विशेष: कोरोना वायरस महामारी: आक्रोश: रघु ठाकुर
●क्या रघु ठाकुर द्वारा उठाए ज्वलंत प्रश्नों का प्रधानमंत्री उत्तर देंगे या गलती सुधारेंगे: एस. एन. श्रीवास्तव, संपादक●
भोपाल: कोरोना वाइरस महामारी पर प्रधानमंत्री- मोदी तथा उनके सरकार द्वारा उठाये गये कदमों और उससे उत्पन्न विषम परिस्थितियों पर आज हमारे संवाददाता के साथ ख्यातिनाम गाँधीवादी- समाजवादी चिन्तक व विचारक तथा शहीद-ए-आजम भगत सिंह व डाॅ. लोहिया के समतामूलक समाज संरचना हेतु समर्पित- रघु ठाकुर, संस्थापक व राष्ट्रीय संरक्षक- लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी से हुई एक परिचर्चा में रघु ठाकुर ने कहा कि, 19 मार्च को प्रधानमंत्री जी के कोरोना वायरस से बचाव के लिए 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के आह्वान के बाद देश में कोरोना की चर्चा गंभीरता से बढी है और साथ ही नए प्रश्न भी सामने आए हालांकि, आज के दौर में सत्ताधीशों से प्रश्न पूछना राष्ट्रद्रोह और मानसिक प्रताड़ना का अपराध बन गया है।
रघु ठाकुर ने काफी आहत भाव से बताया कि, विशेषतः "फेसबुकिये बाहुबलियों" की एक गैंग है, जो चाहती है कि सरकार से कोई सवाल न पूछे जाएं और उनकी चर्चा करते ही हिंदू-बिरोधी, राष्ट्र विरोधी, आदि-आदि हथियारों के साथ हमले शुरू हो जाते हैं।
रघु ठाकुर ने कहा कि, "मेरी 20 मार्च की एक फेसबुक की पोस्ट जिसमें मैंने प्रधानमंत्री को जनता कर्फ्यू की घोषणा उसके इतिहास और तरीके तथा उसके संभावित परिणामों और सरकारों के दायित्वों पर पर्याप्त विचार नहीं किए जाने का उल्लेख किया था। फेसबुकिये-बाहुबलियो-पहलवानों ने मुझ पर जो अपशब्द-बाण शुरू किए, अगर उनको लिखा जाए तो कईयो पेज भर सकते हैं। मुझे इटली भेजने, कोरोना से मरने, सोनिया गांधी की गैंग में शामिल होने आदि राष्ट्र-विरोधी, धर्म-विरोधी, मोदी-विरोधी जैसी उपाधियों से विभूषित कर दिया गया। बरहाल मैं अपने लोकतांत्रिक मानस के चलते लगभग 72 घंटे फेसबुक बाहुवलियो से जूझता रहा।"
रघु ठाकुर ने कहा कि, "मैं जानता हूं कि जब तर्क समाप्त हो जाते हैं तो गालियां शुरू होती हैं। यह फेसबुकिये गिरोह तर्क नहीं करते, यह तो केवल गाली - आतंकवाद फैलाना चाहते हैं। कुछ लोगों ने घबड़ाकर या योजना के तहत मुझे सोशल मीडिया पर नहीं लिखने का सुझाव दिया और अप्रत्यक्ष रूप से सोशल मीडिया के संवाद माध्यम को छोड़कर उन्हें खुला मंच देने की योजना बनाई।"
रघु ठाकुर ने बताया कि, "20 तारीख को मैंने दिल्ली के बाजार में बिक रहे 250 रुपए से 850 रुपये तक के मास्क और सैनेटाइजर के दाम-बृध्दि का समाचार लिखा था। उसके कुछ प्रमाण-चित्र डाले थे।
प्रधानमंत्री जी से उनके दायित्वों के बारे में पूछा था कि, क्या उन्हें अपने संबोधन में या कार्य सूची में उन जरूरी उपकरणों को उचित दामों पर नहीं बिकवाना चाहिए?-
