विशेष: करोना समस्याः व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता: रघु ठाकुर
आज "विशेष" में कोरोना वायरस महामारी की समस्या को लेकर ख्यातिनाम गांधीवादी, महान समाजवादी चिंतक व विचारक तथा शहीद ए आजम भगत सिंह एवं डॉ लोहिया के सैद्धांतिक लक्ष्य, जो एक ऐसे समतामूलक समाज की स्थापना, जिसमें कोई व्यक्ति किसी का शोषण न कर सके और किसी प्रकार का अप्राकृतिक अथवा अमानवीय विभेद न हो, को पूर्ण करने हेतु समर्पित लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक व राष्ट्रीय संरक्षक. रघु ठाकुर ने "कोरोना वायरस महामारी की समस्या पर एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता" शीर्षक से अपने लेख में प्रस्तुत किया है कि,
कोरोना के बचाव के लिए लॉकडाउन के साथ सोशल मीडिया और मीडिया पर बहुत चर्चा हो रही है। दुनिया मे कोरोना कहां से आया?- कुछ प्रबुद्ध जनों, यहां तक कि कुछ मुनि, महाराजाओं ने भी चीन को, चीन में गैस उत्सर्जन और खानपान को जिम्मेदार ठहराया है। मैं नहीं जानता हूं कि इनके इस -शो98ध का स्त्रोत क्या है? गैस उत्सर्जन से पर्यावरणीय समस्याएं आ सकती है, अस्थमा हो सकती हैं, परंतु वायरस का जन्म कैसे हो सकता है। बल्कि सामान्य तरीके से देखा जाय तो उत्सर्जित गैसों से कारखानों की गैसों से वायुमंडल के वायरस मर सकते हैं। हां यह माना जा सकता है कि, इस बार चीन में सबसे पहले कोविड-19 का प्रभाव -2019 से हुआ। यह सूचना तो मीडिया में पहले ही आ चुकी थी और स्वतः चीन ने दिसम्बर 19 में यह सूचना दी थी।
वुहान शहर चीन की कुल 1.5 अरब आबादी का एक छोटा सा हिस्सा है। परंतु जानकारी मिलने के बाद चीन ने समर्थ कदम उठाएं - वुहान से 700- 800 किलोमीटर दूर बींजिग में संक्रमण नहीं फैल सका। यद्यपि भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर कुछ लोग, शोध, मीडिया और कानोकान यह भी प्रचार कर रहे हैं कि, चीन के वुहान में मरने वालों की संख्या 3 लाख के आसपास रही है, जो वास्तव में चीन द्वारा छिपाई जा रही। मैं चीनी व्यवस्था का पक्षधर नहीं हूं, ना ही मेरा वहां की विचारधारा से कोई लेना-देना है, बल्कि मैं उसके व साम्यवाद के विचार से भिन्न विचार रखता हूं। परंतु यह बात समझ के परे है कि लाखों लोगों की मौत को चीन कैसे छुपा सकता है। दुनिया का जो मीडिया अमेरिका,इटली, स्पेन, ईरान, इंग्लैंड और अन्य देशों की सूचनाएं दे रहा है, उसी मीडिया ने चीन की भी सूचना दी है। आज दुनिया में सूचना तंत्र की पैठ इतनी गहरी है कि, अगर कोई देश तथ्यों को छुपाना भी चाहे तो भी मुश्किल है। चीन में भी बहुत सारे दुनिया के पत्रकार हैं।
परंतु दुनिया में और कोई देश या ऐसी अफवाहों पर शायद ही इस प्रकार विष्वास करता हो, जिस प्रकार हमारे देश में होता है।
सोशल मीडिया पर तो एक खबर यह भी आई कि 25 मार्च से कर्फू लगने के बाद दिल्ली में चीनी सामान का आयात 15000 करोड़ रुपये का कम हो गया। इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश या विदेश में विमानों व चीन के विमान आने पर रोक है, अतः चीन व अन्य देशों से विशेष चीजों को छोड़ कर सामान्य उपभोक्ता सामान का आयात लगभग बंद है। परंतु व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर साहिबान ने 15000 करोड़ रूपया का आंकड़ा भी निकाल दिया। हाॅंलांकि मैं इस राय का हूँ कि भारत को चीन व अन्य देशों से भी केवल तकनीक या सुरक्षा उपकरण छोड़कर बकाया सब आयात पर रोक लगा देना चाहिए। एक चर्चा यह भी चलाई जा रही है कि चीन के लोग सांप, चमगादड,़ बिच्छू, कुत्ता बिल्ली खाते हैं या मांसाहार करते हैं, इसलिए उनके यहां कोरोना वायरस आया है। अगर मांसाहार से कोरोना वायरस का कोई संबंध होता तो न केवल चीन में बल्कि अरब और पूरे यूरोप में इसे हजारों साल पहले आ जाना चाहिए था। भारत के आदिवासी इलाकों में भी तथा समुद्र के तटवर्ती इलाकों व अफ्रीका में भी जहां मांसाहार करना स्थाई परिस्थितियों की वजह से प्रचलित रहा है वहां पहले ही आ जाना चाहिए था। नागालैंड में भी और कुछ पहाड़ी इलाकों में भी वहां के आदिवासी कुत्ते इत्यादि का मांस खाते हैं, परंतु वहां कोरोना नहीं है।
