सामाजिक समरसता के अग्रदूत थे सम्राट अशोक
विशेष में प्रस्तुत है, नैनी, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) के स्तम्भकार एवं चिंतक - डॉ शंकर सुवन सिंह द्वारा आज की विशेष प्रस्तुति-
"सामाजिक समरसता के अग्रदूत थे सम्राट अशोक"
सम्राट अशोक को "चक्रवर्ती सम्राट" कहा जाता है। सम्राट का अर्थ है सम्राटों का सम्राट। यह उपाधि, भारत में सिर्फ सम्राट अशोक को ही मिली है। सम्राट अशोक भारतीय इतिहास का एक ऐसा चरित्र है, जिसकी तुलना विश्व में किसी से नहीं की जा सकती। सम्राट अशोक भारतीय मौर्य साम्राज्य के शासक थे। सम्राट अशोक ने भारतीय उप-महाद्वीप पर शासन किया था। सम्राट अशोक का जन्म 304 ई.पू. पाटलिपुत्र में हुआ था। सम्राट अशोक के पिता राजा बिंदुसार, माता शुभाद्रंगी और दादा चन्द्रगुप्त मौर्य थे। सम्राट अशोक के गुरु आचार्य चाणक्य थे। अशोक को कुशल सम्राट बनाने में आचार्य चाणक्य का बहुत बड़ा योगदान था। अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य था। देवानांप्रिय से तात्पर्य है, देवताओं का प्रिय- ब्राह्मी लिपि में वर्णित रुम्मिनदेई के स्तम्भलेख से देवानांप्रिय का जिक्र मिलता है।
रुम्मिनदेई स्तम्भ लेख में स्पष्ट लिखा है कि देवताओं के प्रिय, प्रियदर्शी राजा ने अपने राज्याभिषेक के 20 वर्ष बाद स्वयं आ कर इस स्थान की पूजा की। रुम्मिनदेई नामक ग्राम ही लुम्बनी ग्राम है, जो गौतमबुद्ध के जन्म (563 ईसा पूर्व) स्थान के रूप में प्रसिद्ध है। लुम्बनी नेपाल में स्थित है। गौतम बुद्ध ही बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। गौतम बुद्ध हिन्दू धर्म में क्षत्रिय कुल के थे। भगवान गौतम बुद्ध जन्म आधारित जाति व्यवस्था के विरुद्ध थे। वे कर्म आधारित व्यवस्था को मानते थे। इस सम्बन्ध में इन्होने वसल सुत्त (वृषल सूत्र) में कहा । न जच्चा वसलो होति ब्राह्मणो।कम्मना वसलो होति कम्मना होति ब्राह्मणो। जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता। कर्म से ही चांडाल और कर्म से ही ब्राह्मण होता है।
बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार आगे चलकर सम्राट अशोक ने अशोक 'धम्म निति' के तहत किया। सम्राट अशोक को मौर्य साम्राज्य का तीसरा शासक माना जाता है। सम्राट अशोक को कुशल प्रशासन और बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भी जाना जाता है। सम्राट अशोक प्रेम, सहिष्णुता, सत्य, अहिंसा एवं शाकाहारी जीवन प्रणाली के सच्चे समर्थक थे। मौर्य क्षत्रिय थे इसका प्रमाण बौद्ध धर्म के चार ग्रन्थ महापारिनिब्बासुत्त, दिव्यावदान, महावंश और महाबोधि वंश में मिलता है। महापारिनिब्बासुत्त ग्रन्थ में उल्लेख है की पिप्पल वन के आस-पास मौर्य क्षत्रिय बसा करती थी। तीसरी सदी में रचा गया ग्रन्थ दिव्यावदान में बिन्दुसार मौर्य और अशोक मौर्य को क्षत्रिय कहा गया।
दिव्यावदान के कुछ संस्कृत वाक्य का अवलोकन करते हैं। दिव्यावदान में बिन्दुसार मौर्य एक राजकुमारी से कहता है - "त्वम् नापिनी अहम राजा क्षत्रियो मूर्धाभिषिक्तः। कथं मया सार्ध समागमों भविष्यतः?- हिंदी में इसका अर्थ है- तुम नापिक कन्या हो, मैं क्षत्रिय हूँ। हमारा समागमन कैसे संभव है?-
महावंश ग्रथ जिसकी रचना 5 वीं शताब्दी में हुई थी, इसमें भी मौर्य को क्षत्रिय कहा गया है - महाबोधिवंश ग्रथ भी मौर्यों को क्षत्रिय होने का प्रमाण देता है। कहने का तात्पर्य सम्राट अशोक शाक्यवंशी क्षत्रिय थे, जो महात्मा गौतम बुद्ध हुआ करते थे। एक मात्र ग्रन्थ है जिसमे मौर्यों को शूद्र कहा गया। वो है मौर्य वंश के 1000 वर्ष बाद, विशाखादत्त द्वारा रचित नाटक - "मुद्राराक्षस"।
