी कंपनी में मार्च माह में 1लाख लोगों की भर्ती और अभी 75 हजार लोगों को और भर्ती करने की तैयारी में है, जो उनकी ऑनलाइन होम डिलीवरी सारी दुनिया में करेंगे।
यह कुछ समय पश्चात गाँव से किसानों की फसलों के खरीद में भी शुरू होगा तथा मानचित्र से बिचौलि, दलाल, अनाज व्यापारियों का स्थान ये विदेशी अमेजॉन जैसी कम्पनियां भर देंगी।
देश में हाल ही में फेसबुक, रिलाइन्स ग्रुप के जियो में करीब 9 - 90% की हिस्सेदारी खरीदकर आनलाइन व्यापार को बढ़ावा देने की ओर एक कदम बढ़ा दिया।
5. खेती के मशीनीकरण से पहले चरण में 22 करोड़ खेतिहर मजदूर बेकार होकर भुखमरी की गोद में समा जाएंगे। फिर अगले चरण में क्रमश: छोटे किसान अपनी जमीन बेचने को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष विवश होते जाएंगे तथा अंतरराष्ट्रीय जमींदारी शुरू होगी, जिसमें वे देशी या विदेशी कंपनियों खेती करेंगी जो हजारों लाखों एकड़ भूमि पर मशीन से खेती करने में समर्थ होंगी।
किसान का स्थान शायद क्रमश: बहुराष्ट्रीय कंपनियां ले लेगी।
6. पुलिस का काम 60 - 70% समाप्त हो जाएगा। सेना में भी फाइटिंग- विमान चालन जैसे काम रोबोट से होंगे और लाखों सैनिक बेरोजगार होंगे।
7. सड़कों की सफाई होए कि घरों की सफाई या सीवर की सफाई सब मशीन या रोबोट से होंगी। इंसान हट जाएगा।
8. कंपनियों का काम घरो से किया जाएगा। कहीं आने-जाने की आवश्यकता नहीं होगी। घर और मशीन से सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में काम होगा।
बिग बॉस कर्मचारियों के ऊपर 24 घण्टे निगरानी रखेगा। दफ्तर आने-जाने का यात्रा-भत्ता, दफ्तर, किराया और संचालन का करोड़ों रुपया प्रति माह का खर्च मालिको का बचेगा ।
9. लगातार घरों पर रहकर काम करने से कर्मचारी बीमार पड़ेंगे। सामाजिक-अलगाव से अवसाद में जायेंगे और बीमा कम्पनियों तथा दवा निर्माता कम्पनियो का व्यवसाय चमकेगा। हालांकि केवल सम्पन्न बीमित लोग ही इलाज करा सकेंगे। चिकित्सा का पूर्ण निजीकरण हो जाएगा तथा शराब की होमलाइन डिलीवरी से करोड़ों गरीब घरों में शराब पीते-पीते स्वर्ग सिधार जायेंगे।
10. संक्रमण के भय से चीन के समान टैक्सी उधोग लगभग बन्द हो जायेगा तथा लोग संक्रमण से बचने के नाम पर निजी कारें खरीदेंगे और लाखो-करोड़ों कारें बिक जायेगी।
11. पत्रकारिता के पहले चरण में दफ्तरों को बंद कर घर से मशीनी पत्रकारिता होगी। मशीनी-पूछताछ का दौर आएगा। घुमंतू पत्रकार खत्म हो जाएंगे। खबरें भी कॉरपोरेट्स से मिलेंगी और पत्रकारिता कारखानों का मशीनी उत्पाद बन जायेगी। हजारों पत्रकार बेरोजगार हो जाएगे। घरों से पत्रकारिता का काम शुरू हो भी गया है। अब पत्रकारो को लैपटॉप के साथ घरों में भेजा जा रहा है।
जानकारी मिली है कि कुछ बड़े अखबारों के समूह ने 10% पत्रकार कम करने का फैसला कर लिया है। कुछ को सीधे नोटिस दिए जाएंगे तो कुछ को परफॉर्मेंस के नाम पर हटाएंगे। पत्रकारिता पर कोरोना की आड़ में कॉरपोरेट्स हमला शुरू हो गया है। पत्रकार वार्ताएं भी मशीन से होंगी। पेड न्यूज के बजाय एड न्यूज का दौर शुरु होगा।
12. रेल, बस सेवाएं लगभग बन्द हो जाएंगी। सड़को के निर्माण की जरूरत नहीं होगी। लाखों रेल, बस, टेम्पो, ऑटो टेक्सी चलाने वाले बाहर हो जाएंगे। कॉरपोरेट्स का इस मशीनीकरण से सम्पत्ति का अपार भंडार बढ़ेगा। संम्पन्न लोगो के लिये विमान होंगे और गरीबों और सामान्य व्यक्तियो का राष्ट्रीय संम्पर्क टूट जायेगा। वे अधिकतम अपने जिलो या प्रदेश मे कैद हो जायेगे।