भाजपा के एक केंद्रीय मंत्री श्री किरण रिजजू ने तो सार्वजनिक बयान दिया था कि मैं गाय का मांस खाता हॅूं और खाता रहूंगा। परंतु वहां कोरोना वायरस नही जन्मा। आज भी इन क्षेत्रों में सबसे कम प्रभाव संक्रमण का है। अगर कुछ हुआ है तो उसे भेजने वाले बाहरी लोग हैं।व्यक्तिगत तौर पर और तार्किक आधार पर मै शाकाहार समर्थक हूँ, परंतु शाकाहार और मांसाहार को किसी के पक्ष या विपक्ष में हथियार बनाने का पक्षधर नहीं हूं। निसन्देह कोरोना वायरस की शुरूआत चीन के वुहान से हुई । इसकी सूचना भी स्वतः चीन ने दिसंबर माह में ही दुनिया को दी थी। उसके बाद ही दिसंबर में डब्ल्यू।एच।ओ ने दुनिया के सभी देशों को सावधान करते हुए एडवाइजरी जारी की थी। अब अगर अमेरिका या यूरोप के राष्ट्राध्यक्षों ने या भारत जैसे देशों ने इसे उसी समय गंभीरता से नहीं लिया तो दोष किसका है। एक यह भी तर्क दिया जा रहा है जिसे दुनिया में और देश के प्रधानमंत्री जी ने भी दिया है कि जो दुनिया के संपन्न तथा स्वास्थ्य सेवाओं में अग्रणी देश हैं यथा अमेरिका आदि उन के यहाँ भारत से भी ज्यादा कोरोना वायरस फैला है। यह सही है और इसके पीछे संपन्नता या चिकित्सा सुविधाओं की विफलता का तर्क नहीं काम करता। बल्कि चिकित्सा और संपन्नता की विपुलता ने इन दुनिया के ताकतवर और संपन्न देशों को समस्याओं को गहराई से समझने नहीं दिया। आपके पास परमाणु बम हो सकता है, अत्यधिक प्रति व्यक्ति आय हो सकती है, तकनीक हो सकती है, साधन हो सकते हैं, कैंसर हृदय रोग आदि प्रचलित बीमारियों के इलाज के लिए बेहतर उपकरण हो सकते है परंतु इनसे कोरोना वायरस का इलाज नहीं हो सकता। अगर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने सत्ता और ताकत के मद में वायरस का मजाक उड़ाया तो यह उनका व्यक्ति दोष था। 6 अप्रैल के भास्कर अखबार ने अमेरिका के एक अस्पताल के डायरेक्टर डॉ प्राइस का बयान छापा है कि, "हमारे पास कोरोना से बचने के लिए पर्याप्त मास्क, किट, पीपीई नहीं है। हम जुगाड़ से काम चला रहे हैं। सादा सूट पहनकर मरीजों के पास जाते हैं और एक ही मास्क पूरा दिन पहनते हैं।"
अब यह भी वे वस्तुएं हैं, जो आमतौर पर अस्पतालों में पहले बहुत जरूरत की नहीं समझी जाती थीं और सदियों से उनकी विशेष आवश्यकता भी नहीं पड़ती थी। अब एक आकस्मिक आवश्यकता पैदा हो गई है। इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च ने 5 अप्रैल को स्पष्ट कहा कि, कोविड-19 हवा में नहीं फैलता है।
मेल-जोल से संक्रमण के फैलने का अधिक खतरा होता है। और सोशल डिस्टेंसिंग ही इसे रोकने का समूची दुनिया में एक बड़ा माध्यम माना गया है। क्योंकि दुनिया को इसके बारे में अभी भी विशेष जानकारियां मिल रही है। अभी तक इसकी पूर्ण रोकथाम के लिए कोई वैक्सीन या इलाज के लिए कोई दवा नहीं बनी है। तथा दुनिया में अब इसदिशा में काम -सुरू हुआ है। निसंदेह इस राष्ट्रिय महामारी के समय हम अपने घरों में खुद को बंद रखकर अपने समाज की मदद कर सकते हैं। यह सोचा और किया जाना चाहिए तथा सारे देश को इसका स्वेच्छिक पालन भी करना चाहिए।
साथ ही निम्न बातों का ध्यान भी रखा जाना चाहिएः-
1. सबसे पहले तो हमे अफवाहो को फैलने व फैलानेे से बचना चाहिए। मनगढंत दवाओं और उपचारों से बचना चाहिए।
2. बीमारी को छुपाने के बजाय सामने आना चाहिए। आइसोलेशन, क्वारेंटाइन अंग्रेजी के -शब्द हैं जो लोगों को नये होने की वजह से कुछ भयभीत भी करते हैं। वरना लॉकआउट/ कर्फू के बाद से समूचा देश ही आइसोलेशन या क्वांरेंटाइन में है।
