विशेष: सीवर में एक एक कर पांच मज़दूर उतरे और फिर ज़िंदा नहीं लौटेः ग्राउंड रिपोर्ट
सीवर में एक एक कर पांच मज़दूर उतरे और फिर ज़िंदा नहीं लौटेः ग्राउंड रिपोर्ट पेश किया है बीबीसी हिंदी न्यूज़ के संवाददाता- विनीत खरे ने
बीबीसी न्यूज़ द्वारा प्रसारित ग्राउंड रिपोर्ट में संवाददाता - विनीत खरे ने बताया है कि, विजय राय, शिवकुमार राय, दामोदर, होरिल साद, संजीत साद
ये वो पांच नाम हैं जो सीवर के अंधेरे में हमेशा के लिए खो गए।
स्थानीय लोगों के लिए ये चेहरे अंजान थे। किसी को पता भी नहीं था कि ये आख़िर रहते कहां थे।
इन सभी का परिवार हज़ारों किलोमीटर दूर बिहार के समस्तीपुर में रहता है, इसलिए दुर्घटना के डेढ़ दिन बाद भी ग़ाज़ियाबाद के पोस्टमार्टम हाउस के बाहर सिर्फ़ दो लोगों के रिश्तेदार पहुंच पाए थे।
2 दिन पहले गुरुवार को ग़ाज़ियाबाद के नंदग्राम के कृष्ण कुंज इलाक़े में हादसा हुआ जहां ये पांच मज़दूर एक नई सीवर लाइन में घुटकर मर गए। वो एक निजी कंपनी के लिए काम करते थे जिसके बारे में पुलिस अधिकारी भी जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं।
सीवर मज़दूरों के बुरे हालात
जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं?-
मृतक विजय राय
उस दिन क्या हुआ था?-
बात दोपहर क़रीब दो बजे की है। राजबीर सिंह की दुकान इसी नए सीवर के सामने है। ये सभी मज़दूर उनकी दुकान से कभी-कभार पानी, बीड़ी, सिगरेट ख़रीदते थे। इससे ज़्यादा उनकी इन मज़दूरों से पहचान नहीं थी।
मृतक शिव कुमार
"और वो अंदर गिर गया"
ये मज़दूर एक नई सीवर लाइन से नाली को जोड़ने और उसमें मसाला लगाने का काम कर रहे थे।
राजबीर के मुताबिक़, उन्होंने बाहर से मसाला लगा दिया था लेकिन जब एक आदमी मसाला लगाने के अंदर सीवर में झुका तो उसे गैस चढ़ी और वो अंदर गिर गया। उसे बचाने के लिए दूसरा, फिर पहले और दूसरे को बचाने की कोशिश में तीसरा आदमी गिर गया। इस तरह उस गहरे मेनहोल में पांच आदमी गिर गए।
राजबीर बताते हैं, "अगली साइट पर उनके दो और आदमी काम कर रहे थे, वो मास्क और रस्सी लेकर दौड़े आए लेकिन सीवर के अंदर वक्त ज़्यादा हो चला था"। बाइक और स्कूटी की मदद से उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
"सीवर में गैस भर गई थी"
वो कहते हैं, "इस सीवर में शायद बरसात और दूसरा पानी भर गया था जिसके कारण उसके भीतर गैस भर गई थी। आप देख रहे हैं कि ज़मीन पर कितनी गर्मी है, तो सीवर के भीतर कितनी गर्मी होगी"।
राजबीर के मुताबिक़, ये मज़दूर पहले हेलमेट और दूसरे सुरक्षा सामान लेकर आते थे लेकिन दुर्घटना के दिन उनके पास कोई सामान नहीं था।
मदद के लिए लोगों ने पुलिस को फ़ोन किया लेकिन राजबीर कहते हैं, "पीसीआर और प्रशासन के अधिकरी सारा काम ख़त्म होने के बाद आए।"
शवों को ग़ाज़ियाबाद के पोस्टमॉर्टम हाउस ले जाया गया जहां दो मृतकों के रिश्तेदार ही पहुंच पाए थे जबकि बाकी के परिवार के लोग अभी भी रास्ते में थे। पोस्टमॉर्टम हाउस पहुंचने के लिए आपको हिंडन नदी के पास श्मशान घाट के बगल से गुज़र रहे पतले से रास्ते से होकर गुज़रना होता है।
संतोष कुमार राजस्थान में टॉफ़ी चॉकलेट बनाने का काम करते हैं। होरिल उनके चाचा के लड़के थे। वो इतनी लंबी दूर तय कर यहां पहुंचे थे उनके मोबाइल की बैटरी ख़त्म हो गई थी।
