अतिथि विद्वान शिक्षक व सरकार का दायित्व: रघु ठाकुर
भोपाल (म.प्र.): लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रिय संरक्षक- महान समाजवादी चिंतक व विचारक- रघु ठाकुर ने कहा कि, "म.प्र. के लगभग 5 हजार अतिथि विद्वान पिछले 20 वर्षाें से काॅलेजों में छात्र-छात्राओं को पढ़ा रहे हैं और वस्तु स्थिति यह है कि, सरकारी काॅलेजों की पढ़ाई और छात्रों का भविष्य इन्हीं अतिथि विद्वानों के द्वारा बनाया जा रहा है क्योंकि सरकारी काॅलेजों में शिक्षक ही नहीं हैं। प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था 20 साल पहले से ही इन अस्थाई अतिथि विद्वानों द्वारा चलाई जा रही हैं। क्योंकि पिछली कांग्रेस या भाजपा सरकारों ने पैसा बचाने के लिये और स्थाई कर्मचारियों के वेतन व अतिरिक्त दायित्वों से बचने के लिये यह अस्थाई नीतियों की परम्परा शुरू की थी जो एक प्रकार से आउट सोर्सिंग और शिक्षा का निजीकरण जैसा है।
उन्होंने कहा कि, "पिछले 10 वर्षाें से तो अतिथि विद्वानों का शिक्षक संघ लगातार राजधानी में, जिला मुख्यालयों पर धरना-प्रदर्शन के माध्यम से अपनी पीड़ाओ को हर सरकार के सामने व्यक्त करता रहा है। सरकारें कभी पीठ थपथपाती रही, कभी आश्वासन देती रहीं और कभी-कभी लाठियों से पीटती भी रहीं। विधानसभा चुनाव 2018 के पूर्व अतिथि विद्वानों के पदाधिकारियों से कांग्रेस पार्टी ने संवाद किया था तथा उनके संघ के पदाधिकारियों से श्री राहुल गाँधी राष्ट्रीय अध्यक्ष, श्री कमलनाथ वर्तमान मुख्यमंत्री, श्री दिग्विजय सिंह लोकसभा प्रत्याशी, (भोपाल) से मुलाकात और बातचीत की थी और उन्हें यह वायदा किया था कि यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो अतिथि विद्वानों को नियमित किया जायेगा। इस वायदे का कांग्रेस पार्टी ने अपने वचन पत्र क्र. 17-22 में शामिल किया है, और जो छप कर पूरे प्रदेश में बँटा।
परन्तु अब अतिथि विद्वान पिछले 07 माह से सरकार के वायदे पूर्ति के इंतजार में बैठे हैं। जो मुख्यमंत्री जी चुनाव के पहले अतिथि विद्वानों को निमंत्रण देकर बातचीत की दावत देते थे वे अब मिलने और बातचीत करने को भी तैयार नहीं है और अपने वचन-पत्र को स्वतः अपने काम से खण्डित करने में लगे है। अतिथि विद्वान अब अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं तथा पुनः संघर्ष के लिये बैचेन हो रहे हैं क्योंकि वर्तमान कांग्रेस सरकार ने स्थाई समाप्त करने के रास्ते पर कदम बढ़ा दिये है। पिछली भाजपा सरकार ने जो पी.एस.सी. से भर्ती की प्रक्रिया कराई थी, वह नियमो के विरूद्ध थी और इसके विरूद्ध अतिथि विद्वानों का संघ कोर्ट मंे गया था तथा कोर्ट ने भी यह माना था कि कराई जा रही भर्ती नियम विरूद्ध है।
तब मुख्यमंत्री कमलनाथ जी ने बतौर कांग्रेस अध्यक्ष के यह बयान दिया था कि यह पी.एस.सी. परीक्षा व्यांपम घोटाला नं. दो है, तथा इसकी सी.बी.आई. से जाँच कराई जायेगी। लगभग ऐसा ही बयान श्री दिग्विजय सिंह ने भी दिया था और पी.एस.सी. को व्यांपम से बड़ा घोटाला बताया था इतना ही नहीं स्वतः सरकार ने अदालत में गलती मानी थी।
अतिथि विद्वानों को उम्मीद थी कि कांग्रेस सरकार आने के बाद अपने वायदों को पूरा करेगी। पी.एस.सी. परीक्षा को कोर्ट की मंशा के अनुसार रद्ध करेगी तथा अतिथि विद्वानों का स्थायीकरण कर उनके साथ न्याय करेगी। परन्तु अब अतिथि विद्वानों के सब्र का बाँध टूटने लगा है। अतः वे पुनः संघर्ष के रास्ते पर चलने की मानसिकता में आ रहे हैं। यह कितना अन्यायपूर्ण है, कि इन अतिथि विद्वानों ने जिन छात्रों को पढ़ाया अब वे स्थाई होंगे और अतिथि विद्वान उनके स्थायीकरण से व नौकरी से बाहर फेंक दिये जायेंगे व भुखमरी के शिकार होंगे। यह तो ऐसा होगा कि जिन माता-पिता ने बच्चों को जन्म दिया उन बच्चों की खातिर उनके माता-पिता को ही मार दिया जायें।"