13. सरकार का जो अभी लगभग 20% प्रशासनिक व्यय होता है, उसका बड़ा हिस्सा बच जाएगा। कारखानेदार - कॉरपोरेट्स अपने बड़े हुए मुनाफे का छोटा सा हिस्सा सत्ता को देंगे और सरकारें उस राशि को जो बेरोजगार और गरीब होंगे, उनके खातों में बगैर किसी काम के सीधा पैसा डाल देंगी।
उन्हें मुफ्त राशन देगी ताकि वे निश्चिंत भाव से खाते-खाते मर सकें।
सरकार दावा करेगी कि, हम इतने महान हैं कि, एक भी व्यक्ति भूख से नहीं मरा। मान लें कि, भारत सरकार ने अपने वर्तमान 30 लाख करोड़ बजट का 20% प्रशासनिक व्यय ही बचा लिया यानी 60 हज़ार करोड़ रुपए और देश के एक करोड़ लोगों को 6 - 6 हज़ार उनके खातो मे डाल दिया तो निर्बाध भाव से सरकारे चलती रहेगीं।
14. राजनीति का वर्तमान स्वरूप नहीं रहेगा। कोई सभा, जुलूस, आंदोलन, धरना, विरोध, अनशन नहीं होंगे। केवल सेटेलाइट, ऑनलाइन प्रचार होगा। मशीन से ही वोटिंग होगी।
मशीन वोट देगी, मशीन गिनेगी और मशीन जीतेगी। किसी आम आदमी के या मध्यम वर्गीय के लिए राजनीति असंभव और अदृश्य घटना बन जाएगी।
15. मंदिर - मस्जिद - गुरुद्वारे - गिरजाघर की कोई आवश्यकता नहीं होगी। ऑनलाइन पूजा-पाठ, शादी-विवाह, तेरहवीं, शव-यात्रा सब हो जाएगा। विद्युत शव दाह ग्रह में निगम की गाडियां ले जाकर अंत्येष्टि कर देंगी। अस्थि विसर्जन भी ऑनलाइन हो जायेगा। पंडितों, मौलवियों व फादर का काम मशीन करेगी।
16. मशीन की इस सभ्यता में जहां इंसान ही गैर जरूरी हो जाएगा वहां आरक्षण अपने आप अप्रासंगिक हो जाएगा। मार्क्सवाद जो कहता है कि दुनिया में दो ही जातियां हैं- गरीब और अमीर और यही बात तो भारत का जातिवाद कट्टरपंथी भी कहता है- केवल अमीर - गरीब, दोनों के समान सिद्धांत चरितार्थ हो जाएंगे।
17. घरों पर ज्यादा रहने से परिवारो मे विवाद बढ़ेंगे और कई परिवार टूटेंगे।
18. पूंजीवाद व कॉर्पोरेट्जम का सिद्धांत है कि क्रम से सबसे नीचे की आबादी को समाप्त करते चलो। उनका कहना है कि, बड़ी मछली छोटी मछली को निगलती है। यह प्राकृतिक है।
इसी प्रकार आदमी को मशीन व मशीन को फिर बड़ी मशीन निगलेगी और इस क्रम मे घटते-घटते केवल महाकाय स्वचालित कारखाने बचेंगे।
दुनिया मे जनसंख्या घट जायेगी और अभी जो लगभग 8 अरब की आबादी है वह इस छिपे नरसंहार जिसे पूंजीवाद की भाषा में "प्रोसेस ऑफ एलिमिनेशन" कहा जाता है, से दुनिया की आबादी घटना शुरू हो जाएगी। और क्रम से 8 अरब की दुनिया घटकर शायद 1 अरब तक भी पहुंच जाये।
19. जब आदमी ही नहीं रहेगा तो न प्रदूषण का संकट होगा ना पर्यावरण का। दुनिया में कुछ एक मशीनीकरण के टापू होंगे, बकाया सब प्राकृतिक दुनिया होगी।
मैं, आपको भयभीत करने के लिए यह चित्र नहीं खींच रहा हूं बल्कि कोरोना की महामारी और इसके पीछे के छुपे वैश्विक पूंजीवाद के षड़यंत्र और संभावनाओं का तथ्यात्मक चित्र रख रहा हूं। दुनिया को मिटाने को ना प्रलय जरूरी होगा ना किसी और शक्ति की जरूरत होगी। क्योंकि यह सब तो तब होते जब इंसान होते। जब इंसान ही नहीं रहेगा तब की दुनिया शायद ऐसी होगी।
इंसान से इंसान के समापन की यह कहानी दुनिया के किसी भी विश्व युद्ध से ज्यादा खतरनाक होगी।
(रघुठाकुर)
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