कितना अच्छा होता कि 19 तारीख को जनता कर्फ्यू की अपील करते समय प्रशासन और व्यापारियों से यह भी अपील करते कि कालाबाजारी नहीं होने देंगे या अच्छा होता कि सरकार की ओर से छात्रों मजदूरों को 5 करोड मास्क सरकार की ओर से निशुल्क बंटवाने की घोषणा करते।"
रघु ठाकुर ने बताया कि, मैंने यह भी सवाल पूछा था कि,
1. क्या प्रधानमन्त्री जी के द्वारा "जनता कर्फ्यू" के अलावा कोई और शब्द उचित नहीं होता।
2. "जनता कर्फ्यू" शब्द का प्रयोग 1973 में गुजरात के छात्र आंदोलन में, फिर 1974 के जे.पी.आंदोलन में हुआ था, जिसके हम लोग हिस्सेदार रहे हैं। अगर जनता को ही जनता को रोकना था तो फिर सरकार ने 21 तारीख को 4000 रेलगाड़ियां रद्द क्यों की ?-
3. सभी व्यापारियों और जनता को 22 को बंद रखने के लिए पुलिस प्रशासन का इस्तेमाल क्यों किया?-
4. उन्होंने सफाई के साथ सीधे कर्फ्यू लगाने की घोषणा क्यों नहीं की?- परंतु प्रधानमंत्री जी एक कुशल इवेंट मैनेजर हैं।
5. उन्होंने यह भी अपील की कि, शाम को 5:00 बजे अपने घरों के सामने तालियां-थालियां बजाकर उन कर्मचारियों का अभिनन्दन करें जो कर्फ्यू के दौरान काम करते रहे।
परंतु क्या यह उचित नहीं होता कि, वे उनके अघोषित आदेश को क्रियान्वित करने वाले कर्मचारियों को व उनके काम को पुरस्कृत करने के लिए कुछ राशि भी देने की घोषणा करते।
6. अगर जनता को यात्रा से रोकना था, तो फिर सरकार ने पहले ही रेलगाड़ियाँ रोकने का ऐलान क्यों नहीं किया, ताकि लोगो को अग्रिम सूचना मिल जाती और जनता अपने कार्यक्रम बदल सकती।
रघु ठाकुर ने कहा कि, 22 तारीख की शाम को उनके थाली और ताली के अभिनंदन का रहस्य तब मालूम पड़ा, जब उनके फेसबुक-बाहुबलियों ने गिनती गिन कर यह बता दिया कि देश में 53 करोड़ लोगों ने तालियां थाली बजाई। इतना ही नहीं यह भी अभियान शुरू किया गया कि इतना जनसमर्थन कभी महात्मा गांधी को भी नहीं मिला यानी श्री मोदी जी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से भी महान हैं। उनके कुछ समर्थकों ने यह भी लिखना शुरू किया कि, जनता कर्फ्यू की महान सफलता के लिए श्री मोदी जी को नोबेल पुरस्कार दिया जाना चाहिए। मैं नहीं जानता कि, यह प्रायोजित था या आकस्मिक परन्तुु ऐसी फेसबुक-प्रतिक्रियायें चौंकाने वाली हैं।
इनसे उत्साहित होकर 24 मार्च को प्रधानमन्त्री जी ने सरकार द्वारा घोषित तीन दिवसीय कर्फ्यू को 14 अप्रैल तक के लिए याने 21 दिनों के लिए लागू करने की घोषणा कर दी। क्योंकि उनके घर पर रहने से ही वायरस संक्रमण की चेन कट सकती है।
यह सही है, पर कुछ प्रश्न जेहन में उठते हैं:
1. जब फरवरी माह में ही विश्व स्वास्थ संगठन ने यूएनओ के माध्यम से दुनिया के सभी देशों को कोरोना संक्रमण की चेतावनी और एडवाइजरी जारी कर दी थी तो प्रधानमंत्री जी लगभग एक माह चुप क्यों बैठे रहे?-