मुद्रा राक्षस में आचार्य चाणक्य अपने शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य से बार बार उन्हें वृषल कह कर के धिक्कारते हैं। वृषल का अर्थ होता है धर्म-भ्रष्ट अर्थात जो अपने धर्म को नहीं निभा सकता।
चन्द्रगुप्त मौर्य को वृषल इसलिए कहा गया क्योंकि उसने हिन्दू धर्म छोड़कर जैन धर्म अपना लिया था । कहने का तात्पर्य सिर्फ जैन धर्म अपना लेने से मौर्य शूद्र तो नहीं हो सकते। अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म को अपना लिया था। इसके बाद उसने धम्म के प्रचार में अपना ध्यान लगाया। यहां धम्म का मतलब कोई धर्म या मज़हब या रिलीज़न न होकर "नैतिक सिद्धांत" था। अतः वे नैतिक सिद्धांत उस समय बाहर के किसी धर्म का विरोध करना नहीं होकर मनुष्य को एक नैतिक नियम प्रदान करना था।
अपने दूसरे शिलालेख में उसने लिखा है। "धम्म क्या है? अल्प दुष्कर्म तथा अधिक सत्कर्म। रोष, निर्दयता, क्रोध, घमंड तथा ईर्ष्या जैसी बुराईयों से बचना तथा दया, उदारता, सच्चाई, संयम, सरलता, हृदय की पवित्रता, नैतिकता में आसक्ति और आंतरिक तथा बाह्य पवित्रता आदि सदाचारों का पालन।
सम्राट अशोक ने अपने शासन काल में सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से राष्ट्र को विकास की राह दिखाया था। ग्रांड ट्रक रोड का अस्तित्व मौर्य काल में आया था। मौर्य काल में "ग्रांड ट्रंक रोड", "उत्तरपथ" के नाम से जानी जाती थी। अर्थात मौर्य काल में ही ग्रांड ट्रक रोड का निर्माण हुआ था।
16 वीं सदी में ग्रांड ट्रंक रोड के इस मार्ग का ज्यादातर भाग शेरशाह सूरी द्वारा नए सिरे से निर्मित किया गया। उस समय भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी एवं पश्चिमी भागों को जोड़ने वाली इस सड़क का नाम "शाह राह-ए-आजम", "सड़क-ए-आजम" और बादशाही सड़क के नामो से जाना जाने लगा । "सड़क-ए-आजम" का अर्थ है प्रधान सड़क- 17 वीं सदी में इस मार्ग का नाम ब्रिटिशों ने ग्रांड ट्रंक रोड कर दिया था। अशोक के अभिलेख यह बताते हैं कि, सम्राट अशोक ने भारत के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई।
अशोक के लगभग 40 अभिलेख प्राप्त हुए अशोक को अभिलेखों की प्रेरणा ईरान के शासक डेरियस से मिली थी। अशोक के शिलालेखो की खोज 1750 ई. में टी फैनथेलर ने की थी। अशोक के 14 शिलालेख हैं।
प्रत्येक शिलालेख भारतीय उपमहाद्वीप के विकास को बयां करते हैं। अभिलेखों की तीन श्रेणियां थी। शिलालेख, स्तम्भ-लेख और गुहा-लेख (गुफाओं पर वर्णित लेख)। ये सभी लेख ब्राह्मी खरोष्ठी और अर्मायिक, ग्रीक लिपियों में लिखे गए थे। ब्राह्मी लिपि को सर्वप्रथम अलेक्जेंडर कनिंघम के सहकर्मी जेम्स प्रिन्सेप ने 1837 ई. में पढ़ा था।
शिलालेख -1: पहले शिलालेख को गिरिनार शिला लेख भी कहा जाता है। इसमें पशुबलि की निंदा की गई है और उसे निषेध किया गया है।
शिलालेख - 2: मनुष्यों और पशुओं के लिए चिकित्सालय खुलवाना और उनमें औषधि की व्यवस्था करना। मनुष्यों एवँ पशुओं के के कल्याण के लिए मार्गों पर छायादार वृक्ष लगवाने तथा पानी की व्यवस्था के लिए कुँए खुदवाये।
शिलालेख- 3: राजकीय पदाधिकारियों को आदेश दिए गए हैं कि, प्रति पाँच वर्षों के बाद धर्म प्रचार के लिए दौरे पर जाए।
शिलालेख- 4: राजकीय पदाधिकारियों को आदेश दिए गए हैं कि व्यवहार के सनातन नियमों यथा- नैतिकता एवं दया का सर्वत्र प्रचार प्रसार किया जाए।
शिलालेख- 5: इसमें धर्ममहामात्रों की नियुक्ति तथा धर्म और नैतिकता के प्रचार प्रसार के आदेश का वर्णन है।
शिलालेख- 6: राजकीय पदाधिकारियों को स्पष्ट आदेश देता है कि सर्वलोकहित से सम्बंधित कुछ भी प्रशासनिक सुझाव मुझे किसी भी समय या स्थान पर दें।