दुकान के मालिक राजबीर सिंह
पोस्टमॉर्टम हाउस के बगल से गुज़रती रेल लाइन पर गुज़रती ट्रेनें इतनी तेज़ आवाज़ पैदा करती थीं कि हमें अपनी आवाज़ों को ऊंचा करके बात करनी पड़ रही थी।
संतोष ने बताया कि उनकी होरिल से एक महीने पहले ही मुलाक़त हुई थी और उन्होंने होरिल से कहा था कि वो अपना काम बदल लें।
होरिल के दो बच्चे हैं।
संतोष बताते हैं, "छः-सात साल पहले की बात है कि राजस्थान के एक गांव में दो बच्चे इसी तरह का काम करते हुए मिट्टी में दबकर मर गए थे। इसलिए हमें भी डर लग रहा था। हमने उन्हें मना भी किया कि इस लाइन में मत जाओ। हमें पता नहीं था कि ऐसा हो जाएगा"।
अब उनका क्या होगा?-
वो बहुत अच्छे इंसान थे। वो हमारे प्यारे भैया थे। मृतक विजय राय मुन्ना कुमार के भतीजे थे। विजय के तीन लड़के और एक लड़की हैं और मुन्ना कुमार को चिंता है कि अब उनका क्या होगा। विजय ये काम क़रीब दो दशकों से कर रहे थे। कई लोगों की तरह वो कुछ महीने यहां काम करते और फिर घर वापस चले जाते।
मुन्ना की विजय से आख़िरी मुलाक़ात 15 दिन पहले ही हुई थी। पिछले दो दिन लगातार फ़ोन पर उनकी बात हुई थी।
वो अपनी सुरक्षा के लिए उपकरणों पर कितना ध्यान देते थे।
मुन्ना कुमार कहते हैं, "सुरक्षा का काम तो कंपनी को करना चाहिए। मज़दूर कैसे अपनी सुरक्षा करेगा। मज़दूर तो पैसे के लालच में काम कुछ भी कर लेता है। ये हुआ भी पैसे के लालच में। "
"हम मजबूरी में काम करते हैं। मजबूरी नहीं होती तो 1200 किलोमीटर दूर हम यहां थोड़े ही आते। घर में ही कमाकर खाते लेकिन घर में कमाकर खाने का कोई जुगाड़ नहीं है इसलिए परदेस आना पड़ता है। इतना अच्छा कोई रोज़गार वहां नहीं है। 100-150 रुपये में आदमी क्या ख़ुद खाएगाए बच्चों को क्या खिलाएगा, मां-बाप को क्या खिलाएगा और बच्चों को क्या शिक्षा देगा। "
ग़ाज़ियाबाद पुलिस के एसएसपी सुधीर कुमार सिंह ने बताया कि पुलिस ने इस मामले में दो मामले दर्ज किए हैं और जल निगम के लिए काम करने वाली एक कंपनी ईएमएस इन्फ़्राकॉन के तीन लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया गया है जिनमें कंपनी का मालिक रामबीर, साइट मैनेजर मोनू एक और अधिकारी प्रवीण शामिल है, साथ ही "मोनू को पूछताछ के लिए गिरफ़्तार किया गया है।"
वह कहते हैं, "कुछ टीमें बाहर भेजी गई हैं और दूसरे अभियुक्तों की गिरफ़्तारी की पूरी संभावना है।"
क्या है क़ानूनी प्रावधान?-
18 सितंबर 2013 को अमल में लाए गए मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में उतारना पूरी तरह से ग़ैर-क़ानूनी है।
अगर किसी व्यक्ति को सीवर में भेजकर सफ़ाई करवाना मजबूरी है तो इसके कई नियमों का पालन करना होता है।
सबसे पहले तो सीवर में उतरने के लिए इंजीनियर की अनुमति लेने होती है और मज़दूर को सफ़ाई के दौरान ज़रूरी ख़ास सूट, ऑक्सीजन सिलेंडर, मास्क, गम शूज़, सेफ़्टी बेल्ट मुहैया करना होता है। साथ ही सीवर के पास एंबुलेंस भी खड़ी होनी चाहिए ताकि दुर्घटना की स्थिति में मजदूर को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाया जा सके।
हाल की एक रिपोर्ट के मुताबिक सीवर में मौतों के मामले में एक भी व्यक्ति को सज़ा नहीं हुई है।
(साभार- बीबीसी न्यूज़)
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