3. यथासंभव आसपास के लोगों की मदद करना चाहिए। कोई भी पडोसी या जानकार भूखा न सोये, इसकी चिंता करना चाहिए और किसी की मदद करने के बाद उसके फोटो सोशल मीडिया पर डालने या अखबारों में छपवाकर अपना प्रचार करना व पीड़ित को अपमानित करने से बचना चाहिए। कोई दूसरा आपकी तारीफ करें यह तो समझ में आ सकता है, परंतु हम खुद ही अपना प्रचार करें यह ना धार्मिक हैं और न ही मानवता।
इन दिनों कुछ लोग कोरोना की चर्चा को पवित्र गाय बना रहे हैं। आप केवल सरकार की तारीफ के कसीदे पढ़ें, उनके हर काम का समर्थन करें, परंतु कोई सवाल उठाने की जुर्रत ना करें। सवाल उठाना ही राष्ट्र-विरोधी मानने का एक नया प्रयास चल रहा है।
सरकार की हां में हां मिलाना ही राष्ट्रवाद है, यह नया भाव जगाया जा रहा है। यह परिस्थिति 1942 में महात्मा गांधी के सामने भी आई थी। मित्र राष्ट्रों के समर्थक और नाजीवाद के विरोध के नाम पर गांधी जी को आंदोलन न करने की सलाह दुनिया व देश के लोग दे रहे थे। मेरी राय में हमें सरकार के प्रयासों का पूरा समर्थन करना चाहिए। उनमें भागीदार बनना चाहिए, परन्तु जहां कमियां हैं, वहां अंकित करने में पीछे नहीं रहना चाहिए। एक तरफ प्रधानमंत्री जी बार-बार सामाजिक दूरी की अपील कर रहे हैं और वहीं दूसरी तरफ उनके उत्साही समर्थक 5 अप्रैल की रात को सड़कों पर जमा होकर पटाखा फोड़ते हैं तथा गोली चलते हैं और प्रधानमंत्री जी की अपील को नकार देते हैं । मैं नहीं कहता हूं कि यह उनसे प्रधानमंत्री ने कहा है, परन्तु जब सारे देश के टीवी चैनल्स मीडिया में फोटो सहित इस लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की अपील के समाचार आ रहे हों तो सार्वजनिक रूप से उन्हें नकार कर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का मजाक बनाना कैसे उचित है। इतनी अपेक्षा मैं उनसे जरूर करता हूँ कि, सूरत में जमा हजारों लोगों के और भोपाल में पैकेट वितरण के समय भीड़ के, दिल्ली में कई इलाकों में पटाखे चलाती भीड़ के, चित्र जो उन्होंने देखे ही होंगे, कृपया अपने उन उत्साही समर्थकों को कानून न तोड़ने की सलाह और शासन-तंत्र को निष्पक्षता से कार्यवाही के निर्देश दें।
सोशल मीडिया पर कुछ मित्रों ने यह लिखा है कि प्रधानमंत्री ही देश है। मैं इस राय से सहमत नहीं हूँ। मतदाताओं के बहुमत से निर्वाचित प्रधानमंत्री देश का -उपासक या प्रशासन का मुखिया तो होता है पर देश नहीं हो सकता। उन्हें याद दिलाना चाहूंगा कि, 1975 के आरंभ में स्वर्गीय देवकांत बरुआ ने "इंदिरा इज इंडिया" का नारा लगाया था और इस पर से लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने उन्हें दरबारी विदूषक कहा था।
मैं उम्मीद करता हूं कि प्रधानमंत्री जी अपने अगले संबोधन में या मन की बात में इन दोनों कमियों पर जरूर कहेंगे और अपनी असहमति भी दर्ज कराएंगे। कोरोना वायरस सुरू, हुआ यह एक पक्ष है, परंतु इसको फैलने न देना- यह दूसरा पक्ष है, जो हमारी और सरकार सबकी राष्ट्रीय जवाबदारी है। हम केवल दूसरों को दोष देकर अपने दायित्वों से मुक्त नहीं हो सकते। हमें अपने दायित्वों को समझना होगा।
कितना अच्छा होता कि, अगर 5 अप्रैल को रात्रि 9ः00 बजे 9 मिनट दिया जलाकर राष्ट्रीय संकल्प की अपील जब प्रधानमंत्री जी ने की थी तभी उसके साथ ही बाजार के नियंत्रक अपने समर्थकों से भी अपील कर देते कि कम से कम दीयों का तेल निर्धारित दरों पर बेचो, जो अभी दुकान बंदी की वजह से डेढ़ सो रूपये प्रतिकिलो की दर पर ब्लैक में बिक रहा है। अगर वह यह करते और अगर उनके समर्थक उनकी अपील को मानते तो हो सकता है कि जो दिए -शहरों कस्बों में, बाजारों में व मध्यमवर्ग के घरों में जले उनके साथ साथ करोड़ों करोड़ आदिवासी व गरीब जो घरों में बंद हैं तथा गरीबी के कारण लाचार भी हैं इस राष्ट्रीय संकल्प के सहभागी बनते।
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