2. चीन, इटली, अमेरिका और ईरान फरवरी से इस संक्रमण से जूझ रहे थे, यूरोप भी प्रभावित हो रहा था। तब उन्होंने विदेशों से आने वाले यात्रियों पर नियंत्रण और हवाई अड्डों पर रोककर उन्हें प्रवेश की अनुमति देने के पूर्व आइसोलेशन व जाँच के उपरांत ही प्रवेश की अनुमति के आदेश क्यों नहीं दिये?- जब कि स्वतः प्रधानमंत्री जी ने फरवरी के अंत से ही अपनी सारी विदेशी यात्रायें निरस्त कर दी थीं। तो क्या यह कदम देश में नहीं उठाना चाहिए था। पूर्व विदेश सचिव- श्री शशांक शेखर ने इस बिलम्ब पर प्रश्न-चिन्ह लगाया है।
3. 21दिन के कर्फ्यू की घोषणा के पहले क्या उन्होंने इन प्रश्नों पर विचार किया___
अ) देश के बड़े हिस्से में कृषि कार्य जारी है और फसल की कटाई हो रही है। जब हार्वेस्टर नहीं चलेंगे मजदूरों के समूह खेत में नहीं जाएंगे तो क्या फसलें खेतों में खड़ी खराब नहीं होंगी और जब किसान उनकी घर बंदी के कारण रखवाली नहीं कर सकेगा तो फसलों का क्या होगा?-
ब) अचानक 4000 और बाद में सारी रेलों को बंद करते समय क्या उन यात्रियों के बारे में कुछ विचार किया जो अपनी यात्रा पर रवाना हो चुके थे और जिन्हें बीच जंगलों में बगैर खाना-पानी के खड़ा कर दिया गया?-
स) देश के चार करोड़ गरीब लोग और विशेषतः मजदूर झोपड़-पट्टियों में रहने वाले साइकिल रिक्शा चलाने वाले तथा दैनिक वेतन मजदूर अपना दैनिक राशन खरीदते हैं, क्योंकि उनके पास न जमा करने लायक जगह है न खरीदने की क्षमता है। न साधन है ना स्थान। सस्वतःभारत के योजना आयोग ने यह स्वीकार किया है कि देश के 40 करोड़ लोगों की क्रय क्षमता ₹20 प्रतिदिन से भी कम है। प्रधानमंत्री का आदेश मानकर 25 तारीख की सुबह से ही लोग घरों में कैद कर दिए गए। कहाँ से उनके पास राशन आएगा, कहाँ से बच्चों को दूध दवाई देने के लिए पैसा आएगा?-
क्या यह उचित नहीं था कि, प्रधानमंत्री जी देश के तीन करोड़ जन-धन खातों में 21 दिन के खर्च के लिए केंद्र के द्वारा ₹5000 प्रति खाता डलवा देते, मुश्किल से 15 हजार करोड़ रुपए में तीन करोड़ परिवार जिंदा रहने लायक राशन खरीद पाते।
हालांकि मैं केरल सरकार और उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की सरकारों को बधाई दूँगा कि, उत्तर प्रदेश में 35 लाख खातों में एक हजार रुपैया तथा मध्य प्रदेश में सामाजिक सुरक्षा विधवा पेंशन आदि का 2 माह का अग्रिम भुगतान का आदेश दिया गया है।
केरल सरकार ने 2 फरवरी के आरंभ में ही सावधानी बरती थी। उन्होंने लगभग उस पर पूरा नियंत्रण कर लिया। क्योंकि केरल में दुनिया से आने वालों की संख्या जियादा है तथा यह केरल सरकार की दूर-दृष्टि थी कि, उन्होंने समय पूर्व कदम उठा लिए।
4. कारखाना-बंदी से करोड़ों मजदूर दिल्ली, मुंबई, जयपुर, और चंडीगढ़ जैसे बड़े-बड़े महानगरों में फँस गए। घरों से निकल नहीं सकते। पैसा है नहीं। राशन खत्म हो रहा है और सरकार चुप है। लाचार होकर वे घरों से बच्चों के साथ सामान के साथ पैदल जाने को लाचार हैं। सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा बगैर दाना-पानी बगैर पैसे के कैसे कर पाएंगे, इसकी कल्पना मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कितनी ही टी•वी• चैनल इन के फोटो दिखा रहे हैं। उन्हें पुलिस से पिटते बता रहे हैं। परन्तुु प्रधानमंत्री जी चुप हैं। यहां तक कि लोग दूध के टैंकरों और माल गाड़ियों के डिब्बों में छिप कर बैठकर अपने घरों को जा रहे हैं। क्या यह सरकार की अमानवीयता नहीं है?