संसद में दादरा एवं नगर हवेली और दमन व दीव (केंद्र शासित प्रदेशों का विलय) विधेयक, 2019 पारित
प्रशासनिक दक्षता, बेहतर ढंग से सेवाएं मुहैया कराने और केन्द्र एवं राज्य सरकार की योजनाओं के प्रभावकारी कार्यान्वयन पर फोकस रहेगा: जी किशन रेड्डी
नई-दिल्ली, 03 नवम्बर 2019: संसद में आज दादरा एवं नगर हवेली और दमन व दीव (केंद्र शासित प्रदेशों का विलय) विधेयक, 2019 पारित हो गया। केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री श्री जी. किशन रेड्डी ने राज्य सभा को संबोधित करते हुए कहा कि अधिकारियों एवं कर्मचारियों के सार्थक उपयोग,प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने, प्रशासनिक व्यय कम करने, बेहतर ढंग से सेवाएं मुहैया कराने और योजनाओं की बेहतर निगरानी सुनिश्चित करने की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए केन्द्र शासित प्रदेशों दादरा एवं नगर हवेली और दमन व दीव के विलय के लिए यह विधेयक लाया गया है। उन्होंने कहा कि इससे कर्मचारियों का बेहतर कैडर प्रबंधन भी सुनिश्चित होगा।
श्री रेड्डी ने कहा कि प्रशासन एवं सेवा शर्तों और आरक्षण में कोई बदलाव नहीं होगा। इसी तरह समूह III और IV के कर्मचारियों की स्थिति में भी कोई बदलाव नहीं होगा। उन्होंने कहा कि विलय से प्रशासन में सहूलियत होगी, त्वरित विकास होगा और केन्द्र एवं राज्य सरकार की योजनाओं का प्रभावकारी कार्यान्वयन हो पाएगा। श्री रेड्डी ने कहा कि इस नये केन्द्र शासित प्रदेश का नाम ‘दादरा एवं नगर हवेली और दमन व दीव’ होगा और यह बॉम्बे हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में शासित होगा।
संशोधन करने के औचित्य के बारे में जानकारी देते हुए श्री रेड्डी ने कहा कि फिलहाल दो सचिवालय एवं समानांतर विभाग हैं, जो प्रत्येक केन्द्र शासित प्रदेश की बुनियादी ढांचागत सुविधाओं और कर्मचारियों एवं अधिकारियों का उपयोग करते हैं। प्रशासक, सचिवालय और कुछ विशेष विभागों के प्रमुख वैकल्पिक दिवसों पर दोनों केन्द्र शासित प्रदेशों में काम करते हैं, जिससे लोगों तक उनकी उपलब्धता और अधीनस्थ कर्मचारियों के कामकाज की निगरानी प्रभावित होती है। उन्होंने कहा कि दोनों केन्द्र शासित प्रदेशों के अधीनस्थ कर्मचारी अलग-अलग हैं। इसके अलावा, भारत सरकार के विभिन्न विभागों को दोनों केन्द्र शासित प्रदेशों के साथ अलग-अलग ढंग से सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है, जिससे कामकाज में दोहराव की स्थिति पैदा होती है।
श्री रेड्डी ने कहा कि दोनों केन्द्र शासित प्रदेशों में दो भिन्न संवैधानिक एवं प्रशासनिक निकाय रहने से कामकाज में दोहराव एवं अक्षमता की स्थिति पैदा होती है और अपव्यय होता है। इसके अलावा, इस वजह से सरकार पर अनावश्यक वित्तीय बोझ पड़ता है। यही नहीं, कर्मचारियों के कैडर प्रबंधन और करियर में प्रगति के मार्ग में विभिन्न चुनौतियां हैं। उन्होंने कहा कि अपेक्षाकृत अधिक अधिकारियों की उपलब्धता के साथ-साथ ज्यादा बुनियादी ढांचागत सुविधाएं मिलने से सरकार की प्रमुख योजनाओं का बेहतर ढंग से कार्यान्वयन करने में मदद मिलेगी।
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