सुस्ती का असर, 6 साल में सबसे कम विकास दर
नई-दिल्ली: सेवा, विनिर्माण, कृषि और निर्माण सहित कई क्षेत्रों में सुस्ती से चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्घि दर महज पांच फीसदी रही जो 2013 के बाद सबसे कम है।
महत्त्वपूर्ण है कि पिछली दो राष्ट्रीय शृंखलाओं के मद्दनेजर समायोजन के बगैर (नॉमिनल) आर्थिक विकास दर आठ फीसदी रही जो 2002-03 की तीसरी तिमाही के बाद सबसे कम है।
केंद्रीय बजट में नॉमिनल जीडीपी के 11 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया था। नॉमिनल जीडीपी वृद्घि से आय में बढ़ोतरी का पता चलता है और मौजूदा मंदी इसमें तेज गिरावट का संकेत देती है। इससे केंद्र और राज्य सरकारों की राजकोषीय स्थिति भी डगमगा सकती है क्योंकि नॉमिनल जीडीपी वृद्घि के कमजोर रहने से कर संग्रह पर भी बुरा असर पड़ता है।
यात्री और वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री, पूंजीगत सामान, उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं, इस्पात और सीमेंट का उत्पादनए हवाई यात्रा जैसे उच्च आवृत्ति वाले संकेतकों में अप्रैल-जून तिमाही में गिरावट आई है या उनकी वृद्घि दर बहुत कम रही है।
हालांकि देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने अर्थव्यवस्था में सुस्ती के लिए वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने ट्वीट किया, "विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मंदी और चीन तथा अमेरिका के बीच व्यापार संघर्ष के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। इससे पहले 2012-13 की चौथी तिमाही और 2013-14 की चौथी तिमाही में भी इसी तरह की स्थिति देखने को मिली थी जब अर्थव्यवस्था की विकास दर करीब पांच फीसदी रही थी।"
प्रधानमंत्री की अर्थशास्त्रियों की समिति के अध्यक्ष विवेक देवरॉय ने उम्मीद जताई कि मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक विकास दर 6.5 फीसदी रहेगी।
दुनिया के कई देश सकारात्मक विकास दर के लिए संघर्ष कर रहे हैं, इसलिए इसे कमतर नहीं माना जा सकता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर 2019 में 3.2 फीसदी रहने का अनुमान है।
मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में निजी खर्च की वृद्घि 3.1 फीसदी रही जो 2012 में नई राष्ट्रीय शृंखला के शुरू होने के बाद सबसे कम है। इस दौरान निवेश की वृद्घि दर चार फीसदी रही जो निवेशकों और बड़े कारोबारी घरानों के बीच कमजोर धारणा को दिखाता है। लेकिन सरकारी व्यय की रफ्तार अर्थव्यवस्था से तेज रही।
विशेषज्ञों ने अर्थव्यवस्था की बदहाली पर चिंता जताई है।
इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत ने कहा, "ढांचागत और चक्रीय मुद्दों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है। कृषि के बाद निर्माण/रियल स्टेट क्षेत्र सबसे बड़ा नियोक्ता है और निवेश तथा खपत बढ़ाने में इसकी अहम भूमिका है।" अप्रैल-जून के दौरान विनिर्माण क्षेत्र की वृद्घि दर पिछले साल के समान तिमाही की तुलना में महज 0.6 फीसदी रही। 2017-18 से इस क्षेत्र की रफ्तार बेहद धीमी रही है। अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक योगदान करने वाले सेवा क्षेत्र की वास्तविक रूप से बढ़ोतरी सात फीसदी से कम रही। पिछले सात साल में केवल तीन बार इस क्षेत्र की रफ्तार सात फीसदी से कम रही है।
(साभार- बी. एस.)
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