- मैंने यह भी अपील की थी कि, कुछ सैनिटाइजड रेलगाड़ियां चलाकर उन्हें उनके घरों के पास तक छुड़वाया दिया जाए। भाजपा के श्री विजयवर्गीय ने दावा किया है कि उन्होंने 80 लोगों को गाड़ियों से भिंड में छुड़वाया है। इसकी सच्चाई मैं नहीं जानता परंतु यह सब जानते हैं कि, बंगाल में लाखों मजदूर बिहार और उत्तर प्रदेश का है।
कोरोना वायरस से चिकित्सकीय और वैज्ञानिक मुकाबला करने की वजाय अंधविश्वास फैलाया जा रहा है। 22 मार्च को ताली और थाली बजाने वालों ने घोषणा कर दी कि, ताली और थाली की आवाज सुनकर कोरोना वायरस भाग जायेगा और शहरों में लोगो ने घरो व छतो पर तथा सड़को पर समूह में निकलकर "गो कोरोना" - "गो कोरोना" नारे लगाये। एक तरफ यह अंधभक्ति है और दूसरी तरफ अंधविश्वास भी फैलाया जा रहा है। एक जगत गुरु के मंत्र के पाठ करते हुए वीडियो व फोटो डाले गए हैं और कहे-अनकहे कहा जा रहा है कि, मंत्र पाठ से कोरोना भाग जाएगा। कुछ इमाम साहबों की भी तकरीर मैंने सुनी है, जिसमें वह कह रहे हैं कि मस्जिद अल्लाह का घर है। इसमें आने वालों को कोरोना नहीं होगा। हालांकि बाद में हिन्दू-मुस्लिम दोनों धर्म गुरुओं ने सुधार कर अपील भी जारी की है कि, नवदुर्गा पूजा व नमाज घर में ही अदा करें। हिंदू मुसलमान और सभी धर्म गुरुओं को स्वीकार करना चाहिए कि, मंत्र और नमाज से वायरस नहीं मरते न इटली में , न ईरान में ,न भारत में। वायरस को तो वैज्ञानिक तरीकों से ही मिटाना होगा।
एक प्रकार की अघोषित आपातकाल जैसी स्थिति है और सोशल मीडिया के माध्यम से तमाम प्रकार की अफवाहें फैल रही हैं।
देश के एक प्रबुद्ध तबके के मन में यह भी शक है कि, कहीं कोरोना के नाम पर अतिरेकी-बंधन लगाकर 80 हजार करोण रुपए के वित्तीय घाटे को छुपाने का प्रयास तो नहीं है। अभी जानकारी मिली है कि, पौने दो लाख करोण के पैकेज का ऐलान भारत सरकार ने किया है। हालांकि अमेरिका पहले ही लगभग ₹78 लाख करोण तथा कनाडा सरकार 22 लाख करोण के पैकेज का ऐलान कर चुकी है। कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रुदो ने तो स्पष्ट घोषणा की कि लोग लॉकडाउन के दिनों में घर पर रहें। आपको घर बैठे वेतन सरकार देगी, यानी इलाज, भोजन और वेतन तीनों का संपूर्ण दायित्व कनाडा सरकार ने अपने कंधों पर ले लिया है।
कुछ देर से ही सही कल रात भारत सरकार ने पौने दो लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज घोषित कर दिया है तथा 20 करोड़ महिलाओं के खातों में 3 माह तक 500रु प्रति माह, गरीब वरिष्ठ जनों, विधवाओं, दिव्यांगों के खातों में 1000रु डालने, 5 किलो राशन व 1 किलो मुफ्त दाल, उज्ज्वला गैस योजना के तहत नि:शुल्क गैस देने की घोषणा की है।प्रमन्त्रीजी जी को इसके लिए साधुवाद।