कर्ज भुगतान में एनएचएआई का फूल रहा दम
नई-दिल्ली: भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) अपनी खस्ताहाल वित्तीय हालत के बीच दोराहे पर खड़ा दिख रहा है।
एनएचएआई की इस हालत को देखकर प्रधानमंत्री कार्यालय को हस्तक्षेप करना पड़ा। पीएमओ एनएचएआई के "अनियोजित एवं अत्यधिक विस्तारश् पर चिंता जता चुका है। पीएमओ के हस्तक्षेप से पहले कई ऐसे संकेत मिलने लगे थे, जिनके बाद सरकार सचेत हो गई। हाईब्रिड-एन्युइटी मॉडल (एचएएम) पर बनने वाली राजमार्ग परियोजनाओं के लिए रकम देने में बैंकों की आनाकानी और एनएचएआई की इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण (ईपीसी) पर निर्भरता ने इसकी वित्तीय सेहत बिगाड़ दी। एचएएम के तहत सरकार परियोजना पर आने वाली कुल लागत की 40 प्रतिशत पूंजी मुहैया कराती है। ईपीसी परियोजनाओं के लिए धन पूरी तरह सरकारी खजाने से आता है। एसबीआई कैप्स के अनुसार एनएचएआई की हालिया परियोजनाओं में कर्ज के तौर पर मिलने वाली रकम का हिस्सा बढ़ गया है। रिपोर्ट में कहा गया है, "प्रति किलोमीटर टॉल संग्रह भी मात्र 6 प्रतिशत दर से बढ़ा है। इस तरह इन परियोजनाओं के मिले ऋणों पर ब्याज की देनदारी राजस्व संग्रह से बड़ी मुश्किल से हो पाती है। कमाई तो बहुत दूर की बात है। कर्ज अदायगी एक बड़ी समस्या बन गई है।"
इस पूरे मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने कहा कि एनएचएआई पर कर्ज का बोझ खासा बढ़ गया है और चालू वित्त वर्ष के अंत तक कुल कर्ज बढ़कर 2.5 लाख करोड़ रुपये हो जाने की उम्मीद है। इस साल पिछले साल के मुकाबले सरकारी मदद में 36.691 करोड़ रुपये की मामूली कमी आई है, लेकिन उधारी 21 प्रतिशत बढ़कर 72,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की आशंका है। अगले दो दशकों के दौरान ब्याज के मद में एनएचएआई की देनदारी सालाना करीब 25,000 करोड़ रुपये रह सकती है। रेटिंग एजेंसी इक्रा ने एनएचएआई की देनदारी 63,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया है, लेकिन यह अनुमान कम साबित हो सकता है। एनएचएआई के पूर्व चेयरमैन बृजेश्वर सिंह ने टेलीविजन पर एक साक्षात्कार में कहा कि वास्तविक अनुमानित देनदारी पांच गुना अधिक होकर 3 लाख करोड़ रुपये तक हो सकती है।
पूर्व सड़क सचिव विजय छिब्बर ने कहा, "2013-14 में एनएचएआई के लिए 20 साल की वित्तीय योजना तय की गई थी। इसमें सरकार से बजट सहायता, उधारी और ऋणों का भुगतान शामिल हैं। इसकी हरेक साल समीक्षा होती है और आवश्यकता पडऩे में इसमें सुधार भी किया जाता है। सड़क निर्माण के लिए उपकर संग्रह से प्राप्त होने वाली रकम में कमी से एनएचएआई को अधिक उधारी लेनी पड़ रही है।" एनएचएआई के ताजा आंकड़ों के अनुसार कर्ज का बोझ ऐसे समय में बढ़ा है, जब भूमि अधिग्रहण की लागत भी बढ़ गई है। भूमि अधिग्रहण पर एनएचएआई की लागत वित्त वर्ष 2017-18 में दोगुनी होकर 32,143 करोड़ रुपये हो गईए जो 2016-17 में 17,824 करोड़ रुपये थी। एसबीआई कैप्स के अनुसार भूमि अधिग्रहण लागत एवं नागरिक निर्माण कार्यए निवेश (ईपीसी एवं एचएएम परियोजनाएं) वित्तीय रूप से घाटे का सौदा साबित हो रहे हैं, जिससे सुधार की जरूरत आन पड़ी है। हालांकि परियोजनाओं की संख्या बढऩे से भी भूमि अधिग्रहण खर्च बढ़ रहा है, लेकिन मुख्य रूप से नए भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनस्र्थापन अधिनियम, 2013 के बाद भूमि मालिकों के लिए मुआवजे की राशि खासी बढ़ गई है।
इस साल एनएचएआई राष्ट्रीय लघु बचत कोष(एनएसएसएफ) से भी अपनी उधारी बढ़ाकर दोगुनी कर सकती है और 2019-20 के दौरान एनएसएसएफ से करीब 40,000 करोड़ रुपये ले सकती है। उसने इस साल 75,000 करोड़ रुपये उधार लेने की योजना बनाई है। साथ ही उसने राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेसवे के निर्माण के लिए अगले कुछ वर्षों तक इतनी ही राशि जुटाने का लक्ष्य रखा है। एनएचएआई ने पिछले वित्त वर्ष के दौरान लघु बचत योजना से 20,000 करोड़ रुपये जुटाए थे।
(साभार- बी•एस•)
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