शिलालेख-7: सभी जाति, सम्प्रदाय के व्यक्ति सब स्थानों पर रह सकें क्योंकि वे सभी आत्म। संयम एवं ह्रदय की पवित्रता चाहते हैं।
शिलालेख- 8: राज्यभिषेक के दसवें वर्ष अशोक ने सम्बोधि (बोधगया) की यात्रा कर धर्म यात्राओं का प्रारम्भ किया। ब्राम्हणों एवं श्रमण के प्रति उचित वर्ताव करने का उपदेश दिया गया है।
शिलालेख- 9: दास तथा सेवकों के प्रति शिष्टाचार का अनुपालन करें, जानवरों के प्रति उदारता, ब्राह्मण एवं श्रमण के प्रति उचित वर्ताव करने का आदेश दिया गया है।
शिलालेख- 10: घोषणा की जाए की यश और कीर्ति के लिए नैतिकता होनी चाहिए।
शिलालेख-11: धम्म की व्याख्या- धर्म के वरदान को सर्वोत्तम बताया।
शिलालेख- 12: स्त्री महामत्रों की नियुक्ति व सभी प्रकार के विचारो के सम्मान की बात कही। धार्मिक सहिष्णुता की निति
शिलालेख- 13: इसमें शासन के 8वें वर्ष (261 ई.पू.) कलिंग विजय, कलिंग युद्ध, अशोक का हृदय परिवर्तन, पड़ोसी राजाओं का वर्णन मिलता है, इसमें मौर्य साम्राज्य के पश्चिम के पड़ोसी राजाओं का उल्लेख है, जिनके साथ अशोक के राजनैतिक संबंध थे, वे निम्नलिखित हैं:
एण्टिओकस-ii (सीरीया), टॉलेमी फिलाडेल्फस - ii (मिश्र), मगस (सीरिन), एलेक्जेण्डर (एपिरास), एण्टीगोनस, गोनाट्स (मकदूनिया), अशोक का साम्राज्य विस्तार।
शिलालेख- 14: धार्मिक जीवन जीने की प्रेरणा दी। धर्म प्रचानार्थ अशोक अपने विशाल साम्राज्य के विभिन्न स्थानों पर शिलाओं के उपर धम्म लिपिबद्ध कराया जिसमें धर्म प्रशासन संबंधी महत्वपूर्ण सूचनाओं का विवरण है।
सम्राट अशोक ने न्याय आधारित एवं पिता तुल्य भाव वाले शासन को जन्म दिया। सम्राट अशोक सामाजिक न्याय के प्रेरणास्रोत थे। अतएव सम्राट अशोक को सामाजिक समरसता का अग्रदूत कहा जा सकता है। धौली के शिलालेख में सम्राट अशोक महान ने कहा है कि- सबे मुनीसे पजा ममा अर्थात सभी मानव मेरी संतान है। इससे पता चलता है कि, सम्राट अशोक मानवता के जनक थे। सम्राट अशोक के समय उनका राज्य सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था। इनके जमाने का प्रतीक अशोक चिह्न आज भारत का राष्ट्रीय चिन्ह है। इसको सारनाथ में मिली अशोक लाट से लिया गया है, मूल रूप इसमें चार शेर हैं जो चारों दिशाओं की ओर मुंह किए खड़े हैं। इसके नीचे एक गोल आधार है, जिस पर एक हाथी, एक दौड़ता घोड़ा, एक सांड़ और एक सिंह बने हैं। ये गोलाकार आधार खिले हुए उल्टे लटके कमल के रूप में है। हर पशु के बीच में एक धर्म चक्र बना हुआ है। राष्ट्र के प्रतीक के रूप में जिसे 26 जनवरी 1950 में भारत सरकार द्वारा अपनाया गया था। इस प्रतीक में केवल तीन सिंह दिखाई देते हैं और चौथा छिपा हुआ है, जो दिखाई नहीं देता है। चक्र केंद्र में दिखाई देता है, सांड दाहिनी ओर और घोड़ा बायीं ओर और अन्य चक्र की बाहरी रेखा बिल्कुल दाहिने और बाई छोर पर है। प्रतीक के नीचे सत्यमेव जयते देवनागरी लिपि में अंकित है। सत्य मेव जयते मुंडकोपनिषद से लिया गया हैं। जिसका अर्थ है केवल सच्चाई की विजय होती है। सम्राट अशोक की मृत्यु 232 ई.पू. में हुई थी।
सम्राट अशोक ने निम्न महत्वपूर्ण तथ्य कहे थे, जो इस प्रकार हैं:
1. सबसे महान जीत प्रेम में होती है, ये हमेशा के लिए दिल जीत लेती है।
2. सफल राजा वही होता है, जिसे पता होता है कि, जनता को किस चीज की जरुरत है।
3. एक राजा से ही उसकी प्रजा की पहचान होती है।
4. तीन कार्य जो हमेशा हमें स्वर्ग की ओर ले जाते हैं- "माता - पिता का सम्मान, सभी जीवों पर दया और सत्य वचन।
सम्राट अशोक के किये गए कार्यों से प्रेरणा लेकर राष्ट्र को समृद्ध बनाया जा सकता है।
swatantrabharatnews.com