
बजट के संदेश पर पसोपेश में सांसद
नई-दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का 160 मिनट लंबा बजट भाषण खत्म होने के बाद विपक्ष के साथ-साथ सत्ता पक्ष के सांसद भी लोकसभा से एक झुंड की तरह जल्द बाहर निकलने को आतुर दिखे। यह एक तरह से वित्त वर्ष 2020 -21 के आम बजट के असर को दर्शा रहा था।
नरेंद्र मोदी सरकार ने वर्ष 2015 में अपना बजट दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के एक पखवाड़े बाद पेश किया था और उसमें गरीबों के कल्याण को अपना केंद्रीय विषय बनाया था। उसके ठीक पांच साल बाद दिल्ली में विधानसभा चुनाव महज एक हफ्ते दूर होने के बीच मोदी सरकार ने मध्य वर्ग को आकर्षित करने के लिए नई आयकर दरों की घोषणा कर दी है। इस घोषणा ने जहां दिल्ली के सांसदों को खुश किया वहीं हिंदीभाषी क्षेत्रों से ताल्लुक रखने वाले सांसद इस बात को लेकर पसोपेश में दिखे कि वे अपने क्षेत्रों में बजट के बारे में क्या संदेश लेकर जाएं?-
खाद्य एवं उर्वरक सब्सिडी में की गई कटौतियों को लेकर सांसद चिंतित दिखे तो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार गारंटी देने वाली मनरेगा योजना के बजट आवंटन में की गई कमी भी उनकी परेशानी का सबब बन सकती है। इस साल का बजट 2015 के बजट की ही तरह महत्त्वपूर्ण है। दोनों ही बार केंद्र में आम चुनाव के बाद पहला पूर्ण बजट पेश किया गया है। इसके अलावा इन दोनों वर्षों में केवल दो राज्यों में ही विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में केंद्र सरकार से यह अपेक्षित था कि वह आर्थिक सुधारों को तेज करने और नई योजनाएं लाने में अधिक साहस का परिचय देगी। लेकिन ऐसा न तो 2015 में हो पाया था और न ही इस बार ऐसा हुआ है।
अगर 2015 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मुद्रास्फीति पर काबू पाने को अपने बजट का मुख्य बिंदु बताया था तो 2020 के बजट में सत्तारूढ़ सांसद सीतारमण से महंगाई पर काबू पाने का कोई भी भरोसा हासिल नहीं कर पाए। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति सात फीसदी से अधिक है और खाद्य मुद्रास्फीति तो 10 फीसदी से भी ऊपर चल रही है। बहरहाल इस बात की पूरी आशंका है कि सरकार को सार्वजनिक बीमा कंपनी एलआईसी और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश पर न केवल विपक्षी दलों बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संगठन का भी तगड़ा विरोध झेलना पड़ेगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने इसे हड़बड़ी में किया जाने वाला निजीकरण बताया है।
वहीं अन्य विपक्षी दलों ने एलआईसी में हिस्सा बेचने की योजना को आर्थिक सुस्ती एवं नोटबंदी का ठीकरा राज्यों पर फोडऩे की कोशिश बताया है। उनका कहना है कि वित्त मंत्री ने कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी को और घटाने की बात कही है। इससे केंद्र एवं राज्यों के बीच तनातनी और बढऩे की आशंका है। भारतीय धरोहर एवं संरक्षण संस्थान को स्थापित करने के प्रस्ताव, संस्कृति मंत्रालय के लिए 3,150 करोड़ रुपये और पर्यटन मंत्रालय के लिए 2,500 करोड़ रुपये के आवंटन का भाजपा के समर्थकों ने सोशल मीडिया पर बड़े उत्साह से स्वागत किया। सीतारमण ने कहा, "संग्रहालय विज्ञान और पुरातत्व विज्ञान जैसी विधाओं में ज्ञान अर्जित करना, इन निष्कर्षों के वैज्ञानिक साक्ष्यों को जुटाने और इनका विश्लेषण करने और और उच्च स्तरीय संग्रहालयों के माध्यम से इनका प्रचार-प्रसार करना जरूरी है।"
वित्त मंत्री ने झारखंड राज्य की राजधानी रांची में एक जनजातीय संग्रहालय बनाने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा, 'पांच पुरातत्व स्थलों हरियाणा, उत्तर प्रदेश, असम, गुजरात और तमिलनाडु में स्थानिक संग्रहालय बनाया जाएगा।' इनमें से ज्यादातर भाजपा शासित राज्य हैं जबकि तमिलनाडु में इसके सहयोगी दल अन्नाद्रमुक की सरकार है। वित्त मंत्री ने एक रोचक दावा किया कि सिंधु सभ्यता की पांडुलिपियों का गूढ़ अर्थ स्पष्ट कर लिया गया है। वाणिज्य और व्यापार संबंधी शब्दों से पता चलता है कि कैसे भारत सैकड़ों सालों से कौशल, धातु कर्म, व्यापार आदि में समृद्ध रहा है। हालांकि बजट में रोजगार सृजन पर कुछ खास नहीं था, ऐसे में विपक्ष ने सवाल किया, 'मौजूदा वृद्धि दर के साथ 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य कैसे हासिल किया जाएगा?-'
चुनावी रणनीति के लिए बजट!
नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल (2014 से २०१९) में विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर बजट तैयार किया गया था जिसमें बजट पेश करने की तारीख में बदलाव जैसे कदम भी शामिल हैं। वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव शुरू होने से पहले ही बजट पेश करने की तारीख 28 फरवरी के बजाय 1 फरवरी तय कर दी गई। इस साल भी दो राज्यों में चुनाव होने हैं। दिल्ली में 8 फरवरी जबकि बिहार में अक्टूबर में चुनाव होने हैं। वित्त मंत्री ने नए आयकर स्लैब की घोषणा दिल्ली के मतदाताओं को लुभाने के लिए की।
वित्त मंत्री ने सरकार की विनिवेश पहल के तहत एलआईसी को बाजार में सूचीबद्ध करने का जो प्रस्ताव रखा है उसे विपक्ष के भारी विरोध का सामना करना पड़ेगा। लगभग सभी विपक्षी दलों ने कहा कि वे इस योजना का विरोध करेंगे। एलआईसी के कर्मचारी संगठनों ने कहा कि सरकार का यह कदम श्राष्ट्रीय हित के खिलाफश् है और इससे 'देश की आर्थिक संप्रभुता खतरे में' पड़ जाएगी। संगठनों ने कहा कि एलआईसी के कर्मचारी संगठन विरोध प्रदर्शन करेंगे। भारतीय मजदूर संघ ने भी सरकारी उपक्रमों के विनिवेश का विरोध किया है।
(साभार- बी एस)
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