श्री रघु ठाकुर ने बताया कि, "सरकार की इस वायदा खिलाफी और अपने निर्णय को बदलने के कारणों की पड़ताल भी जरूरी है। नौकरशाही के तंत्र के जानकार लोगों का कहना यह है कि इस निर्णय के पीछे भ्रष्टाचार है। और सत्ता और तंत्र मिलकर 20-20 साल से काम कर रहे अतिथि विद्वानों को बाहर का रास्ता दिखाकर नगद-चयन की व्यवस्था कर रहा है।
सरकार के अपने वायदों को न क्रियान्वयन के पीछे भी इन आरोपों की बू आती है वरना सरकार जहाँ एक तरफ न्याय की भावना से और वायदा पूर्ति की भावना से इन्हें स्थायी करती और वहीं दूसरी तरफ अपनी शिक्षा व्यवस्था के हालातों पर भी गौर फरमाती।
उन्होंने बताया कि, "23 जून 2019 के ‘‘दैनिक भास्कर’’ ने एक खबर छापी थी, जिससे वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के हालात का खुलासा होता है। मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ जी झाबुआ में एक काॅलेज भवन का उद्घाटन करने के लिये जा रहे है यह शासकीय माॅडल काॅलेज 12 करोड़ की लागत से बना है। और इस काॅलेज के लिये शासन ने पिछले साल जून में 73 पद शिक्षको के स्वीकृत किये थे परन्तु अभी तक न प्राचार्य और न शिक्षक की नियुक्ति हुई है, जबकि काॅलेज नियमित रूप से 1 जुलाई से शुरू होना था। इन 73 पद में 48 शैक्षणिक पद है और 25 पद अशैक्षणिक कर्मचारियों के हैं। हालात यह है कि शिक्षक तो छोड़ो चपरासी भी आउट सोर्सिंग से भरने की तैयारी है। इस काॅलेज के लिये 1080 विद्यार्थियों की संख्या तय की गयी थी परन्तु अभी तक प्रवेश की प्रक्रिया शुरू ही नहीं हुई क्योंकि प्राचार्य नहीं है, और यह काम भी एक दूसरे काॅलेज में भी किया गया। अब श्री कमलनाथ जी को स्वतः सोचना चाहिये कि वे अगर इस नये काॅलेज के शैक्षणिक पद पर अतिथि विद्वानों को नियुक्त करें तो 50 लोग स्थायी नियुक्त हो जायेंगे। हालांकि मुख्यमंत्री जी ने वहाँ जाने के पूर्व 28 शिक्षकों की नियुक्ति कर दी इसके लिये साधुवाद।
निरंतर इसी प्रक्रिया द्वारा मुख्यमंत्री और पार्टी का वायदा भी पूरा होगा। अतिथि विद्वानों को न्याय भी मिलेगा व हजारों, लाखों गरीबों की दुआयें भी मिलेगी। परन्तु कितना विचित्र है कि आज, की राजनीति में मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक, पार्टी के पदाधिकारी तो लगभग स्थायी होते हैं और हटने के बाद पेंशन प्लाट आदि के हकदार हो जाते है। परन्तु देश के भविष्य बनाने वाले अतिथि विद्वानों के भविष्य की गर्दन पर तलवार लटकती है और उनका शोषण किया जाता है। तथा इन्हें वर्तमान स्थिति में हटने के बाद न पेंशन होती है न अन्य कोई सुविधा।
भारतीय संविधान में समान काम का समान वेतन का सिद्धांत है। पर संविधान और श्रम कानून की अवेहलना स्वतः सरकार करती है।"
लोकतान्त्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक - रघु ठाकुर ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री से माँग की, कि:-
1. समस्त अतिथि विद्वानों की वरिष्ठता सूची बनवायें। सभी स्वीकृत शैक्षणिक पदों पर इन्हें नियुक्त करें।
2. सहायक प्राध्यापक पी.एस.सी. परीक्षा की चयन प्रक्रिया यानि मुख्यमंत्री के अनुसार व्यांपम घोटाला-दो को तत्काल रद्ध करें।
श्री ठाकुर ने कहा कि, "मुझे जानकारी मिली है, कि अतिथि विद्वानों का संघ पुनः आन्दोलन करने की तैयारी में है, मैं उन्हें भी सलाह दूूॅगा कि उनका एक प्रतिनिधि मण्डल दिल्ली में जाकर श्री राहुल गाँधी जी से मिले। उन्हें वचन-पत्र का वायदा दिखाये तथा उनसे हस्तक्षेप की अपील करें।
संवाद का कोई भी मार्ग बन्द नहीं करना चाहिये। संघर्ष तो अन्तिम हथियार है। सरकार संघर्ष को लाचार करेगी तो अतिथि विद्वानों के साथ मैं और मेरी पार्टी और प्रदेश के हजारों बुद्धिजीवी व नौजवान खड़े होंगे।
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